रईसी की मौत : जब तब सुनाई देगी प्रतिध्वनि
ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी (Ebrahim Raisi) की हेलिकॉप्टर दुर्घटना में हुई मृत्यु के बाद पूरी दुनिया कशमकश की स्थिति में है। दुनिया के किसी कोने में कोई हलचल नहीं। कोई प्रतिक्रिया नहीं।
रईसी की मौत : जब तब सुनाई देगी प्रतिध्वनि |
मध्य-पूर्व स्तब्ध है! यूरेशिया में सन्नाटा है और अमेरिका के भीतर आश्चर्यजनक चुप्पी है। लगता है तमाम छोटे-बड़े राष्ट्रों ने खुद को सभ्यता के एक ऐसे खोल में छुपा लिया है, जहां गैर जरूरी शब्दों की गूंज सुनाई न दे सके।
क्या कारण है इब्राहिम रईसी जैसे अतिरूढ़िवादी मौलवी और ‘ईरानी कसाई’ कि मौत पर अच्छी या बुरी कोई प्रतिक्रिया नहीं। हालांकि, अभी तक जो कुछ निकलकर आया है, उसके मुताबिक खराब मौसम की वजह से हेलिकॉप्टर हादसे का शिकार हुआ है, लेकिन जिस तरह से रईसी ने इस्रइल और अमेरिका के प्रति सख्त रूख अपनाया हुआ था उसे देखते हुए हादसे में किसी साजिश की आशंका जताई जा रही है। पहला सवाल यह है कि रईसी के काफिले में शामिल दो अन्य हेलिकॉप्टर सही सलामत अपने गंतव्य तक कैसे पहुंच गए। दूसरा, जिस तरह से पिछले चार वर्षो में एक के बाद एक ईरान के कई बड़े नेताओं की हत्याएं हुई है उससे भी षड्यंत्र से इनकार नहीं किया जा सकता है। जनवरी 2020 में ईरानी कुर्द सेना के जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिका ने बगदाद इंटरनेशन एयरप्रोर्ट पर ड्रोन से हमला कर हत्या कर दी थी।
सुलेमानी की मौत के कुछ समय बाद ईरान के मुख्य परमाणु वैज्ञानिक मोहसिन फखरीजादेह की भी हत्या कर दी गई। फखरीजादेह की हत्या के लिए ईरान आज भी इस्रइल की खुफिया एजेंसी मोसाद को दोषी मानता है। इससे पहले 2010-12 के बीच में ईरान के चार परमाणु वैज्ञानिकों की रहस्मय ढंग से मौत हो गई थी। इन तमाम घटनाओं के आलोक में यह कहा जा सकता है कि रईसी की मौत को महज दुर्घटना मानकर ईरान स्वीकार कर लेगा इसकी संभावना कम ही है।
सवाल यह है कि एक के बाद एक हुई घटनाओं के बावजूद ईरान ने अब तक सबक क्यों नहीं लिया? हर समय शत्रु देशों की खुफिया एजेंसियों की नजर में रहने वाला ईरान वीवीआईपी मूवमेंट के दौरान रखी जाने वाली जरूरी सावधानी या गोपनीयता क्यों नहीं रख पाया। रईसी की मौत कहीं ईरानी खुफिया एजेसियों की लीक का परिणाम तो नहीं। क्या ईरान इस बात को नहीं जानता कि इस्रइल लंबे समय से अजरबैजान के जरिए ही उसकी नाभिकीय गतिविधियों पर नजर रखे हुए था। रईसी साल 2021 में उस वक्त ईरान की सत्ता में आए जिस वक्त ईरान आंतरिक असहमति और पश्चिमी ताकतों के साथ दो-दो हाथ कर रहा था। अमेरिका द्वारा ऐतिहासिक परमाणु समझौते से हटने और कोविड-19 प्रकोप के कारण देश गंभीर आर्थिक चुनौतियों से घिरा हुआ था। लचर अर्थव्यवस्था और मुद्रा संकट के चलते व्यापार उद्योग बुरी तरह प्रभावित हो रहा था। कैंसर व डायबिटीज की दवाओं की भारी किल्लत थी।
ईरान के केंद्रीय बैंक पर वैश्विक प्रतिबंध के कारण दवा कंपनियां ईरान से व्यापार करते हुए कतरा रही थी। दूसरी ओर अमेरिका ने रईसी पर व्यक्तिगत तौर पर भी प्रतिबंध लगा रखे थे। साजिश का एक कोण ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला खामेनेई के बेटे की तरफ भी जाता हुआ दिखाई दे रहा है। रईसी को खामेनेई का बेहद करीबी माना जाता था। यहां तक की रईसी को खामेनेई के उत्तराधिकारी के तौर पर भी देखा जाता था। 1989 में सुप्रीम लीडर बनने से पहले खामेनेई भी ईरान के राष्ट्रपति का पद संभाल चुके हैं।
पिछले दिनों ही खामेनेई ने रईसी को अत्यधिक अनुभव वाला भरोसेमंद व्यक्ति कहा था। इसके बाद अटकलें लगाई जा रही थी कि खामेनेई रईसी को अपने उत्तराधिकारी के रूप में प्रस्तुत करेंगे। दूसरी ओर खामेनेई के बेटे मोजतबा अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाना चाहते हैं। रईसी उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती थे। निसंदेह रईसी की मौत के बाद मोजतबा के मार्ग का एकमात्र कांटा अपने आप साफ हो गया है। अक्टूबर 2023 में इस्रइल-हमास युद्ध शुरू हुआ। इराक और सीरिया में ईरान समर्थित मिलिशिया ने अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाया है। इस्रइल ने सीरिया में ईरान के वाणिज्य दूतावास पर हमला किया। इस हमले के बाद ईरान ने भी इस्रइल को सबक सिखाने के लिए इसी अप्रैल में ड्रोन और मिसाइलों से हमला किया था। तकरीबन सात माह के इस्रइल-हमास युद्ध में यह पहला अवसर था जब ईरान और इस्रइल ने एक-दूसरे पर सीधे हमले किए हैं।
कुल मिलाकर कहा जाए तो गजा युद्ध में रईसी की भूमिका सकारात्मक नहीं थी। उनके नेतृत्व में ईरान लगातार उकसाने वाली कार्रवाई को अंजाम दे रहा था। वह अमेरिका और इस्रइल के टारगेट पर तो थे ही। ऐसे में शक की सुई इस्रइल के साथ-साथ अमेरिका की ओर भी घूमना स्वाभाविक ही है। हालांकि, इस्रइल का कहना है कि हेलीकाप्टर हादसे में मोसाद का लेना-देना नहीं है। अमेरिका की ओर से अभी तक कोई बयान नहीं आया है। दूसरा ईरान को भी अभी तक कोई ऐसे सबूत नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर वह सीधे-सीधे साजिश के लिए अमेरिका या इस्रइल को कठघरे में खड़ा कर सके। 64 साल के इब्राहिम रईसी ईरान के भीतर खासे लोकप्रिय नेता थे। विदेश नीति के मोर्चे पर उन्होंने ईरान को काफी बैलेंस किया। उन्होंने चीन, रूस और सउदी से रिश्ते मजबूत बनाए। पाकिस्तान से कई समझौते किए। भारत से भी चाबहार समझौता किया। बेहतर विदेश नीति के सर्जक होने के बावजूद इतिहास उन्हें लोकतंत्र और व्यक्तिगत आजादी को कुचलने वाले एक क्रूर शासक के तौर पर जानता है।
वर्ष 2022 के अंत में ईरान की मोरल पुलिस की हिरासत में 22 साल की महसा अमिनी की मौत उनके क्रूर शासन का सबसे बड़ा उदाहरण है। हिजाब के विरुद्ध खड़ी महसा अमिनी की मौते के बाद ईरान में प्रदशर्नों को जो सिलसिला शुरू हुआ उसने ईरान को महीनों तक हिलाये रखा। रईसी शासन ने अशांति फैलाने के आरोप में सात लोगों को सार्वजनिक रूप से फांसी दी थी। 500 से ज्यादा लोगों को गुपचुप ढंग से मरवा देने के आरोप रईसी पर है। खैर! यह दुनिया और उसके रहनुमाओं का अपना मामला है। हादसे की असल वजह जो भी रही हो व्यापक जांच के बाद सामने आ ही जाएंगी, लेकिन मध्य पूर्व की शांति के लिहाज से घटना छोटी नहीं है। इसकी प्रतिध्वनि जब-तब सुनाई देती रहेगी।
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