वैश्विकी : ‘सीमा पार दमन’ का घेरा
अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो की हां में हां मिलाते हुए एक नया जुमला गढ़ा है-‘सीमा पार दमन’।
वैश्विकी : ‘सीमा पार दमन’ का घेरा |
अब तक भारत पाकिस्तान के खिलाफ सीमा पार आतंकवाद शब्दावली का प्रयोग करता रहा है, लेकिन अब ब्लिंकन ने भारत को कठघरे में खड़ा करते हुए सीमा पार दमन शब्दावली का ईजाद किया है। जाहिर है कि वह कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या को सीमा पार दमन की श्रेणी में रखते हैं। प्रधानमंत्री ट्रूडो की तरह ब्लिंकन ने निज्जर की हत्या के लिए भारत पर सीधे दोषारोपण नहीं किया, लेकिन उनका इशारा स्पष्ट था कि वह इस हत्या के लिए भारतीय एजेंसियों पर संदेह जाहिर कर रहे हैं। अमेरिका की यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस. जयशंकर भारत के खिलाफ ब्लिंकन के इस पल्राप का जवाब किस भाषा में देते हैं, यह देखना दिलचस्प होगा।
इस बीच अमेरिका और पश्चिमी देशों की मीडिया में भारत विरोधी दुष्प्रचार का नया दौर शुरू हो गया है। द न्यूयार्क टाइम्स, द इकोनॉमिस्ट और टाइम मैगजीन जैसे पत्र-पत्रिकाएं निज्जर की हत्या के लिए भारतीय एजेंसियों को दोषी ठहरा रही हैं। आश्चर्य की बात है कि इनमें से बहुत से लेख भारतीय या भारतीय मूल के लोगों के द्वारा लिखे गए हैं। भारत की मीडिया में आतंकवादी निज्जर की हत्या को लेकर प्राय: एक जैसी राय है कि ट्रूडो के आरोप निराधार और शरारतपूर्ण हैं। मोदी सरकार का विरोध करने वाले समीक्षक भी ट्रूडो के आरोपों को खारिज करते हैं।
भारतीय मीडिया में पश्चिमी देशों के पाखंड और दोहरी नीति की तीखी आलोचना की जा रही है। इतना ही नहीं बल्कि अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ ही ब्रिटेन और कनाडा की एजेंसियों के काले-कारनामों की बखिया उधेड़ी जा रही है। इन एजेंसियों को खालिस्तानी आंदोलन, तमिल टाइगर के खूनी संघर्ष और पूर्वोत्तर भारत में पृथकतावादी आंदोलनों से जोड़ा जा रहा है। एक प्रमुख समाचारपत्र की रिपोर्ट के अनुसार भारत के शीर्ष खुफिया अधिकारी (अजित डोभाल?) ने सीआईए प्रमुख को आतंकवादी पैरोकार गुरपतवंत सिंह पन्नू को बढ़ावा देने का आरोप लगाया। यह भी संदेह व्यक्त किया गया कि पन्नू सीआईए का एजेंट हो सकता है।
इस पूरे विवाद में अमेरिका के सामने धर्मसंकट की स्थिति है। उसके वास्तविक चेहरे और चरित्र का पर्दाफाश हो सकता है। फिलहाल, पश्चिमी देशों में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि भारत और कनाडा में से यदि एक का चुनाव करना हो तो अमेरिका किसका पक्ष लेगा। दुनिया में पांच देशों (फाइव आइज) का एक मजबूत लेकिन अघोषित गठबंधन है। ये देश हैं-अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड। इन देशों को ‘व्हाइट एंग्लो सेक्सन प्रोटेस्टेंट’ (वास्प देश) माना जाता है। यह रक्त संबंधी भाईचारा है, जिसे आलोचक नस्लवादी गठबंधन करार देते हैं। इन देशों के रणनीतिक और सुरक्षा हित एक जैसे हैं। यही कारण है कि प्रधानमंत्री ट्रूडो के आरोप कितने भी हास्यास्पद क्यों न हों, अमेरिका कनाडा का ही साथ देगा। हालांकि समीक्षकों का एक छोटा वर्ग मानता है कि चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका को भारत की आवश्यकता है। वह भारत की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगा। इन हालात में संभावना यही है कि अमेरिका दोनों देशों के बीच मेल-मिलाप की कोशिश करेगा।
बहुत कुछ इस बात पर निर्भर है कि कनाडा आने वाले दिनों में अपने यहां खालिस्तानी तत्वों के बारे में कैसा रवैया अपनाता है। खालिस्तानी तत्वों ने अगले कुछ दिनों में भारतीय उच्चायोग और वाणिज्य दूतावासों के समक्ष विरोध प्रदर्शन करने की घोषणा की है। कनाडा सरकार इन भारत विरोधी गतिविधियों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मानती है। मोदी सरकार के तेवरों से स्पष्ट है कि भारत अब इन शरारतपूर्ण कार्रवाइयों को बर्दाश्त नहीं करेगा।
विदेश मंत्रालय ने कनाडा को आतंकवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह की संज्ञा दी है। अब तक यह तमगा पाकिस्तान को हासिल था। कनाडा ही नहीं बल्कि अमेरिका को भी अब यह तय करना होगा कि क्या वे अपने भौगोलिक क्षेत्र में एक पाकिस्तान का निर्माण करने का जोखिम उठा सकते हैं।
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