ग्राम सुधार : धुरी बने गांव का चहुंमुखी विकास

Last Updated 02 Jul 2023 01:47:53 PM IST

आज जरूरत इस बात की है कि छिटपुट सुधार के स्थान पर समग्र ग्रामीण सुधार की नीति बनाई जाए।


ग्राम सुधार : धुरी बने गांव का चहुंमुखी विकास

सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, पर्यावरणीय आदि सभी पक्षों का एक-दूसरे से समन्वय रखने वाला, एक-दूसरे का पूरक समावेशी इस समग्र कार्यक्रम में मिलना चाहिए। सबसे प्रमुख सहमति का विषय यह होना चाहिए कि राष्ट्रीय विकास के केंद्र में ग्रामीण विकास होगा, गांवों को अति महत्त्वपूर्ण भूमिका मिलेगी। यह सच है कि अधिकांश किसान हाल के समय में गंभीर आर्थिक संकट से जूझते रहे हैं, पर क्या अन्य ग्रामीण परिवारों की हालत कुछ बेहतर है? यदि दस्तकारों की बात करें, तो उनकी परंपरागत आजीविका तो बड़े स्तर पर छिनती ही चली गई है। भूमिहीन मजदूर परिवारों पर नजर डालें, तो उनकी आर्थिक स्थिति सदा सबसे कठिन रही और आज भी बनी हुई है। तिस पर एक अन्य हकीकत यह भी है कि भूमिहीन या लगभग भूमिहीन परिवारों की संख्या गांवों में बढ़ती भी जा रही है।

एक बड़ी बात यह है कि हमें खेती का संकट दूर करने के साथ ऐसी व्यापक नीतियां अपनानी चाहिए जिनसे सभी गांववासियों का लाभ एक-सा हो और टिकाऊ तौर पर पूरे गांव की अर्थव्यवस्था मजबूत हो। इस प्रयास में हमें महात्मा गांधी की दूरदर्शिता भरी सोच से बहुत सहायता मिल सकती है। उन्होंने पर्यावरण की रक्षा वाले स्थाई विकास पर अधिक जोर दिया जो सभी लोगों की बुनियादी जरूरतें टिकाऊ  तौर पर करने में सक्षम हो। हमें ऐसी आर्थिक नीतियां अपनानी चाहिए जिनसे गांव व कस्बे स्तर पर बड़े पैमाने पर ऐसे टिकाऊ  रोजगार का सृजन हो जो लोगों की जरूरतों को अपेक्षाकृत श्रम-सघन तकनीकों से पूरा कर सके। प्रदूषण को न्यूनतम रखने का ध्यान आरंभ से ही रखा जाए। दूसरी ओर खेती में भी अपेक्षाकृत श्रम-सघन व बेहद कम खर्च वाली ऐसी तकनीकों को अपनाया जाए जो पर्यावरण की रक्षा के अनुकूल हों।

दीर्घकालीन दृष्टि से देखें तो गांवों में जल-संरक्षण और हरियाली का बना रहना, यह दो सबसे बड़ी जरूरतें हैं। पानी तो विकास का ही नहीं, अस्तित्व का आधार है। सभी प्राकृतिक जल-स्रेतों की रक्षा होनी चाहिए। भू-जल का उपयोग सुरक्षित सीमा तक ही होना चाहिए। सभी मनुष्यों व पशु-पक्षियों के लिए पर्याप्त जल होना चाहिए। जल-उपयोग में पहली प्राथमिकता पेयजल, घरेलू उपयोग व फिर कृषि को मिलनी चाहिए। फसल-चक्र स्थानीय जल उपलब्धि के अनुकूल होना चाहिए। यथासंभव जल आपूर्ति स्थानीय वष्रा व जल-संरक्षण के आधार पर होनी चाहिए। दूर-दूर से पानी लाने वाली योजनाओं के बारे में तभी सोचा जा सकता है, जब सब उपाय करने पर भी स्थानीय स्तर पर जल पर्याप्त न हो। वष्रा के जल को संरक्षित करने का भरपूर प्रयास होना चाहिए। परंपरागत जल-संरक्षण के उपायों से सीखना चाहिए व उन्हें अपनाना चाहिए। स्थानीय वनस्पति व वृक्षों की प्रजातियों, को बचाना व पनपाना चाहिए। खाद्य, चारे, वन व मिट्टी संरक्षण के स्थानीय वृक्षों को समुचित महत्त्व देना चाहिए। विशेषकर पहाड़ों पर पेड़ों व हरियाली को बढ़ाना चाहिए। चरागाहों की रक्षा करनी चाहिए व उन्हें पनपने का अवसर मिलना चाहिए। वनों की रक्षा करते हुए और उन्हें पनपाते समय वनों की प्रजातियों के मिशण्रके प्राकृतिक रूप को बनाए रखने या उनसे नजदीकी रखने का प्रयास होना चाहिए। खेती की तकनीक ऐसी होनी चाहिए जो पर्यावरण की रक्षा के अनुकूल हो, टिकाऊ  हो, बहुत सस्ती हो, गांव के स्थानीय संसाधनों पर आधारित हो व बाहरी निर्भरता को न्यूनतम करे। रासायनिक खाद व दवाओं का उपयोग छोड़ना चाहिए या न्यूनतम करना चाहिए। कंपोस्ट व गोबर-पत्ती आदि की खाद का उपयोग बढ़ाना चाहिए। पशुपालन को प्रोत्साहित करना चाहिए व पशुओं की अच्छी देख-रेख होनी चाहिए, उनसे कोई क्रूरता नहीं होनी चाहिए। स्थानीय नस्लों को प्रोत्साहित करना चाहिए। पशुपालक समुदायों की सहायता करनी चाहिए। कृषि व पशुपालन के परंपरागत ज्ञान से भरपूर सीखना चाहिए। प्रकृति की प्रक्रियाओं से सीखते हुए बेहतर कृषि के तौर-तरीके सीखने चाहिए। देशीय नस्ल की मधुमक्खियों व परागीकरण करने वाले अन्य कीट-पतंगों व पक्षियों की रक्षा करनी चाहिए।

परंपरागत फसल-विविधता, मिश्रित खेती, को प्रोत्साहित करना चाहिए। देशीय, स्थानीय बीजों को एकत्र करने का व्यापक समुदाय आधारित कार्यक्रम होना चाहिए जिसके लिए सरकार को भी खुल कर सहायता करनी चाहिए। फसल-चक्र स्थानीय जल-उपलब्धि व मिट्टी के अनुकूल होना चाहिए व उसका जल व मिट्टी पर अधिक दबाव नहीं पड़ना चाहिए। फसल-चक्र का पहला उद्देश्य गांव व आसपास के लिए स्वस्थ व पौष्टिक स्थानीय खाद्यों की आपूर्ति होना चाहिए।

कृषि का आधार छोटे व मझले किसान हैं। किसी के पास बहुत अधिक भूमि है तो उससे कुछ भूमि ले कर भूमिहीनों में वितरित होनी चाहिए। अन्य उपायों से भी भूमिहीन खेत मजदूरों को भूमि दी जानी चाहिए। पंचायत स्तर पर स्थानीय किसानों से ही सार्वजनिक वितरण पण्राली, आंगनवाड़ी, मिड-डे मील आदि के लिए विभिन्न कृषि उपज न्याय संगत कीमत पर खरीदनी चाहिए। भोजन पकाने व आपूर्ति का कार्य महिला स्वयं सहायता समूहों को मिलना चाहिए। बच्चों के साथ असहाय व्यक्तियों के लिए भी मिड-डे मील उपलब्ध होना चाहिए। पंचायतों को मजबूत करना चाहिए व उन्हें अधिक संसाधन मिलने चाहिए। पंचायत चुनावों से गांव में गुटबाजी व दुश्मनी न आए, इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। न्याय के लिए कोर्ट-कचहरी में भटकने के स्थान पर निशुल्क न्याय पंचायत स्तर पर हो सके, इस दिशा में बढ़ना चाहिए। ग्राम सभा व वार्ड सभा को सशक्त होना चाहिए। विस्थापन या गांव के भविष्य से जुड़े किसी बड़े निर्णय पर ग्राम-सभा के निर्णय को उच्च महत्त्व मिलना चाहिए। विस्थापन की संभावना न्यूनतम करनी चाहिए। फिर भी मजबूरी में किसी को विस्थापित होना पड़े तो उससे पूरा न्याय होना चाहिए। गांव में पुरुषों व महिलाओं (विशेषकर महिलाओं) के स्वयं सहायता समूहों का गठन होना चाहिए। उनके माध्यम से बचत को हर तरह से प्रोत्साहित करना चाहिए। धीरे-धीरे स्वयं सहायता समूहों की क्षमता इतनी बढ़नी चाहिए कि कर्ज की अधिकतम जरूरतें इनसे पूरी हो सकें।

महिलाओं को विभिन्न क्षेत्रों में आगे आने के भरपूर अवसर मिलने चाहिए व उन्हें इसके लिए पूर्ण सुरक्षा की स्थिति भी मिलनी चाहिए। महिला-विरोधी हर तरह की हिंसा व यौन हिंसा को समाप्त करने या न्यूनतम करने को उच्चतम प्राथमिकता मिलनी चाहिए। महिला जागृति समितियों का गठन होना चाहिए। महिला किसानों को किसान के रूप में मान्यता मिलनी चाहिए। पति-पत्नी का मिलकर भूमि स्वामित्व होना चाहिए। दहेज प्रथा वास्तव में समाप्त होनी चाहिए। सभी गांवों में महिलाओं के नेत्तृत्व में नशा-विरोधी समितियों का गठन होना चाहिए व शराब सहित हर तरह के नशे को न्यूनतम करने के प्रयास निरंतरता से होने चाहिए। गांवों में शराब के ठेके नहीं खुलने चाहिए व जो पहले से हैं, उन्हें हटाना चाहिए। समाज-सुधार समितियां बनाकर सब तरह के भेदभाव को गांव में समाप्त करना चाहिए व धर्म, जाति के भेदभाव मिटाकर सब के मेलजोल और सद्भावना को मजबूत करना चाहिए। इस तरह परस्पर सहयोग से गांव के विभिन्न सामाजिक कार्य आगे बढ़ने चाहिए। शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, उसमें नैतिक शिक्षा का समावेश करने, अच्छी शिक्षा सब तक पहुंचाने व सरकारी स्कूलों को बहुत बेहतर करने के प्रयासों को उच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए व इसमें सब का सहयोग प्राप्त होना चाहिए।

भारत डोगरा


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