ऑस्ट्रेलिया में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध : हमें भी गंभीर होना पड़ेगा

Last Updated 04 Dec 2024 01:08:14 PM IST

अपराजिता का मन पढ़ाई में नहीं लगता। उसकी दसवीं की परीक्षा सिर पर है, लेकिन वह हमेशा इस सोच में खोयी रहती है कि मैं इंस्टाग्राम पर क्या पोस्ट करूं जिससे मेरे सारे दोस्त हतप्रभ हो जाएं। उसकी ख्याली दुनिया उसकी असली दुनिया से बहुत परे है। अपनी ख्याली दुनिया में वह रोज मेहनत से दूसरों को बढ़ावा देती है।


असल दुनिया में अपने लिए यह काम नहीं कर पाती।  उसके कुछ कारण हैं, जिनमें से एक कि वह असल और काल्पनिक दुनिया में ऐसी उलझ कर रह गई है कि उसको भी नहीं पता कि कब सोशल मीडिया की झूठी दुनिया खत्म होती है और असल दुनिया का कड़वा सच शुरू होता है। इस ऊहापोह का परिणाम

ऐसे समय पर ऑस्ट्रेलिया का 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया पर प्रतिबंध लगाने का फैसला ऐतिहासिक माना जा रहा है। पिछले साल संयुक्त राज्य अमेरिका के सर्जन जनरल डॉ. विवेक मूर्ति ने सोशल मीडिया और युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर एक दस्तावेज जारी किया था, जिसमें उन्होंने देशों से यह अपील कि वे सोशल मीडिया उपयोग के पूर्ण प्रभाव को बेहतर तरीके से समझें ताकि वे कुछ ऐसी नीतियां ले कर आएं जो बच्चों के हित  में हो। सोशल मीडिया आज हमारे घर, परिवार और जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा बन चुका  है। माता-पिता सोशल मीडिया द्वारा अपने बच्चों के संपर्क में रहते हैं।

सुनने में भले ही अजीब लगे मगर आज की सच्चाई यही है कि सोशल मीडिया मुसीबत का कारण बना ही इसलिए, क्योंकि बड़ों ने इसको अपनी सहूलियत का जरिया बना लिया है। अब इस लेख को लिखने के लिए गूगल जैसे सर्च इंजन का इस्तेमाल किया जा रहा, इस मुद्दे पर लोगों की राय क्या है उसका सर्वे लिंकेडिन और व्हाट्सएप्प के माध्यम से किया जा रहा और मजे की बात यह भी है कि सोशल मीडिया कितना कष्टकारी है, यह भी सोशल मीडिया के जरिये ही बताया जा रहा है। है न कमाल की स्थिति! अक्सर जब भी कोई आर्टकिल, या लेख लिखना होता है तो मेरी कोशिश होती है कि मैं लोगों से उसके बारे में राय लूं। इस बार भी ली। प्रश्न था- क्या भारत में माता-पिता को अपने बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर अधिक सख्त नियंत्रण रखना चाहिए, या सरकार को बच्चों के लिए प्रतिबंध लगाना चाहिए? ज्यादातर अभिभावकों को यह लगता है कि यह माता-पिता और सरकार दोनों को जिम्मेदारी है (65 फीसद)। कुछ का यह मानना है कि सरकार को पहल करनी चाहिए (20 फीसद) और कुछ पूरी तरह माता-पिता की जिम्मेदारी मानते हैं। सच तो यह है, कायदे कानून कितने भी कड़े क्यों न हो अभिभावक अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं मोड़ सकते। घर में जब 3 लोग सोशल मीडिया स्टेटस को अपने सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ेंगे तो चौथा बच्चा तो इसको संभावित रूप से मान्य ही समझेगा। फिर हम सही और वह गलत कैसे?

एक ऐसे ही चर्चा में किसी ने अपना अनुभव साझा किया, कि यह खुद अपने माता पिता की सोशल मीडिया पर हर चीज शेयर करने की आदत से परेशान है और चाहते हैं कि कोई उनकी मदद करे। सुन कर हंसी भी आई और फिर लगा, बस अब यही सुनना बाकी था।  

किस्से के कई पहलू

हर किस्से के कई पहलू होते हैं और सोशल मीडिया प्रतिबंध के भी हैं। क्योंकि सोशल मीडिया हमारे जीवन का हिस्सा बन गया है- इसमें अगर मैं निष्पक्ष रूप से देखूं तो इसके कई सामाजिक, आर्थिक और मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखने मिल सकते हैं। एक-एक करके सब पर नजर डालते हैं।  

सामाजिक : कैपिओस द्वारा जारी ग्लोबल सोशल मीडिया रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया का सबसे ज्यादा उपयोग दोस्तों और परिवार से जुड़े रहने के लिए होते हैं। बच्चे इस रिपोर्ट से परे नहीं है। बच्चे भी चाहते हैं कि वह अपने दोस्तों से हमेशा हर वक्त जुड़े रहे और शायद यह सही है,  लेकिन यह भी बताता है, कि अब हमारा समाज वह सीमित दायरा नहीं बल्कि पूरा विश्व है जो शायद उतना सुरक्षित भी नहीं।

आर्थिक : कुछ तो सीधे और साफ प्रभाव है, जैसे कि सोशल मीडिया कंपनियों को नुकसान का सामना करना पड़ेगा, जुर्माना और दंड अलग,  लेकिन एक बड़ा सवाल जो आ रहा है कि सरकार इसकी निगरानी कैसे रखेगी और इसी में काफी आर्थिक व्यवस्था की जरूरत है।  नियम तभी तक लागू हो सकते है, जब तक उनके तोड़ के तरीकों को अनुशासित किया जाए।  

मानसिक : बच्चों का गुस्सा, माता पिता की हताशा, शिक्षकों में झुंझलाहट-इन सब मानसिक और भावनात्मक परिणामों से जूझने के लिए हमको तैयार रहना चाहिए। ऐसे में यह जरूरी है कि हम बच्चों को सिर्फ  यह न बताए कि सोशल मीडिया गलत है या उससे दूर रहो, बल्कि उनको ऐसे संसाधन दे, जिससे वह अपने समय और मन को सकारात्मक तरीके से उपयोग कर सके।

जब मैं तथ्यों की तलाश में थी, कि विश्व में 16 साल से कम के कितने बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं तो ज्यादातर सर्वे हमें 18 साल से ऊपर के उपभोगताओं का डाटा देते हैं  और शायद यही सबसे बड़ा सामाजिक चुनौती है। सबसे बड़ी मुश्किल होती है जानकारी का न होना, इस वक्त विश्व में 5.22 बिलियन सोशल मीडिया त्ड्डड्ढदद्यत्द्यत्ड्ढद्म है जो हमारी कुल आबादी का 65 फीसद हिस्सा है। बहरहाल, किसी भी प्रतिबंध या रोक का पहला असर उसका प्रतिरोध होता है। और यह स्थिति भी कुछ अलग नहीं।  बच्चे बगावत करेंगे और यहां सिर्फ  माता-पिता या सरकार ही नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी बन जाती है कि इस मुहिम को सफल बनाए।  
(लेख में  विचार निजी हैं)

नूपुर द्विवेदी पाण्डेय


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