शेयर बाजार : गिरावट का गुणा गणित

Last Updated 05 Dec 2024 01:14:06 PM IST

भारतीय शेयर बाजार पिछले कुछ समय से लगातार गिरावट का रुख है और बेंचमार्क निफ्टी और स्मॉलकैप 100 अपने सार्वकालिक उच्चतम स्तर से 10 फीसद से ज्यादा टूट चुके हैं।


शेयर बाजार : गिरावट का गुणा गणित

बाजार कमजोर नतीजों और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों की बिकवाली का पहले से दबाव झेल रहा था। इस बीच, खुदरा मुद्रास्फीति में तेजी और डॉलर में मजबूती ने चिंता बढ़ा दी है। बाजार के उच्चतम स्तर से 10 फीसद से ज्यादा फिसलने को ही ‘तकनीकी रूप से गिरावट’ कहा जाता है।

डॉलर में मजबूती और अमेरिकी बॉन्ड में तेजी के मद्देनजर विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक (एफपीआई) भारत से अपना निवेश लगातार निकाल रहे हैं। अक्टूबर में विदेशी निवेशकों ने 94,017 करोड़ डॉलर की निकासी की तो नवम्बर में 21,612 डॉलर की। अमेरिकी फेड रेट में कटौती के बाद से ही एफपीआई में निकासी जारी है। बीते माह चीन सरकार ने स्पेशल राहत पैकेज का ऐलान कर अर्थव्यवस्था को बूस्ट देने की कोशिश की। इस राहत पैकेज ने भी विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया। इसलिए विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकाल कर अमेरिका और चीन के बाजार में निवेश करना शुरू कर दिया।

विदेशी निवेशकों ने शेयर बाजार से दूरी बनाई तो घरेलू निवेशकों ने शेयर बाजार में मोर्चा संभाला। लेकिन चिंता की बात यह है कि घरेलू निवेशकों में काफी ऐसे हैं, जिन्हें शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था की मोटी-मोटी जानकारियां नहीं हैं। कड़वी सच्चाई है कि शेयर बाजार से 90 फीसद से ज्यादा रिटेलर पैसे नहीं बना पाते, बल्कि अपनी मेहनत से कमाए पैसे गंवा जरूर देते हैं। रिटेल निवेशकों को समझना होगा कि अभी जब निजी इक्विटी फम्रे, प्रवर्तक इकाइयां इत्यादि शेयर बाजार से दूरी बना रही हैं, तब वे बिना रिसर्च किए शेयर बाजार में निवेश करेंगे, तो उनका निवेश कैसे सुरक्षित रह सकता है?

शेयर बाजार काफी जोखिम भरा होता है, एक छोटी सी गलती निवेशक को भारी नुकसान पहुंचा सकती है। आज सोशल मीडिया पर कई इनफ्लुएंसर ज्ञान देते हैं कि किस शेयर में निवेश करना चाहिए। हमें इनसे प्रभावित होकर निवेश नहीं करना चाहिए। जब भी किसी कंपनी के शेयर खरीदें, तो आपको उस कंपनी के बारे में गहन रिसर्च करनी चाहिए। शेयर बाजार में कई कंपनियों में उतार- चढ़ाव कृत्रिम किस्म का होता है, जिसमें बड़े खिलाड़ी तो लाभ लेकर निकल जाते हैं, परंतु छोटे खुदरा निवेशक बर्बाद हो जाते हैं। सरकार और सेबी जैसे नियामकों के लिए आवश्यक है कि शेयर बाजार में कृत्रिम उतार-चढ़ाव को लेकर सदैव सख्त रहें। छोटे निवेशकों की पूंजी न डूबे, इसके लिए सेबी और सरकार को भी कुछ सेफगार्ड बनाने चाहिए। निवेशकों को शेयर बाजार और अर्थव्यवस्था की बारीकियों की सीख देने के लिए भी सेबी को गंभीरता से कदम उठाने चाहिए।

निवेशकों को भी अर्थव्यवस्था की  विभिन्न चुनौतियों को समझने का प्रयास करना चाहिए। उदाहरण के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय एक ओर महंगाई और दूसरी ओर सुस्त होती रफ्तार से जूझ रही है। आरबीआई के लिए आवश्यक है कि महंगाई को 6% के दायरे में रखे जबकि इस समय खुदरा महंगाई दर 6.2 प्रतिशत है। आरबीआई इस दृष्टि से ब्याज दरों में कटौती नहीं कर सकता। ब्याज दरों में कटौती करेगा, तो महंगाई और बढ़ जाएगी। दूसरी तरफ, इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर केवल 5.4 फीसदी रही, जो 7 तिमाहियों में सबसे कम है। इस समय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए सस्ते कर्ज की जरूरत है, जिसके लिए आरबीआई को ब्याज दर में कटौती करनी होगी परंतु महंगाई दर के कारण यह संभव नहीं। ब्याज दरें कम नहीं हुई तो आर्थिक सुस्ती जल्द ही आर्थिक मंदी की ओर अग्रसर हो जाएगी।

कुल मिला कर ब्याज दरें घटाने की गुंजाइश सीमित होना अर्थव्यवस्था और शेयर बाजार के लिए अच्छी खबर नहीं है। ऐसे में निवेशकों को परिस्थितियों के अनुसार निवेश की योजना बनानी चाहिए। शेयर बाजार में जो हाहाकार मचा है, उसमें विदेशी निवेशकों की भारी-भरकम निकासी भी प्रमुख कारण है। स्पष्ट है कि भारत को टिकाऊ स्तर पर उच्च निवेश की आवश्यकता है, ताकि लंबी अवधि तक देश ऊंची वृद्धि दर हासिल कर सके।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने जिस तरह उच्च स्तर पर निकासी की है, उससे बचने के लिए आवश्यक है कि अर्थव्यवस्था के सभी उच्चतर संकेतकों को मजबूत रखा जाए। देश विकास के जिस चरण में है, वहां हमारी घरेलू बचत ‘जीडीपी वृद्धि’ के लिए पर्याप्त नहीं है। ऐसे में विश्व से टिकाऊ पूंजी जुटाने की जरूरत है। भारत में आने वाली विदेशी पूंजी कई लक्ष्यों के साथ आती है। उदाहरण के लिए कुछ एफपीआई केवल भारत और अमेरिका की ब्याज दरों के अंतर का लाभ उठाने के लिए आते हैं। ऐसे निवेश अल्पकालिक प्रकृति के हो सकते हैं, और बहुत जल्दी वापस चले भी जाते हैं।

राहुल लाल


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