महंगाई-विकास : संतुलन साधने का प्रयास
भारतीय रिजर्व बैंक ने 11वीं बार रेपो दर को 6.5 प्रतिशत पर बरकरार रखा है। साथ ही, नीतिगत दरों में बदलाव नहीं करने से स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी यानी एसडीएफ दर 6.25 प्रतिशत पर, मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी यानी एमएसएफ दर और बैंक दर 6.75 प्रतिशत पर यथावत है।
महंगाई-विकास : संतुलन साधने का प्रयास |
इससे पहले फरवरी, 2023 में रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की वृद्धि की गई थी, जिससे यह बढ़ कर 6.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गई थी। उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी से पहले 6 फरवरी, 2020 को रेपो दर 5.15 प्रतिशत के स्तर पर थी। रिजर्व बैंक ने 27 मार्च, 2020 से 9 अक्टूबर, 2020 के दौरान रेपो दर में 0.40 प्रतिशत की कटौती की। तदुपरांत, मौद्रिक नीति समिति ने अपनी 10 बैठकों में 5 बार रेपो दर में बढ़ोतरी की, जबकि 4 बार रेपो दर को यथावत रखा और 1 बार अगस्त, 2022 में रेपो दर में 0.50 आधार अंकों की कटौती की। रिजर्व बैंक मुद्रास्फीति को लेकर अभी भी आशंकित है क्योंकि मुद्रास्फीति सीधे तौर पर विकास की गति को धीमा करती है और यह अभी उच्च स्तर पर बनी हुई है। पुन: महंगाई बढ़ने की आशंका की वजह से रिजर्व बैंक ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 से घटा कर 6.6 प्रतिशत कर दिया है।
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी 5.4 प्रतिशत रही जो विगत 7 तिमाहियों का सबसे निचला स्तर है। गिरावट का मूल कारण विनिर्माण और खनन क्षेत्र में विकास दर में उल्लेखनीय कमी आना है। पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत रही थी, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर 8.1 प्रतिशत रही थी। रिजर्व बैंक के अनुसार खरीफ की अच्छी पैदावार, सिंचाई की उपलब्धता में आई बेहतरी से कृषि क्षेत्र की विकास दर में तेजी आई है। खनन और बिजली क्षेत्र में भी वृद्धि दर की गति संतोषजनक रही है, और औद्योगिक गतिविधियों में तेजी आने की उम्मीद है, लेकिन भू-राजनैतिक संकट लगातार बने रहने और मुद्रास्फीति में तेजी आने से जीडीपी वृद्धि दर धीमी पड़ने की आशंका भी बनी हुई है, क्योंकि इन दो कारकों के कारण विकास के दूसरे मानकों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।
भारतीय रिजर्व बैंक ने अपने ताजा अनुमान में मुद्रास्फीति के वित्त वर्ष 2024-25 में 4.5 प्रतिशत, तीसरी तिमाही में 4.8 प्रतिशत और चौथी तिमाही में 4.2 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया है। वहीं, अक्टूबर, 2024 में मुद्रास्फीति 14 महीनों के उच्च स्तर 6.21 प्रतिशत पर थी, जबकि सितम्बर, 2024 में यह 5.5 प्रतिशत के स्तर पर थी। इस तरह, विगत 2 महीनों में औसत मुद्रास्फीति दर 5.9 प्रतिशत रही है। किसी की क्रय शक्ति को निर्धारित करने में मुद्रास्फीति महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। मुद्रास्फीति बढ़ने पर वस्तु एवं सेवा, दोनों की कीमतों में इजाफा होता है, जिससे व्यक्ति की खरीददारी क्षमता कम हो जाती है, और वस्तुओं एवं सेवाओं की मांग कम हो जाती है।
फिर, उनकी बिक्री कम होती है, उनके उत्पादन में कमी आती है, कंपनी को घाटा होता है, कामगारों की छंटनी होती है, रोजगार सृजन में कमी आती है आदि। फलत: आर्थिक गतिविधियां धीमी पड़ जाती हैं एवं विकास की गति बाधित होती है। ऐसे में कहना समीचीन होगा कि मुद्रास्फीति को कम करने से ही विकास की गाड़ी तेज गति से आगे बढ़ सकती है। रेपो दर फरवरी, 2023 से 6.5 प्रतिशत के स्तर पर कायम है, जिसके कारण उधारी दर भी उच्च स्तर पर बनी हुई है। 15 नवम्बर, 2024 तक ऋण उठाव घट कर 11.1 प्रतिशत रह गया, जो विगत वर्ष आलोच्य अवधि में 20.6 प्रतिशत था। इस अवधि में जमा वृद्धि दर में भी उल्लेखनीय कमी आई है, और इसकी औसत वृद्धि दर मार्च से महज 6.7 प्रतिशत है। बैंक जमा में आई कमी की प्रतिपूर्ति के लिए बैंक सरकारी बॉन्डस को परिपक्वता तिथि से पहले भुना रहे हैं। पूंजी की किल्लत की वजह से उधारी के उठाव में भी उल्लेखनीय कमी आई है, क्योंकि बैंक को पूंजी की कमी के कारण ऋण देने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
बैंकों में लगातार पूंजी की किल्लत को देखते हुए रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) को 4.5 प्रतिशत से घटा कर 4 प्रतिशत कर दिया है। पूंजी की उपलब्धता रहने पर बैंक जरूरतमंदों, खुदरा कारोबारियों, लघु, मध्यम, मझौले और बड़े उद्यमियों और कॉरपोरेट्स को ऋण उपलब्ध करा सकेंगे, जिससे आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी और विकास को बल मिलेगा।
बैंकों को अपने पास जमा राशि का एक न्यूनतम प्रतिशत रिजर्व बैंक के पास रिजर्व के तौर पर रखना होता है, जिसे सीआरआर कहते हैं। इसका इस्तेमाल रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसों के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए करता है, जिससे तरलता यानी बाजार में नकदी की उपलब्धता नियंत्रित रहती है। बहरहाल, केंद्रीय बैंक अभी भी महंगाई की चाल पर पैनी निगाह बनाए हुए है, क्योंकि यह विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा है, और साथ में कई प्रकार के दूसरे दुष्परिणामों की जननी भी है। इसलिए, इस बार भी रिजर्व बैंक और मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को 6.5 प्रतिशत के स्तर पर यथावत रखा है, लेकिन बैंकों के समक्ष पूंजी की कमी को देखते हुए और विकास की गति में तेजी लाने के लिए सीआरआर में 0.50 प्रतिशत की कटौती भी की है।
| Tweet |