Nicholas Roerich : एक साधक की भारतीय साधना

Last Updated 14 Oct 2024 01:10:53 PM IST

सन 1874 में सेंट पीटर्सबर्ग (रूस) में जन्मे और 1947 में हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के नग्गर स्थित अपने आवास पर समाधिस्थ हुए रूसी चित्रकार, दार्शनिक, कवि, पुरात्ववेत्ता, सम्मोहनकर्ता निकोलस रोरिक (Nicholas Roerich) के जन्म के 150वें वर्ष में दुनिया भर विशेषकर भारत में अनेक आयोजन किए जा रहे हैं पर नई पीढ़ी को शायद उनके विषय में अधिक जानकारी नहीं है।


उन लोगों को छोड़कर जो पर्यटक के रूप में कुल्लू गए हैं या साहित्य-कला में रु चि रखते हैं।  

मुझे भी इस महान व्यक्तित्व के विषय में खास जानकारी नहीं थी जब तक मैंने कुल्लू में उनके आवास पर बना संग्रहालय नहीं देखा था जबकि मेरी इस अज्ञानता को क्षमा नहीं किया जा सकता क्योंकि मेरी पत्नी प्रो. मीता नारायण रूसी भाषा की ख्यातिप्राप्त विद्वान हैं, और चालीस वर्षो से जेएनयू और अन्य दर्जनों देशों के विश्वविद्यालयों में रूसी भाषा के अल्पकालीन कोर्स पढ़ाती रही हैं। रूसी भाषा पर उनकी लिखी पुस्तकें विश्वविद्यालयों में पढ़ाई जाती हैं।

पर हाल में उन्होंने भाषा विज्ञान के अपने विषय से हट कर निकोलस रोरिक की रूसी कविताओं का अंग्रेजी और हिन्दी अनुवाद उनके बनाए चित्रों के साथ आकषर्क पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया। तब मुझे रोरिक के विषय में पूरी जानकारी मिली जो काफी रोचक है। सोचा आपसे भी साझा करूं। वैसे बॉलीवुड में रुचि रखने वालों को शायद पता हो कि रोरिक के बेटे सेवेटोस्लाव रोरिक की शादी अपने समय की मशहूर फिल्म अभिनेत्री और दादा साहिब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित देविका रानी से हुई थी। वो दोनों भी नग्गर के उसी सुंदर पहाड़ी आवास में रहते थे, जहां आज उनका संग्रहालय है।

आम धारणा के विरुद्ध सभी रूसी वामपंथी नहीं होते। अध्यात्म विशेषकर भारत के आध्यात्मिक ज्ञान में उनकी गहरी रु चि होती है। इसी रु चि के कारण संपन्न परिवार में जन्मे रोरिक रूस छोड़ कुल्लू के छोटे से कस्बे में आ बसे। रोरिक को आम तौर पर उनकी अत्यंत मनभावनी और गहरी चित्रकला के लिए जाना जाता है। अपनी इन पेंटिंग्स में रोरिक ने हिमालय की पर्वत श्रृंखला का अद्भुत चितण्रकिया है।

बुद्ध धर्म और वैदिक धर्म के गहरे भाव भी इन चित्रों में देखे जा सकते हैं पर उनकी कविताओं को लेकर उतनी जिज्ञासा नहीं रही जितनी चित्रों के प्रति रही है। मीता जी ने उनके चित्रों और कविताओं को आमने-सामने प्रकाशित करके दोनों के बीच  अंतरसंबंधों को उजागर करने का सफल प्रयास किया है। इसलिए यह पुस्तक प्रकाशित होते ही रूसियों और भारतीयों के बीच लोकप्रिय हो गई और एक ही महीने में इसके पुन: मुदण्रकी नौबत आ गई। रोरिक ने रूस, यूरोप, मध्य एशिया, मंगोलिया, तिब्बत, चीन, जापान और भारत की यात्राएं कीं। 1928 से वह हिमालय के संपर्क में आए। इसके अनुपम सौंदर्य से इतने प्रभावित हुए कि इन्होंने अपने जीवन के बीस वर्ष कुल्लू घाटी में व्यतीत किए। 73 वर्ष के अपने जीवन काल में इन्होंने विज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में अपार ज्ञान प्राप्त किया लेकिन प्रमुख रूप से अमर चित्रकार के रूप में प्रसिद्ध हुए। इनके सम्मान में अमेरिका में 1929 में 29 मंजिला विशाल भवन बनवाया गया। यहां इनकी चित्रकारियां संग्रहित हैं।

अपनी आध्यात्मिक समझ और सात्विक जीवन शैली के चलते वे महर्षि के नाम से प्रसिद्ध थे। हिमालय में एक इंस्टीट्यूट स्थापित करना चाहते थे। इस उद्देश्य से उन्होंने राजा मंडी से 1928 में ‘हॉल एस्टेंट नग्गर’ खरीदा। बचपन में अपनी प्राथमिक पेंटिंग्स में रेरिख ने रूस की आध्यात्मिक संस्कृति को दर्शाने के लिए अपनी मातृभूमि और अपने लोगों के इतिहास को चित्रित करने का प्रयास किया। यूनिर्वसटिी से स्नातक होने के बाद पेरिस और बर्लिन के संग्रहालयों और प्रदर्शनियों का दौरा करने के लिए रोरिक एक वर्ष के लिए यूरोप चले गए। फ्रांस में उन्होंने प्रसिद्ध कलाकार एफ. कॉर्मन से चित्रकला भी सीखी। यूरोप जाने से ठीक पहले रूस के त्वेर प्रांत में पुरातात्विक शोध के दौरान उनकी मुलाकात अपनी भावी पत्नी येलेना से हुई जो सेंट पीटर्सबर्ग के प्रसिद्ध वास्तुकार इवान इवानोविच शापोशनिकोव की पुत्री थी। 1902 में निकोलाय और येलेना रोरिक के घर में बेटे, यूरी, का जन्म हुआ जो आगे चल कर प्राच्यविद् वैज्ञानिक बने और 1904 में उनके दूसरे बेटे स्वेतोस्लाव का जन्म हुआ जो अपने पिता की तरह प्रसिद्ध कलाकार बन गया।

1903 और 1904 की गर्मिंयों में ऐलेना और निकोलाई ने रूस के चालीस से अधिक प्राचीन शहरों की लंबी यात्रा की। निकोलस ने प्रकृति के कई रेखाचित्र बनाए और येलेना ने कई प्राचीन स्मारकों की तस्वीरें खींचीं। रोरिक प्रतिभाशाली थे जिनके हुनर विभिन्न क्षेत्रों में देखे जा सकते हैं। विद्वान संपादक, उत्कृष्ट पुरातत्वविद्, अद्भुत कलाकार, प्रतिभाशाली सज्जाकार और सेट डिजाइनर और ग्राफिक्स के भी मास्टर थे। अपने जीवन में रोरिक ने इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, अमेरिका, भारत आदि विभिन्न देशों और महाद्वीपों में विभिन्न प्रदर्शनियों का दौरा किया, कई हजार पेंटिंग्स, भित्तिचित्रों के रेखाचित्र बनाए, ओपेरा और बैले के लिए नाटकीय सेट और वेशभूषाएं बनाई और सार्वजनिक इमारतों और चचरे के लिए मोजाइक और स्मारकीय भित्ति चित्र भी बनाए।

1921 में न्यूयॉर्क में रोरिक ने मास्टर इंस्टीट्यूट ऑफ यूनाइटेड आर्ट्स की स्थापना की। उनका मानना था कि कला, ज्ञान और सौंदर्य महान आध्यात्मिक शक्तियां हैं, जो मानवता के भविष्य को नई राह दिखाएंगीं। न्यूयॉर्क में रोरिक और उनकी पत्नी ने एक अंतरराष्ट्रीय कला केंद्र की भी स्थापना की जहां विभिन्न देशों के कलाकार अपनी प्रदर्शनियां प्रस्तुत कर सकते थे। एशिया विशेष रूप से भारत रोरिक के दिल के बहुत करीब था। रोरिक ने मानवता को संस्कृति की नई परिभाषा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

उनके लिए संस्कृति मानव जाति के अस्तित्व का आधार है, जो लौकिक स्तर पर मानव जाति के विकास की अवधारणा से जुड़ी है। रोरिक के अनुसार, संस्कृति व्यक्ति के प्रति प्रेम है। जीवन और सौंदर्य का संयोजन है। इसके माध्यम से ही  व्यक्ति अपने अस्तित्व के नये स्तर पर पहुंच सकता है। 1928 में मध्य एशिया का अपनी भव्य खोजयात्रा पूरी करने के बाद उन्होंने संपूर्ण मानवता की सांस्कृतिक संपत्ति को सुरक्षित रखने के लिए रोरिक संधि नामक संधि तैयार की। वेदों और भगवद् गीता का भी अध्ययन किया। रोरिक का काव्य अत्यंत आध्यात्मिक और मानवतावादी है, जो अंतरतम अर्थात आत्मा के जीवन के बारे में बात करता है।

विनीत नारायण


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