कट्टरपंथ : कड़ी कार्रवाई जरूरी
जब शुरू-शुरू में मई के महीने में सिर तन से जुदा का नारा लगा तो ज्यादातर लोगों ने सोचा कि कुछ मुट्ठी भर लोगों की यह करतूत है यानी आगे यह नारा दोहराया नहीं जाएगा।
कट्टरपंथ : कड़ी कार्रवाई जरूरी |
अब यह नारा धीरे-धीरे देशव्यापी स्वरूप ग्रहण कर चुका है। सच कहा जाए तो गुस्ताख ए रसूल की एक ही सजा, सिर तन से जुदा, सिर तन से जुदा जैसा खुलेआम मजहब के नाम पर हत्या की धमकी देने वाला नारा सामान्य बन चुका है।
तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद का भयावह दृश्य कौन भुला सकता है। वहां भाजपा के विधायक ठा. राजा सिंह, जो अब निलंबित किए जा चुके हैं, के वक्तव्य के विरोध में आतंकित करने वाला दृश्य पैदा किया गया। उसके बाद उत्तर प्रदेश के बागपत में घटना घटी। वहां मुस्लिम परिवार के एक युवक ने हिंदू परिवार को धमकी दी कि अगर उनकी लड़की उसे नहीं मिली तो उस पूरे परिवार का सिर तन से जुदा कर देगा। इसके बाद राजस्थान के भीलवाड़ा के एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर विजय अग्रवाल के यहां पत्र आया जिसमें लिखा है कि आप इस्लाम धर्म स्वीकार करो वरना हमें सिर कलम करना आता है। इसमें यह भी लिखा है कि आप सॉफ्टवेयर इंजीनियर हो और हमें आपकी जरूरत है। इसमें इस्लाम धर्म कबूलने पर पांच लाख रु पया देने की बात है। ये तो कुछ उदाहरण हैं। धीरे-धीरे इस नारे की सार्वजनिक पुनरावृत्ति या व्यक्तिगत स्तर पर धमकी के रूप में इसका उपयोग विस्तारित होता जा रहा है। तो इसके मायने क्या हैं?
हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इसे कुछ सिरफिरे लोगों की नासमझी बता कर खारिज कर देंगे। कुछ बताएंगे कि यह कोई मुद्दा ही नहीं है। कुछ इसका विरोध करने वालों को ही सांप्रदायिक घोषित कर देंगे। भारत के अलावा इस तरह की प्रतिक्रिया देने वाला देश शायद ही कोई होगा। उदयपुर में कन्हैयालाल और अमरावती में प्रमोद कोल्हे की हत्या हो गई यानी यह नारा व्यवहार में भी बदल चुका है। बावजूद हमारे देश में स्वयं को सेक्युलर बनने वाले लोगों की आंखें नहीं खुल रहीं। हैदराबाद का दृश्य कोई नहीं भूल सकता। ठा. राजा सिंह की गिरफ्तारी के पहले पूरा दृश्य दंगों का बना दिया गया था। वह गिरफ्तार हो गए तब भी नारा लगाते हुए उन्हें फांसी देने की मांग की जाने लगी। न्यायालय की नजर में मामला इतना गंभीर नहीं था कि उन्हें जेल में रखा जाए। इसलिए जमानत दे दी गई। इधर न्यायालय ने जमानत दी, उधर हजारों की संख्या में लोग हैदराबाद में सड़कों पर उतर कर सिर तन से जुदा के नारे लगाए जाने लगे। कई नारे थे। मसलन, गुस्ताख ए रसूल को फांसी दो, फांसी दो, फांसी दो, गुस्ताख-ए-नबी को फांसी दो, फांसी दो, फांसी दो आदि। एक तरफ आप सिर तन से जुदा का नारा लगाते हैं, और दूसरी ओर फांसी की मांग करते हैं तो इसका यह अर्थ क्यों न लगाया जाए कि आप धमकी दे रहे हैं कि अगर फांसी नहीं दी गई तो हम स्वयं सिर से तन से जुदा कर देंगे?
जरा सोचिए, ये धमकी किसे दे रहे थे? जमानत न्यायालय ने दी थी। विडंबना देखिए, तेलंगाना सरकार इनके दबाव में आ गई। राजा सिंह को फिर पुराने मामलों में और निवारक नजरबंदी कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया। राजा सिंह के वीडियो में प्रयोग की गई भाषा अस्वीकार्य है। हालांकि उसमें मोहम्मद साहब का नाम नहीं लिया गया लेकिन संकेत साफ है पर ठा. राजा सिंह के अपराधों की सजा देने की जिम्मेदारी न्यायालय की है, या जबरन धमकी देकर बीएफ अपने मनमाफिक सजा दिलाई जाएगी? इसका दूसरा पक्ष यह है कि हास्य के नाम पर मुनव्वर फारु की द्वारा हिंदू देवी-देवताओं का लगातार उपहास उड़ाया गया है। ठा. राजा सिंह और उनके साथियों ने इसका विरोध किया, सड़कों पर उतरे। उनकी लोकप्रियता है, और जनशक्ति भी। विरोध की परवाह न करते हुए तेलंगाना सरकार ने मुनव्वर फारूकी के कार्यक्रम सरकारी सुरक्षा के तहत कराए। इसके पीछे वोट पाने की राजनीतिक सोच के अलावा कोई कारण नहीं हो सकता।
हाल के महीनों में प्रदशर्नों के दौरान हुई उग्रता और हिंसा बताती है कि भारत में भी इस्लामी कट्टरवाद नीचे तक फैल चुका है। आरंभ में जब सवाल उठाए गए तो कई मुस्लिम नेताओं और टीवी पर आने वाले चेहरों की ओर से भाजपा की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के बयानों का हवाला दिया गया। कहा जाता था कि रसूल की शान में गुस्ताखी हुई है, जिसके विरुद्ध पूरे मुस्लिम समुदाय में गुस्सा है। यह स्थिति आज भी नहीं बदली है। कई मुस्लिम नेताओं ने कहा कि इस नारे से हम सहमत नहीं हैं, और यह नारा नहीं लगाया जाना चाहिए लेकिन जैसे तेवर इनके दूसरों के बारे में हैं, वैसे ही अपने समुदाय के अतिवादियों के संदर्भ में नहीं। इसका अर्थ क्या है? क्या यह सार्वजनिक स्तर पर संविधान और शांति की दुहाई देना तथा अंदर ही अंदर कट्टरवाद को सही मानना नहीं है? असदुद्दीन ओवैसी ठाकुर राजा सिंह को लेकर तो पत्रकार वार्ता करते रहे लेकिन हजारों की संख्या में सिर तन से जुदा नारा लगाने वाले अतिवादियों के विरु द्ध एक शब्द नहीं। वही पुराना जुमला कि हम सहमत नहीं हैं, यह नारा नहीं लगना चाहिए। बोलने की भाषा ऐसी जैसे यह सामान्य बात हो। ये नेता लगातार लंबे समय से झूठ फैलाते रहे हैं कि भारत में मुसलमानों के साथ अन्याय हो रहा है, उनके मजहबी अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है, आदि आदि।
मोदी, संघ, भाजपा आदि को मुसलमान विरोधी साबित करने के लिए ऐसे अनेक झूठ गढ़े गए जिन्होंने मुसलमानों के एक बड़े तबके में मजहबी कट्टरता को परवान चढ़ा दिया है। स्थिति ऐसी खतरनाक दिशा में जा रही है, जहां यह समझना कठिन है कि इसे कैसे रोका जाए। तो सभी सियासी पार्टयिों, गैर-राजनीतिक समूहों, सांस्कृतिक-धार्मिंक संगठनों, संस्थाओं आदि सबको कट्टरपंथ के विरुद्ध सख्ती की जरूरत है। उदारवादी मुसलमानों पर भी इनके विरोध का दायित्व है। सरकारें इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई करें और अन्य समूह प्रखर विरोध करें वरना देश भयानक स्थिति में फंस जाएगा। लगभग ऐसी ही स्थिति विभाजन के पूर्व पैदा की गई थी। देश को उस स्थिति से बचाना है, तो राजनीतिक-वैचारिक मतभेद छोड़ कर हर समुदाय के लोगों को इनके विरुद्ध खड़ा होना पड़ेगा।
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