वरिष्ठ नागरिक : भरण-पोषण के सवाल
बदलते वक्त के साथ वृद्धावस्था की तरफ जाना एक चुनौती से कम नहीं है। मेरी देखभाल कौन करेगा, घर से बाहर तो नहीं निकलना है? बीमार हो जाऊं तो इलाज होगा या नहीं?
वरिष्ठ नागरिक : भरण-पोषण के सवाल |
दिन में तीन बार खाना उपलब्ध होगा या नहीं? वे सुरक्षित हैं, या नहीं अपने घर में? जिसे घर में 24 घंटे देखभाल के लिए रखा है, उसका व्यवहार, नीयत कैसी है, आदि आदि यानी जीवन अनेकानेक समस्याओं से घिर जाता है। पर कहते हैं न कि जिस घड़ी समस्या का जन्म होता है, उसी वक्त जुड़वा बच्चों की तरह समाधान का भी जन्म हो जाता है। बस हमें ज्ञान नहीं होता।
तो आज हमारे पास वरिष्ठ नागरिक तथा माता-पिता भरण-पोषण एवं कल्याण कानून, 2007 है, जो हमारी रक्षा करने में सक्षम है। वरिष्ठ व्यक्ति वह है, जो 60 वर्ष या उससे अधिक आयु का है। माता-पिता या ऐसा व्यक्ति जो अकेला है-पति-पत्नी या बच्चे नहीं हैं। पर जिसकी संपत्ति दूर के रिश्तेदारों को मृत्यु पश्चात मिलने वाली है। इनमें वे व्यक्ति भी आते हैं, जिनके पास संपत्ति नहीं है, पर वरिष्ठ हैं। ऐसे व्यक्तियों की देखभाल, इलाज का जिम्मा राज्य उठाता है। राज्य में कई सीनियर सिटिजन ट्राइब्यूनल होते हैं-‘क्षेत्रवार’ जिससे कि उनके इलाके में रहने वाले परेशान वरिष्ठ व्यक्ति जाकर अपनी व्यथा बताएं और जल्दी निदान पाएं। वरिष्ठ नागरिकों और माता-पिता की देखभाल, प्यार से सेवा करना बच्चों की जिम्मेदारी है, कर्त्तव्य है, कानूनन भी एवं नैतिक रूप से भी। वे नैतिक रूप से ना करें तो कानून को अपनी जिम्मेदारी निभाना आता है।
वे वरिष्ठ नागरिक एवं माता-पिता जिन्हें एक सामान्य जीवन नहीं जीने दिया जा रहा और अभावरहित जीवन जीने को विवश किया जा रहा है, वे विभिन्न क्षेत्रों में बने ट्राइब्यूनल में एक याचिका डाल सकते हैं। यदि वे ऐसा करने में अक्षम हैं, तो किसी भी व्यक्ति के द्वारा या ट्राइब्यूनल द्वारा निर्धारित व्यक्ति के माध्यम से याचिका डाली जा सकती है। या कोई भी उपाय न हो तो ट्राइब्यूनल को किसी तरह जानकारी मिले, अखबार, फोन, संस्था, चिट्ठी द्वारा तो ट्राइब्यूनल खुद-ब-खुद भी एक्शन (कार्रवाई) ले सकता है। इसके बाद वारिस-बच्चे या संपत्ति पाने वाले व्यक्ति को नोटिस देकर बुलाया जाएगा और मामले का निबटारा किया जाएगा। बच्चों या वारिसों को उचित आदेश दिया जाएगा-मासिक भत्ता (रुपयों में) देने का या याचिका के आवश्यकतानुरूप जितने बच्चे/वारिस हैं, सबके खिलाफ कार्रवाई होगी। सबको यथायोग्य आदेश दिया जाएगा। जहां कई बच्चों/वारिसों में से एक की मृत्यु हो जाएगी तो भी बाकी बच्चों को जिम्मेदारी का निर्वहन करना होगा।
यदि बच्चे/वारिस आदेश का पालन नहीं करते तो उनके खिलाफ वारंट जारी होगा, जुर्माना लगाया जाएगा-तब भी आदेश का पालन ना हो तो एक महीने या जब तक भरण-पोषण राशि नहीं दी जाती, तब तक जेल में रहना होगा। आदेश की अवहेलना के तीन महीने के अंदर ट्राइब्यूनल को सूचना/याचिका देना बच्चों की जिम्मेदारी है। कानूनन भी, नैतिक रूप से भी। वे नैतिक रूप से न करें तो कानून को अपनी जिम्मेदारी निभाना आता है। भरण-पोषण की याचिका एक/से ज्यादा बच्चों/या लाभार्थी के विरुद्ध दायर की जा सकती है। यह याचिका या तो प्रार्थी जहां रहता है, उसके दायरे के अंतर्गत आने वाले ट्राइब्यूनल में फाइल हो सकती है या वहां जहां बच्चे या रिश्तेदार रहते हैं।
बच्चों या रिश्तेदार को ट्राइब्यूनल में बुलाने के लिए ट्राइब्यूनल के अधिकार-प्रथम श्रेणी के न्यायिक अधिकारी मजिस्ट्रेट जैसे ही हैं। जैसे-नोटिस भेजना, नहीं आने पर जमानती वारंट, उसकी अवहेलना करने पर गैर-जमानती वारंट। यदि बच्चे/रिश्तेदार देश से बाहर रहते हैं, तो ट्राइब्यूनल का आदेश-सेंट्रल गर्वनमेंट के आदेशानुसार प्रेषित किया जाएगा। मामले की सुनवाई के पहले मामला काउंसलिंग के लिए काउंसलिएशन ऑफिसर को दिया जाएगा और जो यह सुझाव ट्राइब्यूनल को देगा कि क्या करना उचित होगा। किसी भी जिला अदालत से प्रार्थी को ज्यरिसडिक्शन वाले ट्राइब्यूनल का पता और नम्बर लिया जा सकता है। कोई लीगल एड वकील भी यदि पैसा का अभाव है तो। जिनका दुनिया में कोई नहीं है, और ना ही उनके पास कोई संपत्ति या आसरा है, तो वे भी ट्राइब्यूनल आ सकते हैं। उन्हें सरकार किसी उचित जगह-ओल्डएज होम या दूसरी जगह रहने, खाने, चिकित्सा की भी व्यवस्था करेगी।
अंतत: मुस्कुराएं आपकी मदद करने वाले ट्राइब्यूनल हैं। पहले इस एक्ट का वे लोग फायदा नहीं उठाते थे, जिन्होंने अपनी संपत्ति एक्ट लागू होने के बाद बच्चों या वारिसों के नाम कर दी थी पर अब एक फैसले के बाद संपत्ति कभी भी किसी के नाम की हो-वारिसों को संपत्ति देने वाले की सेवा जीवन भर करनी होगी। यकीनन यह व्यवस्था बुढ़ापे में असहाय हुए लोगों के जीवन को उन परेशानियों से निजात दिलाएगी जो जीवन की संध्याकाल में वरिष्ठ नागरिकों को वंचना से भर देती हैं। कानून का संबल मिलने से अब उन्हें बराबर अहसास रहेगा कि उनकी चिंता करने वाला कोई तो है-भले ही अपने उन्हें अनदेखा कर रहे हों लेकिन वे कानून की मदद से सबल हो चुके होंगे। उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकेगी।
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