खेल : अनूठी शख्सियत के मालिक
खेल पत्रकार हरपाल सिंह बेदी एक ऐसी शख्सियत थे, जो कम ही देखने को मिलती है। वह अब हमारे बीच नहीं रहे पर उनके साथ बिताए चार दशकों की ऐसी यादें हैं, जिन्हें भुलाना संभव नहीं है।
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उनका 15 जून को लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। बेदी साहब से जब भी मुलाकात होती थी, तो उनके चेहरे पर मंद सी मुस्कान होती थी, जिसमें मजा लेने वाला पुट हुआ करता था। वह बहुत ही हंसमुख स्वभाव के थे पर इस अंदाज के बीच ही कई बार कुछ ऐसे सवाल पूछ लेते थे, जिसका सामने वाले के पास कोई जवाब नहीं होता था।
हमें एक किस्सा याद आ रहा है। यह बात नरसिंह राव के प्रधानमंत्री रहने के दिनों की है। उन दिनों एक दिन भारत के महान टेनिस प्लेयर विजय अमृतराज ने राजधानी दिल्ली के सभी खेल पत्रकारों को होटल ताज मानसिंह में अपने स्युइट में बुलाया। विजय अमृतराज ने कहा कि ‘मैंने भारत में खेलों की प्रगति के लिए एक योजना बनाई है, जिसे मैं प्रधानमंत्री नरसिंह राव को सौंपने जा रहा हूं।’
इस संबंध में तमाम पत्रकारों ने उनसे सवाल पूछे पर बेदी साहब ने उनसे कहा कि कल आप अखबारों में अच्छे से छप जाएंगे। पर योजना का क्या हुआ हम किसी को मालूम भी नहीं पड़ना है, क्योंकि आप अमेरिका जा चुके होंगे। सही में, ऐसा ही हुआ, क्योंकि अगले दिन सभी अखबारों में विजय अमृतराज की खेल योजना को लेकर तीन-तीन, चार-चार कॉलमों में खबर थी। पर उस योजना का क्या हुआ आज तक कोई नहीं जानता है।
जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज से पढ़े हरपाल सिंह बेदी की खेल पत्रकारिता में धमक होती थी। उनकी एक सबसे बड़ी खूबी थी कि वह वरिष्ठ खेल पत्रकारों से संपर्क में रहते ही थे पर उन्हें युवा पत्रकारों के साथ भी अक्सर मजाक करते देखा जा सकता था। वह अपनी स्टोरी को भेजने में राजधानी एक्सप्रेस जैसी तेजी में विश्वास करते थे।
हमें याद है कि 1980 के दशक में जम्मू में राष्ट्रीय हॉकी चैंपियनशिप का आयोजन हुआ था। उस जमाने में यूएनआई और पीटीआई ही दो समाचार एजेंसी हुआ करती थीं। बेदी साहब यूएनआई में थे और पीटीआई से केवी प्रसाद इस चैंपियनशिप को कवर कर रहे थे। प्रसाद के खेल संपादक ने पहले हर मैच की रिपोर्ट भेजने और फिर लीड बनाने के लिए कहा हुआ था। इस कारण प्रसाद पूरे दिन खबर बनाने में व्यस्त रहते थे।
पर बेदी साहब मैच खत्म होते प्रसाद से मैचों की डिटेल लेकर चार-पांच पैरे की स्टोरी भेज देते और अगले दिन सभी अखबारों में बेदी साहब ही छपे होते। हरपाल सिंह बेदी ने आठ ओलंपिक खेलों और करीब इतने ही एशियाई खेलों को कवर किया हुआ था। इसके अलावा तमाम कॉमनवेल्थ गेम्स और हॉकी विश्व कप कवर किए हुए थे। पर बेदी साहब पर ही यूएनआई की खेलों की सारी जिम्मेदारी होने की वजह से वह मैचों में समय पर कम ही पहुंचते थे। वह आते ही अक्सर ऐसे शख्स के पास जाते थे, जिसने ज्यादातर मैचों को देखा हो। वह उसे पूरी डिटेल लेते और उस पत्रकार के स्टोरी करने के लिए दफ्तर पहुंचने से पहले उसके दफ्तर में हरपाल सिंह बेदी की स्टोरी पहुंच जाया करती थी।
एक बार तो नेहरू हॉकी में सब जूनियर टूर्नामेंट में 30-30 मिनट के हाफ हो रहे थे। पर बेदी साहब ने 35-35 मिनट के हाफ से स्टोरी बना दी। अगले दिन उनका जब इस तरफ ध्यान दिलाया गया तो उनका कहना था कि मेरी स्टोरी ज्यादातर अखबारों में छपी है और तुम एक-दो लोगों के सही छापने पर भी सब लोग सही हमें ही मानेंगे। बेदी साहब अपने बेबाक अंदाज की वजह से विभिन्न चैनलों के खेल कार्यक्रमों में भी अक्सर जाया करते थे। इन कार्यक्रमों में वह कई बार ऐसी बातें बोला करते थे, जिस बारे में साथी लोग सोचते तक नहीं थे। मैंने उन्हें किसी भी कार्यक्रम में जाने से पहले तैयारी करते कभी नहीं देखा।
हॉकी का उनका अनुभव लाजवाब था और वह कई बार देश की हॉकी को कैसे सुधारा जाए, इस पर चर्चा भी करते थे। वह अपनी बात कहने में गुरेज नहीं करते थे, चाहे वह आपको अच्छी लग रही है या नहीं। एक बार कुछ खेल पत्रकारों की पिटाई होने के बाद दिल्ली खेल पत्रकार संघ की बैठक में कहा गया कि इस तरह की घटनाएं प्रेस कांफ्रेंस में शराब पीने की वजह से होती हैं और कई बार लोग गिफ्ट के लालच में चले जाते हैं।
इसलिए प्रेस कांफ्रेंसों में शराब पीने और गिफ्ट लेने पर रोक लगाई जाए। बेदी साहब ने इसका विरोध करते हुए कहा कि जब शराब पीनी नहीं है और गिफ्ट भी नहीं लेना है तो वहां जाने की जरूरत ही क्या है। आयोजकों से कहा जाए कि वे सारे अखबारों में एक हैंडआउट भेज दें। इसके बाद प्रस्ताव मजाक में उड़ गया और प्रेस कांफ्रेंसों का सिलसिला उसी तरह चलता रहा। हरपाल सिंह बेदी जैसी शख्सियत कभी कभी ही आती हैं। वह भले ही अब हमारे बीच नहीं हैं पर उनके जीने के अंदाज ऐसा निराला था कि कभी भी भुलाए नहीं जा सकेंगे।
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