पाकिस्तान : पूर्व सैनिक बनाए जा रहे आतंकवादी

Last Updated 23 Jul 2024 01:20:43 PM IST

पाकिस्तान ने एक बार फिर कश्मीर में आतंकवादी हमले तेज कर दिए हैं। धारा 370 के खात्मे के बाद घाटी के हालात में जबरदस्त सुधार देखते हुए पाकिस्तान ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है।


पाकिस्तान : पूर्व सैनिक बनाए जा रहे आतंकवादी

स्थानीय स्तर पर घाटी के मुस्लिम युवाओं ने आतंक की राह छोड़कर जब करियर बनाने की दिशा में पहल कर दी तो पाक की भारतीय सीमा में युवाओं को लालच देकर आतंकी बनाने की मंशा पर विराम लग गया।

अतएव अब उसने अपने ही पूर्व सैनिकों को पल्रोभन देकर आतंकी बनाकर घुसपैठ करानी शुरू कर दी। नतीजतन भारतीय जमीन पर एक बार फिर से आतंकी घटनाओं का सिलसिला तेज हो गया। जम्मू-कश्मीर के डोडा जिले में आतंकियों के साथ मुठभेड़ में एक सेना के कप्तान समेत पांच जवान शहीद हो गए। सुरक्षाबल निरंतर आतंकियों को मार गिरा रहा है। बावजूद घुसपैठ का सिलसिला बना हुआ है, जो देश और सेना के लिए चिंता का सबब है। सुरक्षा एजेंसियों के सूत्रों के मुताबिक घाटी में करीब डेढ़ माह से जारी आतंकी हमलों में पाकिस्तानी सेना के पूर्व सैनिकों की लिप्ता के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। एजेंसियां इसका यह भी मानकर चल रही हैं कि घाटी में भारी मतदान के बाद पाकिस्तान हताशा के दौर से गुजर रहा है।

उसे आशंका है कि कहीं विधानसभा चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर प्रांत में लोकतंत्र की बहाली न हो जाए? इसलिए वह घाटी में हमलों के जरिए माहौल खराब करके दहशत का वातावरण रचने में लगा है। अलगाववादी सुर का आलाप करने वाले मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार को मतदाता ने हराकर यह साबित कर दिया कि घाटी के हालात बदतर करने में इन परिवारों की भूमिका अहम रही है। इससे पाक ने शायद अंदाजा लगाया है कि विधानसभा चुनाव के बाद घाटी में जो प्रजातांत्रिक सरकार बनेगी, वह पाक की मंशा के अनुरूप चलने वाली नहीं है। इसलिए माहौल खराब करके चुनाव को टला जाए।

इस बीच पाकिस्तान की फंडिंग से घाटी की तरह जम्मू क्षेत्र में आतंकियों की मदद करने वाले ओवर ग्राउंड कार्यकर्ताओं का एक नेटवर्क भी तैयार किया है। इसे सेना ध्वस्त करने में लगी है। डोडा किश्तवार, पुंछ, राजौरी, रियासी और कठुआ के कठिन भौगोलिक इलाकों में पिछले दो दषक में जैश-ए-मोहम्मद और लश्करे तैयबा ने ओवर ग्राउंड वार्कर नेटवर्क खड़ा किया था। यह अंततरराष्ट्रीय सीमा और नियंत्रण रेखा से आने वाले आतंकियों को घाटी के सुरक्षित स्थानों तक पहुंचाने का काम करता था। घाटी में रहने वाले ये वार्कर घने वनों और दुर्गम इलाकों में छोटे-छोटे घर बनाकर रह रहे हैं।

रियासी जिले में हिंदू भक्तों की बस पर गोली चलाने वाले आतंकियों को इन्हीं ओवर ग्राउंड वर्कर ने मदद की थी। भारतीय सेना के अनुसार ओवर ग्राउंड वार्का वे लोग होते हैं, जो उग्रवादी या आतंकवादियों को रसद, नकदी, आश्रय और अन्य रहने लायक बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराते हैं। सेना इस नेटवर्क को नष्ट कर रही है।  पाक सेना कितनी दगाबाज है, इसका खुलासा पाक के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल एवं पाक खुफिया एजेंसी आईएसआई के पूर्व अधिकारी शाहिद अजीज ने ‘द नेशनल डेली’ में किया था।

इसमें कहा गया था कि कारगिल युद्ध में पाक आतंकवादी नहीं, बल्कि उनकी वर्दी में पाकिस्तानी सेना के नियमित सैनिक ही लड़ रहे थे और इस लड़ाई का लक्ष्य सियाचिन पर कब्जा करना था। चूंकि यह लड़ाई बिना किसी योजना और अंतरराष्ट्रीय हालात का अंदाजा लगाए बिना लड़ी गई थी, इसलिए तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज मुशर्रफ ने पूरे मामले को रफा-दफा कर दिया था। इससे यह तथ्य तो प्रमाणित होता है कि पाकिस्तानी फौज इस्लामाबाद के पूरे नियंत्रण में नहीं है। आतंकी सरगना हाफिज सईद भारत-पाक सीमा पर खुलेआम घूम रहा है। जैश, लश्कर और हिजबुल के आतंकी दहशतगर्दी फैलाने में शरीक हैं।’

पाकिस्तान पूर्व सैनिकों को आतंकी बना रहा है। इसका सत्यापन इस तथ्य से भी होता है कि हाल ही में मारे में जिन आतंकियों से खतरनाक हथियार बरामद हुए हैं, उनका संचालन आसानी से सेना से प्रशिक्षित व्यक्ति ही कर सकता है। इन हथियारों में एम-4 कार्बाइन, 509 टैक्टिगल गन और एम-1911 और स्टेयर एयूजी रायफल बरामद हुई हैं। आतंकियों के पास से अल्ट्रा और माइक्रो रेडियो सेट भी बरामद हुए हैं। इनके नेटवर्क में सेंध लगाना आसान नहीं है। ये उपकरण भी अमेरिका द्वारा निर्मिंत हैं।

अफगानिस्तान में नाटो सेनाओं ने इन हथियारों का इस्तेमाल किया था। अतएव ऐसी आशंका है कि अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना द्वारा छोड़े गए हथियार अब जम्मू-कश्मीर में सक्रिय आतंकियों तक पहुंच रहे हैं। यदि यह तथ्य एक ठोस सच्चाई है तो कश्मीर में आतंकी हिंसा का दुश्चक्र बढ़ता दिखाई दे सकता है? दरअसल, ये हथियार पाकिस्तान के जरिए भी आतंकियों को मिल सकते है और सीधे अफगानिस्तान से भी लाए जा सकते हैं। भारतीय एजेंसियों को ऐसी सूचनाएं भी मिली हैं, कि इन्हें तालिबान सीधे आतंकियों को आर्थिक बदहाली दूर करने के लिए बेच भी रहा है। पिछले चार वर्ष से आतंकियों के पास स्टेयर एयूजी रायफल होने के सूचनाएं मिल रही थीं।

प्रमोद भार्गव


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