बतंगड़ बेतुक : कोई बताए ये यूसीसी क्या है
झल्लन बोला, ‘ददाजू, तनि जौरें खिसक आऔ, हमें एक बात समझाऔ।’ झल्लन जब भी हल्की-फुल्की दिमागी लहर के बीच होता था तो खड़ी छोड़ सीधे ब्रज पर उतर आता था।
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हमने कहा, ‘बोल, समझने को अब क्या ले आया है, पहले ये बता कहीं चढ़ा तो नहीं आया है?’ वह बोला, ‘कैसी बात करे हो ददाजू, आप जाने हो, हम जब भी आपके पास आते हैं तो सारा नशा-पत्ता उतार कै आते हैं। अब मतलब की बात पर आइए और हम जो पूछ रहे हैं वो बताइए। जे ऊसीसी का चीज है, हमारे मोदी जी जिसे लाने पर अड़े हैं और सारे विपक्ष के नेता जिसके विरोध में खड़े हैं?’ हमने कहा, ‘हमारे मोदी को समाज में असमानता बिल्कुल पसंद नहीं सो वे सबको समान बनाना चाहते हैं और समानता के जिस समाजवाद को जिसे हमारे टटके समाजवादी नहीं ला सके उसे वे बैंड-बाजे के साथ लाना चाहते हैं। समाजवादी और साम्यवादियों ने अपना जो झंडा नीचे झुका दिया है उसे मोदी जी उठा रहे हैं, इस पर भी मोदी विरोधी रोड़े अटका रहे हैं। मोदी जी ऊसीसी नहीं बल्कि यूसीसी यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी समान नागरिक संहिता लागू कराना चाहते हैं यानी एक डोर से सबको नाथना चाहते हैं, पर सारे विपक्षी उनकी डोर से बंधना नहीं चाहते उसे तोड़कर भागना चाहते हैं।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, ये बताइए कि मोदी जी के दिमाग में कोई फितूर है जो वे सारे मेंढक एक पलड़े में तोलना चाहते हैं या सांपों का पिटारा बार-बार खोलना चाहते हैं। भई, सबकी अपनी-अपनी पहचानें हैं, अपने-अपने धर्म-मजहब हैं, अपनी-अपनी तहजीबें, अपनी-अपनी संस्कृतियां हैं, अपने-अपने रीति-रिवाज, अपने-अपने अमल-व्यवहार, अपनी-अपनी विरासत-परंपराएं और जीने के अपने-अपने तौर-तरीके हैं जिन्हें लोग अपने-अपने तरीके से जीना चाहते हैं, मोदी जी बैठे-बिठाए काहे समंदर में आग लगाना चाहते हैं। जैसे आप जीना चाहते हैं वैसे आप जी लीजिए और जैसे दूसरे जीना चाहते हैं वैसे दूसरों को जी लेने दीजिए।’ हमने कहा, ‘मोदी जी मानते हैं कि एक मुल्क के लोगों के लिए अलग-अलग कानून नहीं होने चाहिए, सबको एक कानून के नीचे आना चाहिए।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, मोदी जी क्या मानते हैं क्या नहीं मानते हैं, यह सब हम नहीं जानते हैं, हमें तो सीधे सट्ट बताइए कि आप क्या मानते हैं, क्या चाहते हैं?’ हमने कहा, ‘झल्लन, हमारे मानने से क्या होता है, हमारे चाहने से क्या होता है, होता वही है जो मंजूरे सियासत होता है। हम तो चाहते हैं कि इंसान और इंसान के बीच में जो चलन भेद करते हैं वे चलन मिट जाएं, जो रीति-रिवाज आदमी को जड़ बनाते हैं वे रीति-रिवाज बदल जाएं, इस सदी में भी जो आदिम सदी को लाते हैं उनके दिमाग बदल जाएं, मौजूदा वक्त में जो बेकार हो चुके हैं वे धर्म-मजहब सुधर जाएं, कुछ ऐसी समझ पनपे कि नफरत नहीं फैले और लोग मुहब्बत से रहें, इंसान बन जाएं।’
झल्लन बोला, ‘ददाजू, काहे फालतू में ऊंची-ऊंची छोड़ने लगते हो, हम जमीन की बात कर रहे हैं आप आसमान में दौड़ने लगते हो। जो काम अल्लाह के बस का नहीं, उसे आदमी से करने को कह रहे हो, पता नहीं आप किन खयालों में रह रहे हो। हम तो सिर्फ इतना पूछ रहे हैं कि यूसीसी आना चाहिए कि नहीं आना चाहिए, आना चाहिए तो क्यों आना चाहिए और नहीं आना चाहिए तो क्यों नहीं आना चाहिए?’ हमने कहा, ‘क्या तू टीवी नहीं देखता है जो हमसे ये फालतू सवाल पूछता है। थोड़ी देर के लिए अपने इस भौकाली डब्बे को खोलकर बैठ जा, तुझे परदे पर चील-कौव्वे उड़ते हुए नजर आएंगे और यूसीसी क्यों नहीं आना चाहिए और क्यों आना चाहिए यह बात तुझे चीख-चीखकर समझाएंगे।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप फिर हमें भटका रहे हो, उल्टी दिशा में ले जा रहे हो। अगर टीवी के उछलबच्चों की चीख-चिखाहट से हम कुछ समझ पाते तो आपसे यह पूछने क्यों आते। वहां तो वही पुराना खेल खेला जा रहा है, एक काले को सफेद बता रहा है तो दूसरा सफेद को काला बता रहा है। एक कह रहा है कि इससे क्रांति आ जाएगी, देश की दुनिया बदल जाएगी और दूसरा कह रहा है कि निजी मुआमलात में दखलअंदाजी बर्दाश्त नहीं जाएगी और जबर्दस्ती की गयी तो आग लग जाएगी। अगर हम इनकी बात मानते हैं तो अंधभक्त कहलाएंगे और उनकी बात मानते हैं तो अंधविरोधी कहलाएंगे और आप अच्छी तरह जानते हो कि ये दोनों ही ठप्पे हम अपने ऊपर नहीं लगवाएंगे।’
हमने कहा, ‘झल्लन, तूने कहा सबके अपने-अपने धर्म-मजहब, रीति-रिवाज, आस्थाएं-मान्यताएं हैं तो सबको अपने-अपने ढंग से जी लेने देना चाहिए और सरकार को इनमें कोई दखलअंदाजी नहीं करनी चाहिए। सुनने में तेरी बात बहुत अच्छी लगती है, यही बात एक लोकतंत्र में चालू सिक्के की तरह चलती है पर भारत जैसे बहुलतावादी देश में अगर सबके आग्रह अपनी-अपनी धर्म-संस्कृतियों को लेकर पुख्ता हो जाते हैं तो आपस के टकराव बढ़ जाते हैं। इसे रोकने के लिए हमारी समझ से समान नागरिक संहिता आनी चाहिए और इसे सबको अपनाना चाहिए।’ झल्लन बोला, ‘ठीक है ददाजू, आज यहीं रुक जाइए, आगे की बात अगली बैठकी में समझाइए।’
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