रैगिंग पर सख्त कानून के बावजूद नाउम्मीदी
पिछले दिनों गुजरात के पाटन में एक मेडिकल कॉलेज में रैगिंग के कारण 18 साल के एक छात्र की मौत के बाद उम्मीद जगी थी कि कॉलेजों में रैगिंग के मामलों पर रोक लगेगी लेकिन उसके बाद भी जिस प्रकार आये दिन देश भर से रैगिंग के मामले सामने आ रहे हैं, उन्हें देखते हुए कॉलेजों में रैगिंग को लेकर तत्काल कड़े कदम उठाने की जरूरत महसूस होने लगी है।
रैगिंग : सख्त कानून के बावजूद नाउम्मीदी |
पाटन मेडिकल कॉलेज में रैगिंग से छात्र की मौत के मामले में खुलासा हुआ है कि 15 सीनियर छात्रों ने उस जूनियर छात्र सहित कई छात्रों से लगातार तीन घंटे डांस करवाया, गाने गवाए और उन्हें शारीरिक-मानसिक रूप से प्रताड़ित किया। मानसिक-शारीरिक यातना दिए जाने के कारण अनिल मेथानिया आधी रात को बेहोश होकर गिर पड़ा। उसे अस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। पुलिस ने मेडिकल कॉलेज के द्वितीय वर्ष के 15 छात्रों को गैर-इरादतन हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर लिया। रैगिंग पर लगाम कसने को लेकर देश भर के तमाम शिक्षण संस्थानों में सख्ती बेहद जरूरी है क्योंकि हर साल ऐसे अनेक मामले सामने आते हैं, जिनमें रैगिंग के शिकार छात्र अवसाद के शिकार हो जाते हैं, कुछ रैगिंग से डर कर पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं, तो कुछ मौत को गले लगा लेते हैं। रैगिंग रोकने के लिए सख्त अदालती दिशा-निर्देश हैं, लेकिन जिस प्रकार रैगिंग के मामले सामने आ रहे हैं, उससे चिंता बढ़ना स्वाभाविक है।
हिमाचल के एक मेडिकल कॉलेज में 2009 में रैगिंग से एक छात्र की मौत के बाद सुप्रीम कोर्ट ने देश के शिक्षण संस्थानों में रैगिंग विरोधी कानून सख्ती से लागू करने के आदेश दिए थे, जिसके तहत दोषी पाए जाने वाले छात्र को तीन साल के सश्रम कारावास और आर्थिक दंड का प्रावधान था। दोषी छात्र को कॉलेज तथा हॉस्टल से निलंबित या बर्खास्त किया जा सकता है। उसकी छात्रवृत्ति तथा अन्य सुविधाओं पर रोक, परीक्षा देने या परीक्षा परिणाम घोषित करने पर प्रतिबंध लगाने के अलावा अन्यत्र उसके दाखिले पर भी रोक लगाई जा सकती है। रैगिंग के मामले में कार्रवाई न करने अथवा मामले की अनदेखी करने पर कॉलेज के खिलाफ भी कार्रवाई हो सकती है, जिसमें कॉलेज पर आर्थिक दंड लगाने के अलावा कॉलेज की मान्यता रद्द करने का भी प्रावधान है।
अदालत के दिशा-निर्देशों के तहत किसी छात्र के रंग-रूप या उसके पहनावे पर टिप्पणी करके उसके स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना, उसकी क्षेत्रीयता, भाषा या जाति के आधार पर उसका अपमान करना, उसकी नस्ल या पारिवारिक पृष्ठभूमि पर अभद्र टिप्पणी करना या उससे जबरन किसी प्रकार का अनावश्यक कार्य कराया जाना रैगिंग के दायरे में सम्मिलित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा देश के प्रत्येक उच्च शिक्षण संस्थान में रैगिंग के खिलाफ एक समिति बनाने से लेकर संबंधित नियमों का पालन नहीं करने पर संस्थान की मान्यता रद्द करने तक के सख्त निर्देश हैं, लेकिन रैगिंग के लगातार सामने आते मामलों को देख कर हैरानी होती है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अरिजीत पसायत, जस्टिस डी. के. जैन तथा जस्टिस मुकुंदकम शर्मा की खंडपीठ ने रैगिंग रोकने के लिए 11 फरवरी, 2009 को पहली बार बेहद कड़ा रुख अपनाते हुए कहा था कि रैगिंग में मानवाधिकार हनन जैसी गंध आती है। खंडपीठ ने राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेशों को शिक्षण संस्थानों में रैगिंग पर रोक लगाने के लिए राघवन कमेटी की सिफारिशों को सख्ती से लागू करने का निर्देश देते हुए कहा था कि रैगिंग रोकने में विफल शिक्षण संस्थाओं की मान्यता रद्द करें। 2001 में भी सुप्रीम कोर्ट ने उन्नीकृष्णन समिति की सिफारिश के आधार पर रैगिंग पर प्रतिबंध लगाते हुए इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान करते हुए अपने आदेश में स्पष्ट कहा था कि शिक्षा परिसरों में रैगिंग रोकना शिक्षा संस्थानों का नैतिक ही नहीं, कानूनी दायित्व भी है, जिसे न रोक पाना दंडनीय अपराध की श्रेणी में लाया जाएगा और ऐसे संस्थानों की संबद्धता तथा उन्हें प्रदत्त सरकारी वित्तीय सहायता समाप्त की जा सकती है।
कोर्ट का स्पष्ट कहना था कि रैगिंग के नाम पर दुर्व्यवहार रोकना कॉलेज प्रबंधन, प्राचार्य,अधिकारियों तथा छात्रावास अधीक्षकों की जिम्मेदारी बनती है। एक विद्यार्थी कितने सपने संजो कर कॉलेज की दहलीज पर पहला कदम रखता है, और उससे भी अधिक उसके माता-पिता या अभिभावकों की आशाएं और अरमान उससे जुड़े होते हैं किंतु रैगिंग रूपी दानव एक ही झटके में उन सपनों, आशाओं और अरमानों पर भारी पड़ जाता है। रैगिंग जिस प्रकार छात्रों में अच्छे संस्कारों का बीजारोपण करने की बजाय आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म दे रही है, ऐसे में राज्य सरकारों और कॉलेज प्रशासन को समय रहते जागना होगा। जरूरत इस बात की है कि रैगिंग में लिप्त पाए जाने वालों के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाएं।
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