Human Rights Day : सहयोग से होगी संरक्षा
Human Rights Day : वर्ष 2024 के मानवाधिकार दिवस (Human Rights Day) की थीम ‘असमानताओं को कम करना और मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना’ हमारे समाज में व्याप्त गहरी असमानताओं को दूर करने की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित करती है।
मानवाधिकार दिवस ? सहयोग से होगी संरक्षा |
यह थीम यह संदेश देती है कि असमानताएं केवल आर्थिक और सामाजिक स्तर पर ही नहीं, बल्कि लिंग, जाति, धर्म और क्षेत्रीय भेदभाव के रूप में भी मौजूद हैं, जो समाज में नफरत, हिंसा और विभाजन को जन्म देती हैं। इन असमानताओं का निराकरण करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि जब तक हम इन भेदभावपूर्ण संरचनाओं को समाप्त नहीं करेंगे, तब तक हम सभी के लिए समान अवसर, समान न्याय और समान विकास सुनिश्चित नहीं कर सकते।
असमानताओं का प्रभाव न केवल उन व्यक्तियों पर पड़ता है जिन्हें यह प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं, बल्कि यह समग्र समाज के लिए नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करता है। जब महिलाएं, बच्चे, अल्पसंख्यक या अन्य कमजोर वर्ग अपने अधिकारों से वंचित रहते हैं, तो उनका योगदान समाज में घट जाता है, और इससे समाज का समग्र विकास रु क जाता है। अत: असमानताओं को कम करना केवल एक कानूनी या मानवाधिकार का मामला नहीं है, बल्कि यह एक जरूरी कदम है जो समाज की समृद्धि और शांति के लिए आवश्यक है।
‘असमानताओं को कम करना और मानव अधिकारों को आगे बढ़ाना’ की थीम हमें यह समझने का अवसर देती है कि असमानताएं केवल व्यक्तिगत स्तर पर नहीं, बल्कि संस्थागत और संरचनात्मक स्तर पर भी मौजूद होती हैं। जैसे कि शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और रोजगार में भेदभाव के कारण कई समुदायों को समान अवसर प्राप्त नहीं हो पाते। इस प्रकार, कुछ समुदायों के पास संसाधन और अवसर होते हैं, जबकि अन्य अपने बुनियादी अधिकारों तक भी नहीं पहुंच पाते। इसका समाधान तभी संभव है, जब हम सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक दृष्टिकोण से समान अवसरों की गारंटी प्रदान करें, ताकि सभी वगरे और समुदायों को उनके अधिकारों का पूरी तरह से अनुभव हो सके। जब लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होंगे, तो वे इन असमानताओं के खिलाफ खड़े हो सकेंगे और अपने अधिकारों की रक्षा कर सकेंगे। मानवाधिकार के सिद्धांतों का आधार ‘मानवता’ है, जिसका अर्थ है कि हर इंसान को अपने अस्तित्व के लिए समान अधिकार प्राप्त हैं, चाहे उसका रंग, धर्म, जाति, लिंग या राष्ट्रीयता कुछ भी हो।
यह अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सुरक्षा की गारंटी देते हैं, जो किसी भी अन्य अधिकार से अधिक महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं। संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी दी गई है, और यह सुनिश्चित किया गया है कि किसी को भी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता, सिवाय कानूनी प्रक्रिया के। इसके अलावा, संविधान उन व्यक्तियों को सजा देने का प्रावधान करता है जो इन अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। इस संदर्भ में, भारतीय संविधान और कानूनी प्रावधानों का पालन करना बेहद जरूरी है, क्योंकि यह संविधान न केवल नागरिकों को उनके अधिकारों की गारंटी देता है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि उनके अधिकारों का उल्लंघन करने वालों को सजा दी जाए। हालांकि, इन कानूनी प्रावधानों के बावजूद, विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के मामले में, कई क्षेत्रों में अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। महिलाओं के अधिकारों की रक्षा केवल कानूनी दायित्व नहीं है, बल्कि यह समाज की नैतिक जिम्मेदारी भी बनती है।
महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और सम्मान के साथ जीने का अधिकार है, लेकिन आज भी कई महिलाएं हिंसा, भेदभाव और असमानता का सामना करती हैं। इसी तरह, बच्चों का सबसे बुनियादी अधिकार शिक्षा, सुरक्षा और स्वास्थ्य है, लेकिन लाखों बच्चे बालश्रम, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होते हैं, जिससे उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता है। इसलिए, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा केवल कानूनी दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि समाज में व्याप्त असमानताओं को समाप्त करने के लिए एक संयुक्त सामाजिक प्रयास की आवश्यकता है। इसी तरह, बच्चों के अधिकारों की रक्षा भी आवश्यक है। बच्चों का सबसे बुनियादी अधिकार शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षा है, लेकिन लाखों बच्चे आज भी शिक्षा से वंचित हैं और उनके साथ बालश्रम, शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न होता है।
भारत में मानवाधिकारों की रक्षा के लिए 28 सितम्बर 1993 को एक महत्त्वपूर्ण कानून लागू किया गया, और इसके बाद 12 अक्टूबर 1993 को ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ की स्थापना की गई। यह आयोग मानवाधिकारों का उल्लंघन करने वाले मामलों में जांच करता है और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने के लिए कार्य करता है। मानवाधिकार दिवस पर हमें महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा के प्रति विशेष संवेदनशीलता दिखानी चाहिए और समाज में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इस दिन हमें यह समझने की आवश्यकता है कि मानवाधिकार केवल कानूनी प्रावधान नहीं हैं, बल्कि यह हमारे सामाजिक और नैतिक दायित्व भी हैं। हमें संविधान के अनुच्छेदों का पालन करते हुए इन अधिकारों की रक्षा करने में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। समाज में हर व्यक्ति को यह समझाना होगा कि मानवाधिकार केवल अधिकार नहीं हैं, बल्कि ये कर्तव्य भी हैं, जिनका पालन करना हम सभी की जिम्मेदारी है। अगर हम सही मायनों में एक न्यायपूर्ण और समान समाज की स्थापना करना चाहते हैं, तो हमें महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना होगी।
हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम एक ऐसा समाज बनाएं, जहां हर महिला और बच्चा अपनी स्वतंत्रता से जी सके, जहां उन्हें किसी प्रकार का उत्पीड़न, भेदभाव, या असमानता का सामना न करना पड़े। यह समाज तभी संभव होगा जब हम मानवाधिकारों के प्रति अपनी जागरूकता को बढ़ाएं और इस दिशा में प्रभावी कदम उठाएं। ऐसे वातावरण का सृजन हो जिसमें मानवाधिकारों की ग्राह्यता रहे समाज का प्रत्येक वर्ग इसके लिए जागरूक रहे यह केवल अधिकार नहीं सभी के दायित्व का बोध भी हो। और यह परिवार से प्रारम्भ होकर, समाज, समुदाय में दिखे हमारे देश की यही भव्यता, दिव्यता है जहां विभिन्न जाति-धर्म-समुदाय को एक समान देखा जाता है।
(लेख में विचार निजी हैं)
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