अंग्रेजों का अत्याचार : क्यों है ये खामोशी?

Last Updated 03 Oct 2022 01:27:33 PM IST

पिछले कुछ वर्षो से मुसलमानों को लेकर दुनिया के तमाम देशों में चिंता काफी बढ़ गई है। हर देश अपने तरीके से मुसलमानों की धर्माधता से निपटने के तरीके अपना रहा है।


अंग्रेजों का अत्याचार : क्यों है ये खामोशी?

खबरों के मुताबिक चीन इस मामले में बहुत आगे बढ़ गया है। वैसे भी साम्यवादी देश होने के कारण चीन की सरकार धर्म को हेय दृष्टि से देखती है पर मुसलमानों के प्रति उसका रवैया कुछ ज्यादा ही कड़ा और आक्रामक है। यूरोप के देश फ्रांस, जर्मनी, हॉलैंड और इटली भी मुसलमानों के कट्टरपंथी रवैये के विरुद्ध कड़ा रुख अपना रहे हैं। इधर भारत में मुसलमानों को लेकर कुछ ज्यादा ही आक्रामक तेवर अपनाए जा रहे हैं।

इस विषय पर मैंने पहले भी कई बार लिखा है। मैं अपने सनातन धर्म के प्रति आस्थावान हूं पर यह भी मानता हूं कि धर्माधता और कट्टरपंथी रवैया, चाहे किसी भी धर्म का हो, समाज के लिए घातक होता है। जहां तक भारत में हिंदू-मुसलमानों के आपसी रिश्तों की बात है, तो जानना बेहद जरूरी है कि हिंदू धर्म और देश की अर्थव्यवस्था का जितना नुकसान 190 वर्षो के शासन काल में अंग्रेजों ने किया उसका पासंग भी 800 साल के शासन में मुसलमान शासकों ने नहीं किया। मुसलमान शासक हमारे सनातनी संस्कारों को समाप्त नहीं कर पाए जबकि अंग्रेजों ने मैकाले की शिक्षा प्रणाली थोप कर हर भारतीय के मन में सनातनी संस्कारों के प्रति इतनी हीन भावना भर दी कि हम आज तक उससे उबर नहीं पाए।

मैं गत तीस वर्षो से देश-विदेश में धोती, कुर्ता, अंगवस्त्रम पहनता हूं और वैष्णव तिलक भी धारण करता हूं तो अपने को हिंदूवादी बताने वाले भी मुझे पौंगापंथी समझते हैं। ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल काल में गौ वध पर फांसी तक की सजा थी, लेकिन अंग्रेजों ने भारत में गौ मांस के कारोबार को बढ़ावा दिया। गैर-सवर्ण जातियों में सुअर के मांस को प्रोत्साहित किया। इससे अंग्रेज हुक्मरानों ने मांस खाने के अपने शौक को तो पूरा किया ही, बड़ी चालाकी से हिंदू-मुसलमानों के बीच गहरी खाई भी पैदा कर दी। जहां तक मुसलमान शासकों के हिंदू और सिक्खों के प्रति हिंसक अत्याचारों का प्रश्न है, तो नहीं भूलना चाहिए कि राणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और रानी लक्ष्मीबाई जैसे हिंदू राजाओं के सेनापति मुसलमान थे, जो उनकी तरफ से मुगलों और अंग्रेजों की फौज से लड़े।

उधर, अकबर, जहांगीर और औरंगजेब तथा दक्षिण में टीपू सुल्तान जैसे मुसलमान शासकों के सेनापति हिंदू थे, जो हिंदू राजाओं से लड़े यानी मध्य युग के उस दौर में हिंदू-मुसलमानों के बीच पारस्परिक विश्वास का रिश्ता था। आप यूट्यूब पर आजकल दिखाई जा रही 1947 के विभाजन की आपबीती कहानियां सुनें तो आपको आश्चर्य होगा कि भारत और पाकिस्तान के विभाजन से पूर्व पंजाब में रहने वाले हिंदू और मुसलमानों के पारस्परिक रिश्ते कितने मधुर थे। इनके बीच खाई और घृणा अंग्रेजों ने ‘बांटो और राज करो’ नीति के तहत कुटिलता से पैदा की जिसकी परिणति अंतत: भारत के विभाजन में हुई जिसका दंश दोनों देशों के लोग आज तक भोग रहे हैं।

आरएसएस के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत लाख हिंदू-मुसलमानों का डीएनए एक बताएं पर आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्ता और इनकी आईटी सेल रात-दिन हिंदुओं पर हुए मुसलमानों के अत्याचार गिनाते हैं। आश्चर्य है कि हम भारतीयों पर दो सौ वर्षो तक लगातार हुए राक्षसी अत्याचारों और भारत की अकूत दौलत की जो लूट अंग्रेजों ने करके भारत को कंगाल कर दिया, उनका ये लोग कभी जिक्र तक नहीं करते, क्या आपने कभी सोचा ऐसा क्यों है?

आज हर व्यक्ति, जो स्वयं को देशभक्त मानता है, को इतिहासकार सुंदरलाल की शोधपूर्ण पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ अवश्य पढ़नी चाहिए जिसे मार्च, 1928 में प्रकाशित होने के चार दिन बाद ही अंग्रेज हुकूमत ने प्रतिबंधित कर दिया था और इसकी चार दिन में बिक चुकी 1700 प्रतियों को लोगों के घरों पर छापे डाल-डाल कर उनसे छीन लिया था क्योंकि इस पुस्तक में अंग्रेजों के अत्याचारों की रोंगटे खड़े करने वाली हकीकत बयान की गई थी जिसे पढ़कर हर हिंदुस्तानी का खून खौल जाता था। अंग्रेज सरकार ने पुस्तक के प्रकाशक, विक्रेताओं, ग्राहकों और डाकखानों पर जबरदस्त छापेमारी कर पुस्तक की प्रतियों को छीनना शुरू कर दिया। देश के बड़े नेताओं ने इसके विरुद्ध आवाज उठाई और लोगों से किसी भी कीमत पर यह किताब अंग्रेजों को न देने की अपील की।

इस तरह अंग्रेज पूरी वसूली नहीं कर पाए। इस हिला देने वाली किताब की काफी प्रतियां पाठकों के गुप्त पुस्तकालयों में सुरक्षित रख ली गई। चूंकि मेरे नाना संयुक्त प्रांत (आज का उत्तर प्रदेश) की विधान परिषद के उच्च अधिकारी थे, इसलिए उन्हें भी अपने अंग्रेज हुक्मरानों का डर था। उन्होंने यह किताब लखनऊ की अपनी कोठी के तहखाने में छिपा कर रखी थी। मेरी मां और उनके भाई-बहन बारी-बारी से तहखाने में जाकर इसे पढ़ते थे। जितना पढ़ते उतना उनके मन में अंग्रेजों के प्रति घृणा और आक्रोश बढ़ता जाता था।

यह बात बीसवीं सदी के चौथे दशक की है, जब देश में कई जगह कांग्रेस ने सरकार चलाना स्वीकार कर लिया था क्योंकि तब इस पुस्तक पर से प्रतिबंध हटा लिया गया था और इसे दोबारा प्रकाशित किया गया था। आजादी के बाद भारत सरकार के ‘नैशनल बुक ट्रस्ट’ ने इसे दो खंडों में पुन: प्रकाशित किया। तब से यह पुस्तक ‘भारत में अंग्रेजी राज’ बेहद लोकप्रिय है। इसकी हजारों प्रतियां बिक चुकी हैं। पुस्तक ऑनलाइन भी उपलब्ध है। इस पुस्तक को हर भारतीय को अवश्य पढ़ना चाहिए तभी सच्चाई का पता चलेगा वरना हम निहित स्वाथरे के प्रचार तंत्र के शिकार बन कर अपना विनाश स्वयं कर बैठेंगे।

जहां तक कि कुछ मुसलमानों के कट्टर होने की है, तो मेरे जैसे लाखों भारतीयों का मानना है कि जिस तरह मुसलमानों में कुछ फीसद कट्टरपंथी हैं, वैसे ही हिंदुओं में भी हैं जिनकी सनातन धर्म के मूल्यों, वैदिक साहित्य और हिंदू जीवन पद्धति में कोई आस्था नहीं है। कई बार तो ये लोग धर्म की ध्वजा उठा कर सनातन धर्म का नुकसान भी कर देते हैं, जिसके अनेक उदाहरण हैं। इनसे हमें बचना होगा। दूसरी तरफ हमारे यहां के मुसलमानों को भी इंडोनेशिया जैसे देश के मुसलमानों से सीखना होगा कि भारत में कैसे रहा जाए? इंडोनेशिया के मुसलमान इस्लाम को मानते हुए भी अपने हिंदू इतिहास के प्रति उतना ही सम्मान रखते हैं।

विनीत नारायण


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