मुद्दा : संवरी दिल्ली से बेदर्दी ठीक नहीं
ऐसे संवरने का क्या फायदा, जो दिल में उतरने से पहले उजड़ गए।’ जी-तोड़ मेहनत, दिन-रात की मशक्कत। करोड़ों-अरबों का खर्चा और रातों की नींद हराम करके; दिल्ली को जिन हजारों हाथों ने सजाया-संवारा, उन्हें जी-20 शिखर सम्मेलन के महज 2 हफ्ते बाद ही अपनी दिल्ली को देखकर कैसा लग रहा होगा?
मुद्दा : संवरी दिल्ली से बेदर्दी ठीक नहीं |
जी हां, दिल्ली के अलग-अलग इलाकों की तस्वीर इस बात को बयां कर रही हैं कि चंद दिनों बाद ही दिल्ली फिर कैसे उजड़ने लगी है। फुटपाथ के किनारे लगी स्ट्रीट लाइट टूट गई हैं। सड़क किनारे रखे गमले गायब हो गए हैं। कई ऐतिहासिक स्मारकों के आगे फिर अतिक्रमण हो गया है। पार्क बदहाल हो उठे हैं। अस्पतालों के आगे जाम तो लाल किले के पास रेहड़ी-पटरी वालों ने दोबारा डेरा जमा लिया है।
आपके रिश्तेदार या जानकार, जो जी-20 देखने ‘भारत मंडपम’ तक नहीं पहुंच पाए थे, भले ही प्रगति मैदान वाली सड़क से उसकी सेल्फी ले रहे हों, मगर उन्हें दिल्ली आकर जबरदस्त निराशा हुई है। जिन स्मारकों या भवनों को खूबसूरत दिखने के लिए बेहतरीन व्यवस्था की गई थी, वे आज फिर से पूर्व की स्थिति में पहुंच गए हैं, न वह लाइटिंग है, न वह शाइनिंग। जी-20 शिखर सम्मेलन की चर्चा दुनिया भर में रही, भारत का नाम रोशन हुआ। मगर इतने बड़े आयोजन के बाद दिल्ली की हालत पहले ही जैसी हो जाए। यह बेहद निराशाजनक है। हम इसे विकास के कदम कहीं से भी नहीं ठहरा सकते। दिल्लीवासी ऐसे में ठगा सा महसूस कर रहे हैं।
हालांकि इसमें केवल सरकार का ही दोष नहीं है। दोष हम सबकी है। साफ-सुथरी दिल्ली बनाए रखने के लिए यहां के नागरिक भी उतने ही जिम्मेदार हैं। जब तक अपने कर्त्तव्यों को लेकर दिल्ली के नागरिक जिम्मेदार नहीं बनेंगे, तब तक दिल्ली का भला नहीं हो पाएगा। जी-20 के बाद हालांकि दिल्ली सरकार ने कहा है कि-जिस प्रकार जी-20 शिखर सम्मेलन के लिए पूरी दिल्ली को संवारा गया और विकास के नये प्रतिमान गढ़े गए, उसे दिल्ली सरकार आगे भी जारी रखेगी और दिल्ली के बाकी इलाकों में भी इस स्तर का विकास कर करेगी। इस भरोसे से दिल्लीवासियों की आस भी बंधी है।
सवाल यह है कि दिल्ली के नागरिकों को आखिर, कैसे उनके कर्त्तव्य को समझाया जाए? इतनी अच्छी व्यवस्था किए जाने के बावजूद अगर धीरे-धीरे दिल्ली पुराने ढर्रे पर फिर से लौट रही है, तो यह गंभीर चिंतन का विषय है। दिल्लीवासियों को समझना पड़ेगा कि सब कुछ सरकार ही नहीं कर देती। कुछ फर्ज आपका भी होता है। आपकी नाली गंदी है, या आपके पड़ोस में कचरे का ढेर पड़ा है, तो इसमें भला सरकार क्या करेगी। इसमें आपकी पहल ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। इस बड़ी आबादी वाले राजधानी शहर में शान से रहने के लिए आपका योगदान भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है। अफसोस होता है कि आखिर, कब दिल्ली के नागरिकों को अक्ल आएगी कि अपनी दिल्ली को हमने ही सुरक्षित और स्वच्छ रखना है। सरकार अपनी तरफ से कई बार ईमानदार भी दिखती है, लेकिन बगैर लोगों के प्रयास से आमूल-चूल बदलाव संभव नहीं है।
जहां तक रही बात सरकार काम करने के तौर-तरीके की, तो सरकार विकास कार्य पर खर्च तो खूब कर देती है, मगर ऐसी नीतियों पर खर्च नहीं करती जिनसे अतिक्रमण न बढ़े। अगर यह खर्च वही कर दे तो शायद कई समस्याओं के समाधान निकल आए। जो रेहड़ी-पटरी वाले इधर-उधर भटकते हैं, उनके लिए स्थायी या वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए। कई जगहों में जी-20 की सजावट की धज्ज्यिां उड़ रही हैं। सराय काले खां के आसपास की सड़क के फुटपाथ की चमक गायब हो चुकी है, वहां के गमले विलुप्त हो चुके हैं। सफदरजंग, एलएनजेपी या आरएमएल अस्पताल के पास भीड़-भाड़ देखने को मिल रही है। अस्पताल के बाहर वेंडरों और दुकानदारों का अतिक्रमण शुरू हो गया है। लोगों ने अपनी रेहड़ी-पटरी फिर से लगानी शुरू कर दी है। ऐसे में दिल्ली की खूबसूरती का आलम कैसे बरकरार रह सकेगा?
जब फुटपाथ के पौधे गायब हो रहे हैं, फूल उखाड़ कर फेंके जा रहे हैं, पाकरे में बदहाली छा रही है। विदेशी मेहमानों को दिखाने के लिए जगह-जगह जो मूर्तियां लगाई गई थीं, उसके पास गंदगी का अंबार लगने लगा है। अजमेरी गेट के पास स्मारक के बाहर वहां जाम की आवाज आई। अतिक्रमण लाल किले के पास रेहड़ी-पटरी वालों का दोबारा कब्जा हो गया। चांदनी चौक के ट्रैफिक सिग्नल पर भीड़ फिर से लग रही। लाइटिंग, फव्वारा या अन्य आकषर्ण भी धीरे-धीरे घटने लगा है, ऐसे में जो नागरिक दिल्ली आकर जी-20 शिखर सम्मेलन के बाद इस स्थल पर अपने गौरव को करीब से महसूस करना चाह रहा था, वह यह सब देख कर परेशान हो उठता है। यह दृश्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी धता बता रहा है। हालांकि संबंधित एजेंसियों को प्रशासन की ओर से पत्र लिखकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया गया है। मगर क्या करें, दिल्लीवासी ही अपनी दिल्ली के लिए जागरूक नहीं दिखाई पड़ते।
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