उत्तर प्रदेश : कई मोर्चे पर लड़ना होगा
हम से का भूल हुई जो ये सजा हमका मिली, अब तो चारों ही तरफ बंद है दुनिया की गली।’ हालांकि राजनीति में कभी गली और दरवाजे बंद नहीं होते। भारतीय जनता पार्टी के लिए सारे दरवाजे और गलियां खुली हुई है। सरकार के गठन की तैयारियां चल रही है।
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विपक्ष जश्न में डूबा है। हां सत्ता पक्ष जरूर चिंतन की मुद्र में है। हां, यह सवाल जरूर खड़ा हो गया है कि आखिर क्यूं राम राज्य की सबसे बड़ी संकलपना वाले राज्य में भाजपा को तमाम राजनैतिक प्रयोग के बावजूद इतने बड़े उलटफेर का सामना करना पड़ा। जब इस बात की तह में जाते हैं तब समझ आती है कि भाजपा ने उम्मीदवारों के नाम जल्दी घोषित किए पर कार्यकर्ताओं की राय नहीं ली, राम का साथ लिया पर संघ की अवहेलना की, सर्वे किया पर खुद को सर्वोत्तम समझा।
संविधान बचाओ के आगे फेल हुआ हिंदुवाद का नारा , दलित मुस्लिम गोलबंदी
भारतीय जनता पार्टी के इन निर्णयों के अलावा आरक्षण और संविधान बदलने वाले नेताओं के बेलगाम बयानों ने भी नुकसान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। पिछले लोक सभा-विधान सभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश में बसपा के कैडर से अलग गैर-जाटव को वोट को लाने में सफलता हासिल की थी इन बयानों की वजह से वह समाजवादी और कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुए। इससे उन्हें फायदा भी हुआ। कांग्रेस के संविधान बदलने वाले नैरेटिव को यदा-कदा आने वाले इन बयानों से भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा शबरी के घर जा कर खाना खाने से भी बदलना मुश्किल रहा। उत्तर प्रदेश जैसे दलित-मुस्लिम बहुल वाले राज्य में संविधान बचाओ के नारे ने दलित-मुस्लिम समुदाय के वोटरों को किया गोलबंद। मुस्लिम इसलिए गोलबंद हुए कि उनको लगा कि संविधान, कांग्रेस या समाजवादी ही उन्हें बचा सकते हैं। यही कारण रहा कि भारतीय जनता पार्टी को मुस्लिम समुदाय का वोट नहीं मिला। मोदी जी के बयान की ‘जब तक मैं जीवित हूं दलित आरक्षण में कटौती कर मुस्लिम समुदाय को नहीं देने दूंगा।’ यह नैरेटिव सेट कर दलित वोट बैंक को रिझाने की कोशिश की गई, लेकिन संविधान बचाओ के आगे यह बहुत कारगर नहीं हुआ।
असंतोष और आस्था
भारतीय जनता पार्टीकी सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के बाद ये ज्यादातर नेताओं ने मान लिया था कि हम देश के किसी कोने में हार सकते हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में नहीं, नतीजन यहां के स्थानीय नेताओं की शीर्ष नेतृत्व की ओर से अनदेखी की गई और स्थानीय स्तर का संवाद टूट गया। संवादहीनता की इस स्थिति का असर हुआ कि कार्यकर्ताओं में हताशा निराशा का भाव बढ़ा। इसका असर मतदान में भी दिखा। मंदिर निर्माण में लगे हजारों-करोड़ों लोगों ने राम के लिए आस्था दिखाई पर हताशा निराशा के कारण वोट में तब्दील नहीं हो पाई। भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लोगों को राम के साथ-साथ कार्यकर्ताओं में भी आस्था दिखानी होगी, नहीं तो हर बार मुंह की खानी होगी ।
मायावती से इनकार, चंद्रशेखर से इकरार
उत्तर प्रदेश चुनाव में मायावती एक मजबूत फैक्टर रहीं हैं। हर बार जो जनता मायावती और समाजवादियों से विमुख होकर भारतीय जनता पार्टी की तरफ जाती थी इस बार जनता ने उन्हें इनकार कर चंद्रशेखर से इकरार कर लिया। भाजपा के लिए मायावती का घटता जनाधार और चंद्रशेखर की बढ़ती शाख भी इस चुनाव में हार की मुख्य वजह रही है। मायावती के समर्थक ज्यादातर उनके वोटर भी रहें । संविधान और तमाम मसलों को लेकर मायावती के मौन ने उन वोटर्स को निराशा के घेरे में छोड़ दिया जिसके भरोसे वो खुद को सुरक्षित महसूस कर रहे थे, जिसके कारण उस वोट का बंटवारा हो गया। अब केवल जाटव नहीं बल्कि तमाम दलित समुदाय खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा और विरोधियों द्वारा संविधान बचाओ, संविधान खतरे में है, आरक्षण खत्म हो जाएगा, चुनाव नहीं होंगे जैसे नैरेटिव की ओर झुका और जो जाटव समुदाय मायावती के अलावा किसी को नेता मानने को तैयार नहीं था, समाजवादी की ओर देखना नहीं चाहता था कुछ समय तक वो भाजपा का वोटर रहा, लेकिन इस बार उसने मायावती से तौबा कर लिया और चंद्रशेखर से सम्झौता कर लिया। अब तक हो ये रहा था कि मायावती जाटव वोट को एकत्र कर रही थी और गैर जाटव वोट भाजपा को जा रही थी । कांग्रेस समाजवादी की इन वोटर्स से दूरी बनी हुई थी। इस बार कांग्रेस और समाजवादी पार्टी इन वोटर्स को अपने पक्ष में लाने में सफल रही।
कठिन है डगर, घटक दलों के साथ दिखेगा विपक्ष का असर
उत्तर प्रदेश के चुनावी नतीजे का असर कितना गहरा हुआ कि गर्त में डूबा विपक्ष आज सरकार बनाने की स्थिति में आ पहुंचा है। मोदी जी के चार सौ के नारे की हवा तक निकालने का दावा करने लगा है। मोदी सरकार के बहाने से अब योगी सरकार पर प्रहार करता रहेगा। अब तक तंत्र का दबाव झेल रहा विपक्ष अब हमलावर होगा। अब वो सवाल-जवाब की स्थिति में होगा। मोदी जी के तीसरे काल में उनके बयान की भ्रष्टाचार को लेकर सख्त होगी। हमारी सरकार पर अभी से कांग्रेस समेत तमाम विरोधी दलों ने कहना शुरू कर दिया है कि क्या मोदी सरकार अभी तक भ्रष्टाचार पर सख्त होने के लिए तीसरे कार्यकाल का इंतेजार कर रही थी या ये भी और नारे की तरह सिर्फ जुमला था। कोई कह रहा है मोदी को जनता ने नकार दिया है तो कोई कह रहा है अब मोदी का करिश्मा खत्म हो गया तो कोई मोदी से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मांग रहा है।
आने वाले दिनों में बढ़ेंगी मुसीबतें
राज्य सरकारों को दबाव में लाने की रणनीति पर लगेगा अंकुश। केंद्र में सरकार कमजोर होगी तो राज्य में इसका असर दिखेगा। उत्तर प्रदेश की सरकार की हिन्दू मुस्लिम नीति है उसको लेकर भी सवाल खड़े रहेंगे। केंद्र में घटक दल तेलगु देशम की मुस्लिम समुदाय को चार प्रतिशत आरक्षण की नीति बिलकुल साफ है, क्या केंद्र में रहते हुए भाजपा देश के अन्य हिस्से में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ किसी भी बयान को लेकर मौन रहेगी। जातीय जनगणना को लेकर नीतीश कुमार क्या खामोश रहेंगे? ऐसे कई सवाल हैं जिनका उत्तर वक्त के गर्भ में है पर इन सब सवालों का जवाब भाजपा को तलाशनी होगी। नहीं तो कठिन होगी डगर, घटक दलों के साथ-साथ दिखेगा विपक्ष का असर।
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