दिल्ली : जहर हो चुका है भू जल

Last Updated 30 Sep 2024 01:20:39 PM IST

देश की राजधानी की आबादी बढ़ती जा रही है, और उसी गति से यहां पानी की मांग भी बढ़ रही है। यमुना से जल निकालने के प्रयास असफल ही रहे हैं, और करोड़ों रुपये खर्च करके भी दिल्ली की सीमा में ‘रिवर’ को ‘सीवर’ बनने से नहीं रोका जा सका है।


 दिल्ली में सारे साल पानी वितरण का तंत्र जिन टैंकर पर टिका है, उनकी जलापूर्ति भूजल के ऐसे स्रेतों से हो रही है, जो जहर बन चुके हैं, और उस जल को शुद्ध-निरापद बनाने के न तो कोई उपाय हैं, और न ही प्रयास। कितना दुखद है कि मजबूरी में लोग उस जल का प्रयोग कर रहे हैं जो बीमार बना रहा है।

केंद्रीय भूजल बोर्ड (सीजीडब्ल्यूबी) की ताजा रिपोर्ट बताती है कि दिल्ली का भूजल आर्सेनिक, फ्लोराइड और अन्य  खतरनाक रसायनों से परिपूर्ण है, हड्डी के रोग, दांतों की कमजोरी से लेकर कैंसर जैसे रोग उपजा रहा है। सीमा से बहुत अधिक फ्लोराइड वाले इलाकों में अलीपुर, द्वारका, नजफगढ़, महरौली, चाणक्यपुरी, कंझावला, रोहिणी, सरस्वती विहार, पटेल नगर शामिल हैं जबकि कैंसरकारक आर्सेनिक सीलमपुर, डिफेंस कालोनी के भूजल में अधिक है।

अलीपुर, नरेला, मॉडल टाउन, द्वारका, कापसहेड़ा, नजफगढ़, दिल्ली कैंट, वसंत विहार, कंझावला, रोहिणी, सरस्वती विहार, पटेल नगर, पंजावी बाग, राजौरी गार्डन के पानी में लवणता का आधिक्य है। विशेषज्ञों के अनुसार पानी में फ्लोराइड की अधिक मात्रा हड्डियों और दांतों को कमजोर कर देती है। इससे हड्डियों में मुड़ाव होने से लेकर जोड़ों में दर्द की दिक्कत होती है। आर्सेनिक की अधिक मात्रा से त्वचा रोग, नेत्र रोग, कैंसर, फेफड़ों और किडनी की बीमारी होती है। वहीं लवणता बढ़ने से ब्लड प्रेशर और पथरी की शिकायत हो सकती है। एक तो दिल्ली में भूजल और गहराई में जा रहा है, उस पर गुणवत्ता भी खराब हो रही है।

सीजीडब्ल्यूबी ने दिल्ली की 34 तहसीलों में भूजल का आकलन किया है, जिनमें से प्रत्येक को मूल्यांकन इकाई कहा जाता है। इन 34 मूल्यांकन इकाइयों में से 13 (38%) को ‘अति-दोहित’, 12 (35%) को ‘गंभीर’, चार (12%) को ‘अर्ध-गंभीर’ और पांच इकाइयों (15%) को ‘सुरक्षित’ श्रेणी में रखा गया।  राजधानी में भूजल की उपलब्धता सालाना 291.54 मिलियन घन मीटर है। पाताल खोद कर निकाले गए पानी से यहां 47 हजार पांच सौ हैक्टेयर खेत सींचे जाते हैं। 142 मिलियन घन मीटर पानी कारखानों और पीने के काम आता है। दिल्ली जल बोर्ड सालाना 100 एमजीडी पानी जमीन से निकालता है।

गुणवत्ता के पैमाने पर यहां का भूजल लगभग जहरीला हो गया है। जहां 1983 में यहां 33 फुट गहराई पर पानी निकल आता था, आज यह गहराई 132 फुट हो गई है और उसमें भी नाईट्रेट, फ्लोराईड और आर्सेनिक जैसे रसायन बेहद हानिकारक स्तर पर हैं। सनद रहे कि पाताल के पानी को गंदा करना तो आसान है, लेकिन उसका परिशोधन करना लगभग असंभव। जाहिर है कि भूजल के हालात सुधारने के लिए बारिश के पानी से रिचार्ज और उसके कम देाहन की संभावनाएं खोजनी होंगी और यहां से ज्यादा पानी नहीं लिया जा सकता।

आखिर, दिल्ली के गर्भ के जल को जहरीला कौन बना रहा है? महानगर  में  कूड़े  का सही तरह से प्रबंधन न होना। कूड़े  के तीन विशाल पहाड़ और उनका हर दिन बढ़ता कद, सारी दुनिया से वैध-अवैध तरीके से  इलेक्ट्रॉनिक कूड़े  का आना और उसके गैर- वैज्ञानिक तरीके से निस्तारण से उपजे  खतरनाक रसायन बहुत चुपके से धरती में गहरे तक समा  गए और जीवनदायी जल को जहर बना दिया। ई-कचरे के लगभग 97 फीसद को अवैज्ञानिक तरीके से जला कर या तोड़ कर कीमती धातु निकाली जाती हैं और शेष को यूं ही कहीं फेंक दिया जाता है। इससे रिसने वाले रसायनों का एक अद्श्य लेकिन भयानक तथ्य यह है कि इस कचरे की वजह से पूरी खाद्य श्रृंखला बिगड़ रही है। ई-कचरे के आधे-अधूरे तरीके से निस्तारण से मिट्टी में खतरनाक रासायनिक तत्त्व मिल जाते हैं, जो पेड़-पौधों के अस्तित्व पर खतरा बन रहा है। इसके चलते पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती और जिसका सीधा असर वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा पर होता है। पारा, क्रोमियम, कैडमियम, सीसा, सिलिकॉन, निकेल, जिंक, मैंगनीज, कॉपर आदि भूजल पर भी असर डालते हैं।

सबसे खतरनाक कूड़ा तो बैटरियों, कंप्यूटरों और मोबाइल का है। इसमें पारा, कोबाल्ट, और न जाने कितने किस्म के जहरीले रसायन होते हैं। कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं और धूल के कारण फेफड़े और किडनी, दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। एक कंप्यूूटर का वजन लगभग 3.15 किग्रा. होता है। इसमें 1.90 किग्रा. सीसा, 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता है, जो जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है। शेष हिस्सा प्लास्टिक होता है। इसमें से अधिकांश सामग्री ‘गलती-सड़ती’ नहीं है, और जमीन में जज्ब हो कर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने और भूगर्भ जल को जहरीला बनाने का काम करती है। ठीक इसी तरह का जहर बैटरियों और बेकार मोबाइलों से भी उपज रहा है। इनसे निकलने वाले जहरीले तत्व और गैसें मिट्टी और पानी में मिल कर उन्हें बंजर और जहरीला बना देते हैं। फसलों और पानी के जरिए ये तत्व हमारे शरीर में पहुंच कर बीमारियों को जन्म देते हैं।  

बैटरियों से निकलने वाला तेजाब, नालों  के रिसाव, वाहन प्रदूषण का बरसात या औंस के साथ मिल कर धरती पर गिरना और उसे सोख लिए जाने जैसे कई कारक हैं, जिनने धरती में जहर भर दिया। यहां के खेत और यमुना के कछार में सब्जी उगाने में बेशुमार रासायनिक खाद और कीटनाशकों के इस्तेमाल ने गहरे तक धरती की कोख के पानी को विष में बदला है। दिल्ली में जल आपूर्ति बगैर भूजल के संभव नहीं है, और ऐसे जल के सेवन से बड़ी आबादी के बीमार होने से लोगों पर आर्थिक-सामाजिक बोझ  बढ़ रहा है, इंसानी कार्य क्षमता और आर्थिक तंत्र भी गड़बड़ा रहा है। जरूरी है कि दिल्ली के आसपास 100 किमी. दायरे में कचरे की खंती बनाने, कचरा निष्पादन-खासकर इलेक्ट्रॉनिक  कचरे के-कड़ी और स्पष्ट नीति बने। इस समूचे इलाके में जैविक खेती अनिवार्य की जाए।
(लेखक के निजी विचार हैं)

पंकज चतुर्वेदी


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