मुद्दा : टमाटर उत्पादक पस्त, जमाखोर मस्त

Last Updated 03 Jul 2023 01:37:43 PM IST

कुछ माह पहले किसानों ने दाम न मिलने से जिस टमाटर को सड़क पर फेंका था, अब उसके दामों में सबसे ज्यादा उछाल देखने को मिल रहे हैं।


मुद्दा : टमाटर उत्पादक पस्त, जमाखोर मस्त

यू कहें कि पिछले कुछ दिनों से टमाटर के दाम आसमान छू रहे हैं जिससे देश के विभिन्न क्षेत्रों के बाजारों में टमाटर  लाल हो चला है। टमाटर महंगे होने की वजह से लोग लाल-पीले हो रहे हैं। तीस से 40 रुपये किलो बिकने वाला टमाटर 100-120 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया है।

मौजूदा समय में दिल्ली ही नहीं, देश के अन्य भागों में भी उपभोक्ता टमाटर की बढ़ी कीमतों से प्रभावित हैं। थोक और खुदरा कारोबारी आवक में भारी कमी का हवाला देकर टमाटर के दाम बढ़ा रहे हैं, जबकि मंडियों से प्राप्त आवक के आंकड़े कारोबारियों के इस तर्क से पूरी तरह मेल नहीं खाते। एकाएक कीमतों में वृद्धि के लिए उत्तर भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भारी वष्रा, जिससे फसल को नुकसान हुआ है, को जिम्मेदार ठहराया गया है। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में बारिश से फसल प्रभावित हुई है और इसकी आपूर्ति भी मांग की तुलना में कम हो गई है। हालांकि उम्मीद की जा रही है कि कुछ राज्यों में अगले एक दो महीनों में जब टमाटर और अन्य सब्जियों की नई खेप की आवक बढ़ेंगी तो कीमतों में राहत मिलेगी।

इस बीच सरकार ने कहा है कि कीमतों में उछाल अस्थायी और मौसमी है। आज की तारीख में स्थिति यह है कि मानसून आते ही मुनाफाखोरों की वजह से सब्जी के दाम आसमान छूने लगे हैं। फुटकर में टमाटर ही नहीं, बल्कि सब्जियों के दाम चार गुना बढ़ गए हैं। कीमतों में अचानक उछाल की अहम वजह हरियाणा, यूपी और दक्षिण भारत के कई राज्यों में फसल बर्बाद होना बताया जा रहा है। हालांकि टमाटर के भाव देख कर केंद्र सरकार अलर्ट हो गई है। महंगाई की इस मार से ग्राहक और दुकानदार, दोनों परेशान हैं जबकि इस समय तक अमूमन सब्जियां महंगी नहीं मिलतीं।

आखिर, सरकार रिटेल कारोबारियों के खिलाफ कुछ भी करने में असमर्थ क्यों नजर आ रही है? देश भर में नगदी फसलों के रूप में सब्जियां किसानों के लिए बड़ा सहारा हैं, लेकिन विभिन्न कारणों से उन्हें अक्सर घाटा ही उठना पड़ता है। यूपी, पंजाब, मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक के किसान घाटे के शिकार हुए हैं। गौरतलब है कि किसानों से आधी कीमत पर सब्जी खरीद कर मनमानी रेट पर मुनाफाखोर व्यापारी बेच रहे हैं। किसान लुट जाता है क्योंकि उसके पास सब्जी रखने के लिए कोल्डस्टोरेज नहीं हैं।

दाम उछलने से सबसे ज्यादा मध्यमवर्गीय और गरीब उपभोक्ता प्रभावित हो रहे हैं। वैसे भी भारत की अर्थव्यवस्था सटोरियों और बिचौलियों के हाथों में ही रही है। उनके कारण जमाखोरी बढ़ रही है। रिटेल बाजार में खाद्य पदाथरे के दाम चाहे कुछ भी क्यों न बढ़ जाएं, किसान को इसका फायदा कदाचित ही पहुंचता हो। पूरा हिस्सा बिचौलिए और रिटेलर खा जाते हैं। न तो किसान को कुछ मिल पाता है, और न ही उपभोक्ता को। इतना ही नहीं, धीरे-धीरे किसान के हाथ से उसकी जमीन भी छिनती जा रही है। इसे कृषि प्रधान देश का उपनाम बेमानी लगने लगा है। वैसे अर्थशास्त्रियों की दलील हमेशा भ्रम पैदा करती है, जीडीपी का हवाला देकर ऐसा हो-हल्ला मचाते हैं कि लगता है कि देश एक झटके से विकास के शिखर पर पहुंच गया है।

देश की सियासत में गरीबी हटाने की बात मजबूत और असरदार टूल साबित हुई है। गरीबी हटाओ नारा इंदिरा गांधी की राजनीति का ब्रह्मास्त्र रहा और हाल फिलहाल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी किसी न किसी रूप में इसका जिक्र करते रहे हैं। बहरहाल, किसान की सबसे बड़ी समस्या कर्ज नहीं है। अधिक उत्पादन उत्पादों का उचित मूल्य न मिल पाना, भंडारण और मंडियों तक पहुंच की पर्याप्त सुविधाओं का अभाव, बाजार जोखिम और वैकल्पिक आजीविका न होना भी बड़े कारणंहैं,ंजिनके लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर प्रभावी नीति बनाने की दरकार है। ऐसे में केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों की स्थायी समस्या के निदान के लिए ठोस एवं कारगर नीति बनानी चाहिए ताकि देश के अन्नदाता आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं हों। ऐसा नहीं हुआ तो किसानों की नाराजगी बीजेपी के मिशन 2024 में पार्टी के लिए बड़ी चुनौती के रूप में सामने आ सकती है।

हालांकि कहना मुश्किल है कि महंगाई की मार झेल रहे भारत का ऐसी सामाजिक-राजनीतिक बाधाओं से कुछ लेना-देना है या नहीं। कुल मिलाकर महंगाई ने आमजन को अपने सोच में बदलाव लाने पर मजबूर कर दिया है। छोटी-मोटी नौकरियां कर रहे लोगों के कई शौक तो महज सपने भर रह गए हैं। हर कदम पर लोगों को हालात से समझौता करना पड़ता है। सच्चाई यह है कि पिछले दो दशकों में ऊंची वृद्धि दर के साथ ऊंची महंगाई दर ने लोगों के मुंह से निवाला छीन लिया है। इस दौरान गरीबों की आय में जो मामूली वृद्धि हुई, वह भी ऊंची महंगाई ने लील ली। बेशक, आमजन के लिए मंहगाई सचमुच बड़ा मुद्दा है।  

रवि शंकर


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