मौसम परिवर्तन : बच्चों पर जानलेवा कहर
हाल के अध्ययनों से पता चला है कि भारत में हर घंटे औसतन 345 नवजातों का समय से पहले जन्म हो रहा है यानी मां के गर्भ में शिशु का नौ महीने तक विकास होता है, तब जन्म लेता है, पर अब ऐसी स्थिति में बदलाव हो रहा है, जिससे ‘प्री टर्म बर्थ’ बढ़ रहे हैं।
मौसम परिवर्तन : बच्चों पर जानलेवा कहर |
देखें तो विश्व में हर दो सेकंड में एक नवजात का समय से पहले जन्म हो रहा है। और हर 40 सेकंड में इनमें से एक की मौत हो रही है। इस गंभीर समस्या को फ्लिंडर्स विश्वविद्यालय से जुड़े शोधकर्ता सामने लाए हैं। शोध के निष्कर्ष ‘साइंस ऑफ द टोटल एनवायरमेंट’ में प्रकाशित हुए हैं। नवजात शिशुओं का समय से पहले मां के गर्भ से बाहर आना जलवायु परिवर्तन के कारण माना जा रहा है।
जलवायु में आ रहे ऐसे बदलाव का सीधे तौर पर संबंध बच्चों की सेहत से जुड़ा है। तापमान में निरंतर बढ़ोतरी होने से न केवल प्री टर्म बर्थ हो रहे हैं, बल्कि शिशुओं की मृत्यु दर भी बढ़ रही है। ऐसी ही शेध जर्मनी के पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च के शोधकर्ताओं ने 29 निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर किए। एक शोध के अनुसार, चार प्रतिशत से अधिक नवजातों की मृत्यु जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाले अधिकतम और न्यूनतम तापमान से जुड़ी है।
ये निष्कर्ष ‘नेचर कम्युनिकेशन’ पत्रिका में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार पिछले 18 वर्षो में एक लाख 75 हजार नवजातों की मौत उन 29 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में चार फीसद में से औसतन 1.5 फीसद सालाना नवजात मौतें अत्यधिक तापमान से जुड़ी थीं। वहीं करीब तीन फीसद अत्यधिक ठंड से हुई थीं। इसके अलावा, 18 वर्ष की इस अवधि में नवजात शिशुओं में गर्मी से जुड़ी 32 फीसद मौतों के लिए जलवायु परिवर्तन जवाबदेह है। इसका मतलब है कि इस दौरान नवजात शिशुओं की गर्मी से जुड़ी कुल मौतों में से 1 लाख 75 हजार से अधिक मौतें जलवायु परिवर्तन के कारण मानी जा रही हैं।
शोध के आंकड़ों के अनुसार, पहले नवजात शिशुओं का जलवायु परिवर्तन की वजह से 2001 से 2019 के दौरान औसत सालाना तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है। दूसरा नवजात शिशुओं की शरीर तापमान नियंत्रण की क्षमता अधूरी होती है। उनका शरीर गर्मी पर काबू पाने के लिए पूरी तरह से विकसित नहीं होता। उच्च चयापचय और पसीने की दर कम होने से उन्हें शरीर से अतिरिक्त गर्मी को निकालना कठिन हो जाता है। तीसरी स्थिति में शोधकर्ताओं का मानना है कि उप-सहारा अफ्रीकी देशों में अत्यधिक तापमान की वजह से नवजात शिशुओं की मौतों पर ग्लोबल वार्मिग का सबसे अधिक असर देखा गया है।
चौथी स्थिति में पाकिस्तान, माली, सिएरा लियोन और नाइजीरिया में तापमान से जुड़ी नवजात शिशु मृत्यु दर सबसे अधिक थीं। इनमें एक लाख जीवित जन्मों में से 160 से अधिक मौत बढ़े हुए तापमान से हुई। 2019 में विश्व भर में 24 लाख नवजात शिशु मौतें हुई। इनमें से 90 फीसद से अधिक नवजात मृत्यु निम्न और मध्यम आय वाले देशों विशेषकर उपसहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया में हुई। मौसम परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है, पर उस परिवर्तन में हम तेजी से बदलने के लिए उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं। मनुष्य की इच्छाएं तेजी से बढ़ रही हैं और परिवर्तित भी हो रही हैं। इस परिवर्तन में तेजी लाने का कारण हमारी तकनीकी सहायक हो रही हैं। तकनीकी का विकास मानव मस्तिष्क की खोजी प्रवृति है। इस खोज में हम भूल रहे हैं कि प्रकृति का दोहन एकदम नहीं, बल्कि धीरे-धीरे करना होगा।
वैज्ञानिक उपलब्धियों से तो हम दौड़ में आगे बढ़ रहे हैं, लेकिन इस दौड़ में प्रकृति के साथ संतुलन भी करना होगा। हम इस अच्छी तरह से जानते हैं कि पृथ्वी पर वनस्पतियों और वृक्षों का संतुलित अनुपात में होना आवश्यक है। वन धरती की प्यास बुझाते हैं, लेकिन वनों की हमने कटाई इस तरह से कर दी है कि कार्बन डाइआक्साइड और आक्सीजन का संतुलन ही हम मिटाने पर तुले हैं। मानसून पर ही यदि हम एक दृष्टि डालें, तो पता चलेगा जिन पर्वतों पर वृक्ष और वन होते थे, वे समाप्ति की ओर हैं।
पहाड़ों के बड़े वृक्ष भूमि का कटाव नहीं होने देते थे। उनकी जड़ें मजबूती से पहाड़ों की मिट्टी में धंसकर वष्रा के जल को एकदम मैदानों की तरफ नहीं आने देती थीं, जिसकी वजह से नदियों में जलस्तर एक ही बरसात से खतरे से ऊपर नहीं होता था। वह स्थिति आज नहीं रही है। वनों से ऐसे पेड़, जो मैदानी भागों की सुरक्षा कवच का काम करते थे, कट चुके हैं। संतुलित वातावरण कहीं पर नहीं मिल पा रहा है जिसके कारण जिन नवजात पर मृत्यु का कहर ढह रहा है, उसको रोक पाने में हम अक्षम हैं। सरकार कोई भी आए और जाए, जब तक नियोजित विकास का रास्ता नहीं अपनाएंगे तब तक प्राकृतिक आपदाएं मुंह बायें खड़ी रहेंगी।
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