सौर ऊर्जा ही भविष्य
किसी ने सोचा भी नहीं था कि काले सोने से लोग इतनी जल्दी भयभीत हो जाएंगे। एक दौर में विश्व की अर्थव्यवस्था को बचाने में काला सोना यानी कोयला मुख्य स्रोत था।
सौर ऊर्जा ही भविष्य |
देश के सारे थर्मल पावर स्टेशन उसके बगैर दौड़ नहीं सकते थे। यातायात और माल ृृढोने में भाप इंजन, जो कोयले से चलता था, ही विकल्प था। ऊर्जा के सबसे बड़े साधन पर आज विश्व भर में कोशिश हो रही है कि कोयले का कम से कम इस्तेमाल किया जाए। हर देश से कहा जा रहा है कि कोयले पर आत्मनिर्भरता खत्म की जाए। सौर ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए। कोयले के औद्योगिक खनन की शुरुआत 1774 में पश्चिमी बंगाल के रानीगंज से शुरू हुई थी।
ईस्ट इंडिया कंपनी ने नारायणकुड़ी इलाके में पहले पहल खनन शुरू किया। तब किसी ने नहीं सोचा नहीं होगा कि कोयला जीवन का कितना महत्त्वपूर्ण हिस्सा बन जाएगा। आज भारत विश्व के पांच देशों में शुमार है, जहां कोयले के भंडार हैं। भारत में कोयले के भंडार झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ सहित कुछ और राज्यों में छुटपुट हैं। भारत में 90 फीसद से ज्यादा कोयला उत्पादन कोल इंडिया करता है। समय बदलने के साथ कोयले की आवश्यकता बढ़ती गई। 1853 में जब भाप इंजन, रेल की पटरियों पर उतरा तब से कोयले की खपत बढ़ी और उत्पादन में कार्य ने गति पकड़ी। उसके बाद से कोयला ही ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत बन गया।
भारत सरकार ने 1973 में कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण किया। इसके बाद कोल इंडिया लिमिटेड यानी सीआईएल अस्तित्व में आई। उस वक्त सिर्फ 79 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता था, लेकिन सीआईएल अब 600 मिलियन टन से भी अधिक का उत्पादन करती है। यह आज विश्व की सबसे बड़ी कोयला उत्पादक कंपनी है। कोल इंडिया कंपनी भारत के आठ राज्यों में फैली है, जहां कंपनी 85 खनन क्षेत्रों में काम करती है। इस कंपनी की 345 खदानें हैं, जिनमें से 151 जमीन के अंदर, 172 ओपन कास्ट और 42 मिली-जुली हैं। भारत कोयले के उत्पादन और खपत के मामले में चीन के बाद दूसरे नंबर पर है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों का 70 प्रतिशत से ज्यादा कोयला संचालित संयंत्रों से ही करता है। देश का 57 फीसद प्राथमिक वाणिज्य ऊर्जा कोयले पर निर्भर है।
लगता है उपरोक्त जरूरतों को देखते हुए भारत सरकार के दावे, कि कुछ समय में भारत को कोयला मुक्त कर देगी, के फलीभूत होने की संभावनाएं कम ही लगती हैं। हां, यदि संभावनाओं को तलाशा जाए तो इनमें सौर ऊर्जा विकल्प के रूप में नजर आती है। सरकार अपनी परियोजनाओं को सौर संचालित कर दे तो यह बहुत बड़ा चमत्कार विश्व के लिए होगा। हमारे पास पारपंरिक ऊर्जा से हट कर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों में पवन ऊर्जा भी एक विकल्प है, लेकिन उसका आधार पवन की गति पर निर्भर करता है। परमाणु ऊर्जा भी हमारा विकल्प है, इसके भी संयत्र देश में लगे हैं, उनसे भी ऊर्जा ली जा रही है, लेकिन वह महंगी है।
एथनॉल भी एक विकल्प है पर वह बड़ी मात्रा में देश की ऊर्जा खपत में सहायक तो है पर अपने आप में पर्याप्त ऊर्जा पूरक नहीं है। देश में पर्याप्त सौर किरण आती हैं, उनका उपयोग हम करें तो हमारी अनंत ऊर्जा आवश्यकता को सूर्य भगवान पूरा कर सकते हैं। पृथ्वी पर पड़ने वाली तेज किरणों का दोहन किया जा सकता है। सौर किरणों को लेने की तकनीक को सस्ता करने की भी संभावनाएं हैं। सौर ऊर्जा की खोज एडमंड बेकरेल ने 1839 में की थी। अपनी पिता की प्रयोगशाला में काम करते और फोटोग्राफी पर काम करते हुए उन्होंने पाया कि कुछ सामग्री प्रकाश के संपर्क में आने पर वोल्टेज और विद्युत प्रवाह उत्पन्न करती है।
सौर ऊर्जा ही अब भविष्य है। तमिलनाडु का कामुती स्थित सौर ऊर्जा संयंत्र हाल में विश्व का सबसे बड़ा संयंत्र बन गया है। यह 648 मेगावाट बिजली की उत्पादन क्षमता रखता है। इस संयंत्र में 2.5 मिलियन व्यक्तिगत सौर माड्यूल शामिल हैं, जो 10 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
सौर ऊर्जा स्थापित करने में राजस्थान देश में पहले पायदान पर पहुंच गया है। कर्नाटक को पछाड़ कर राजस्थान 7738 मेगावाट सौर ऊर्जा प्राप्त करने में सफल हो गया। सौर ऊर्जा उत्पादन में भारत का तीसरा स्थान है। भारत पूरे विश्व में सबसे सस्ती सौर ऊर्जा उत्पादन करने वाला देश बन गया है। चीन का नंबर दूसरा है। भारत ने 100 गीगावाट की स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता का महत्त्वपूर्ण पड़ाव प्राप्त कर लिया है। यह बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को छोड़कर है। यह भी ज्ञात हुआ कि 50 गीगावाट क्षमता स्थापित करने का काम जारी है, और 27 गीगावाट के लिए निविदा की प्रक्रिया चल रही है। भारत का 2030 तक 450 गीगावाट अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का अपना लक्ष्य है। यदि बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं को शामिल किया जाए तो स्थापित अक्षय ऊर्जा क्षमता 146 गीगावाट बढ़ जाती है। संभावनाएं बहुत हैं। उन पर अमल करने की भी गुंजाइश है।
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