आर्थिकी : पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सच

Last Updated 01 Oct 2022 01:38:06 PM IST

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, उसने ब्रिटेन को पीछे छोड़ कर यह स्थान पाया।


आर्थिकी : पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का सच

1980 के दशक के अंत में भारत दुनिया के 144 देशों में 13वें स्थान पर था, 1990 के दशक में 12वें स्थान पर, 2010 में नौवें स्थान पर और अब पांचवें स्थान पर है। अगले 5 वर्षो में भारत जर्मनी को पीछे छोड़ कर चौथे स्थान पर आ सकता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि 2047 तक भारत अपना खोया हुआ गौरव पुन: प्राप्त कर लेगा और विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

भारत पांचवें स्थान पर तो आ गया है किंतु प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष आमदनी को देखा जाए तो भारत अभी भी पीछे है। अमेरिका की औसत आमदनी 10000 डॉलर प्रति व्यक्ति है, चीन की 8000 डॉलर के लगभग है, जब कि भारत की 2000 डॉलर प्रति व्यक्ति है। देश की  सकल आय में बराबर वृद्धि होने से लोगों के जीवन स्तर में सुधार हुआ है, किंतु गरीबी और अमीरी की खाई बढ़ी है। भारत में आबादी नियंत्रण के प्रयास सफल नहीं रहे, चीन ने पिछले 70 वर्षो में अपनी आबादी में 40 करोड़ बच्चों को जन्म लेने से रोका। भारत की आबादी 1951 में 36 करोड़ थी जो 2021 में 136 करोड़ हो गई।

आबादी में तेजी से जीडीपी का विकास उतना प्रभावशाली नहीं हो पाया जितना नियंत्रित आबादी के साथ संभव था। विश्व आर्थिक मंदी के कगार पर है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने सप्लाई श्रृंखला बाधित कर दी है। प्रकृति के प्रकोप-बाढ़ और सूखा आदि से खेती की उपज में कमी आई है। पेट्रोल की कीमतें कोविड काल में 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई थी, जो धीरे धीरे नीचे आई पर उतार-चढ़ाव बना रहा। इस समय लगभग 100 डॉलर प्रति बैरल के आसपास है। पेट्रोल उत्पादक देशों को छोड़कर दुनिया के अधिकांश देशों का बजटीय घाटा पेट्रोल की बढ़ी कीमतों से बढ़ा है। कुछ देशों का तो विदेशी मुद्रा भंडार इतना कम हो गया कि वे दिवालिया होने के कगार पर हैं।

खाद्यान्नों के उत्पादन में कमी और रूस और यूक्रेन, जो बड़े उत्पादक और निर्यातक हैं, से सप्लाई में बाधा पूरे विश्व में खाद्य पदाथरे की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण बनी। महंगाई से विश्व के अधिकांश देश त्रस्त हैं। अड़तीस देशों में महंगाई दर पिछले एक वर्ष में दूनी हो गई है। विश्व जीडीपी की  विकास दर, जो कोविड पीरियड से पहले 4.5% के ऊपर थी, अब 3% पर आ गई है। भारत की विकास दर 7% के लगभग है जो 8.5% अपेक्षित थी। बढ़ती महंगाई, बढ़ता व्यापार घाटा और रुपये की कीमत में गिरावट अर्थव्यवस्था के विकास में बाधा बन रही है। भारत में खुदरा महंगाई का सूचकांक 7% के ऊपर जा चुका है और थोक कीमतों का सूचकांक 12.4% के लगभग है। सरकार और रिजर्व बैंक का लक्ष्य खुदरा महंगाई को 4 से 6% के बीच में नियंत्रित करने का है, जबकि महंगाई इस सीमा को पार कर चुकी है। खाद्यान्नों और खाद्य पदाथरे की कीमतों में वृद्धि अपेक्षाकृत अधिक हुई है। कीमतों के सूचकांक में खाद्य पदाथरे का भार 45% है, और पेट्रोलियम का 6%। इन दोनों में ही कीमतों में लगातार वृद्धि से महंगाई का सूचकांक बढ़ता गया है। गरीबी रेखा के नीचे की आबादी पर इसका प्रभाव पड़ा है किंतु कम क्योंकि सरकार उन्हें मुफ्त राशन दे रही है। देश की अस्सी करोड़ आबादी इस योजना से लाभान्वित हो रही है।

कीमतों पर नियंत्रण रखना रिजर्व बैंक की प्राथमिकताओं में है। खाद्यान्नों की महंगाई पर नियंत्रण के लिये सरकार ने गेहूं और चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। पेट्रोलियम की कीमतें देश में नियंत्रण में रखी जाए इसके लिये आयात ड्यूटी में कमी की गई है। रिजर्व बैंक और सरकार के संयुक्त प्रयास से महंगाई की दर विश्व के बहुत सारे देशों से भारत में अभी भी कम है, यद्यपि और ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है जिससे खाद्यान्नों की सप्लाई बाजार में बराबर कम कीमतों पर बनी रहे।

व्यापार घाटे में पिछले वर्ष की अपेक्षा तेजी से वृद्धि हुई है। कच्चे तेल और गैस पर 85% निर्भरता होने के कारण विदेशी मुद्रा का बहुत बड़ा भाग इनके आयात पर खर्च हो जाता है। जिन चीजों के आयात में पिछले महीनों में वृद्धि हुई उनमें कच्चा तेल के अलावा  कोयला, न्यूजपेपर, रासायनिक खाद, लोहा और इस्पात, चांदी-सोना, कपास, यातायात एवं रक्षा संयंत्र शामिल हैं। चीन भारत का सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन गया है। उसके साथ भी व्यापार घाटा तेजी से बढ़ रहा है। जून, 2022 में व्यापार घाटा 26 अरब डालर का था लगभग 50% जो अगस्त महीने में 28 अरब डालर पर पहुंच गया जो अब तक का 1 महीने का रिकॉर्ड स्तर है। वस्तुओं के अलावा सेवाओं का भी आयात बढ़ा है। फाइनेंशियल, ट्रांसपोर्टेशन, टेक्नोलॉजी, लॉजिस्टिक, इंजीनियरिंग, टेलीकॉम कंसल्टेंसी आदि सेवाओं में आते हैं। व्यापार घाटा कम करने के लिए सरकार ने सोने के आयात पर ड्यूटी बढ़ा दी है, अंतरराष्ट्रीय लेन देन में सरकार रुपये को बढ़ावा देने का प्रयत्न कर रही है-जो भी देश रु पये में लेन देन के लिए तैयार हो जाएं। रूस और ईरान के साथ इस संबंध में प्रगति हुई है। पेट्रोल, डीजल और एयर टरबाइन के निर्यात पर विंडफॉल टैक्स (कंपनियों द्वारा एकाएक भारी मुनाफा कमाने पर) लगाया गया है, पेट्रोल-डीजल के निर्यात पर भी ड्यूटी बढ़ा दी गई है।

मंदी का असर विश्व की अधिकांश मुद्राओं पर पड़ा है। यूरो, येन, पाउंड, युवान एवं भारतीय रुपया सहित विश्व की अन्य करंसियों की कीमत डॉलर के मुकाबले नीचे आई हैं। डॉलर सबसे ताकतवर करंसी बन गई है। इसका मुख्य कारण फेडरल रिजर्व अमेरिका की ब्याज नीति है, जो अमेरिका में निवेश को प्रोत्साहन देती है। निवेशक और देशों से अपना धन निकाल कर अमेरिका में लगाने लगते हैं, जब वहां ब्याज दर बढ़ जाता है। भारत की विदेशी मुद्रा भंडार तेजी से रास हुआ है पिछले वर्ष जुलाई अंत में विदेशी मुद्रा भंडार .600 अरब के ऊपर था जो अब .550 अरब पर आ गया है, जिसके प्रमुख कारण हैं आयात में वृद्धि, विदेशी निवेशकों द्वारा शेयर बाजार में भारी बिकवाली, मुद्रास्फीति एवं बढ़ता व्यापार घाटा हैं। रुपये की कीमत में गिरावट को रोकने के लिए रिजर्व बैंक ओपन मार्केट ऑपरेशन के अतिरिक्त और भी कदम उठा रहा है।

प्रो. लल्लन प्रसाद


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