भूस्खलन व बाढ़ का बेहतर नियंत्रण जरूरी
जलवायु बदलाव के इस दौर में आपदा नियंत्रण पर समुचित ध्यान देना जरूरी हो गया है।
भूस्खलन व बाढ़ का बेहतर नियंत्रण जरूरी |
इस समय राष्ट्रीय स्तर पर बाढ़ और भूस्खलन की आपदाएं विशेष चर्चा में हैं, हालांकि देश के कुछ क्षेत्र अभी मानसूनी वर्षा की कमी से भी प्रभावित हैं। पर्वतीय क्षेत्र विशेषकर हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन की समस्या विकट होती जा रही है। ऐसे संकेत विश्व स्तर पर भी मिल रहे हैं। विज्ञान पत्रिका ‘ज्योलोजी’ ने हाल में उपलब्ध जानकारी के आधार पर दावा किया है कि विश्व में भू-स्खलन के कारण होने वाली मौतों की संख्या वास्तव में पहले के अनुमानों की उपेक्षा दस गुणा अधिक है। यह ‘डरहम फेटल लैंडस्लाइड डेटाबेस’ के आधार पर कहा गया है। जानकारियों के इस कोष को ब्रिटेन के डरहम विवविद्यालय के अनुसंधानकत्र्ताओं ने तैयार किया है। इस अनुसंधान का भारतीय संदर्भ में महत्त्व स्पष्ट है क्योंकि हाल के वर्षो में भूस्खलनों से होने वाली भीषण क्षति के समाचार बढ़ते जा रहे हैं।
ध्यान देना जरूरी है कि पर्वतीय क्षेत्र में किन मानवीय कारणों व गलतियों से भू-स्खलन के कारण होने वाली क्षति बढ़ी है। एक वजह यह है कि निर्माण कार्यों विशेषकर बांध निर्माण तथा खनन के लिए पर्वतीय क्षेत्रों में विस्फोटकों का अंधाधुंध उपयोग किया गया है। वन-विनाश भी भू-स्खलन का अन्य कारण है। भू-स्खलन अचानक बाढ़ का कारण भी बनते हैं। हिमालय में किसी नदी का बहाव भू-स्खलन के मलबे के कारण रुक जाता है तो इससे कृत्रिम अस्थायी झील बनने लगती है। पानी का वेग अधिक होने से जब झील फूटती है तो पल्रयकारी बाढ़ आ सकती है, जैसा कनोडिया गाड में झील बनने के कारण उत्तरकाशी में बाढ़ आई थी। हाल में नेपाल में ऐसी झील टूटने पर बिहार में बाढ़ आई है।
बाढ़ व बाढ़-नियंत्रण के बारे में नये सिरे से सोचने की जरूरत महसूस की जा रही है। वास्तविकता तो यह है कि बाढ़ का बढ़ता क्षेत्र और इसकी बढ़ती जानलेवा क्षमता को तभी समझा जा सकता है जब बाढ़ नियंत्रण के दो मुख्य उपायों-तटबंधों और बंधों पर खुली बहस के जरिए जानने का प्रयास किया जाए कि अनेक स्थानों पर क्या बाढ़ नियंत्रण के इन उपायों ने ही बाढ़ की समस्या को नहीं बढ़ाया है, और उसे अधिक जानलेवा बनाया है?
तटबंधों की बाढ़ नियंत्रण उपाय के रूप में एक तो अपनी सीमाएं हैं तथा दूसरे निर्माण कार्य और रख-रखाव में लापरवाही और भ्रष्टाचार के कारण हमने इनसे जुड़ी समस्याओं को भी बढ़ा दिया है। तटबंध द्वारा नदियों को बांधने की एक सीमा तो यह है कि जहां कुछ बस्तियों को बाढ़ से सुरक्षा मिलती है, वहां कुछ अन्य बस्तियों के लिए बाढ़ का संकट बढ़ने की संभावना भी पैदा होती है। अधिक गाद लाने वाली नदियों को तटबंध से बांधने में एक समस्या यह भी है कि नदियों के उठते स्तर के साथ तटबंध को भी निरंतर ऊंचा करना पड़ता है। जो आबादियां तटबंध और नदी के बीच फंस कर रह जाती हैं, उनकी दुर्गति के बारे में तो जितना कहा जाए कम है। तटबंधों द्वारा जिन बस्तियों को सुरक्षा देने का वादा किया जाता है, उनमें भी बाढ़ की समस्या बढ़ सकती है। वर्षा के पानी के नदी में मिलने का मार्ग अवरुद्ध कर दिया जाए और तटबंध में इस पानी के नदी तक पहुंचने की पर्याप्त व्यवस्था न हो तो दलदलीकरण और बाढ़ की नई समस्या उत्पन्न हो सकती है। यदि नियंत्रित निकासी के लिए जो कार्य करना था उसकी जगह छोड़ दी गई है पर लापरवाही से कार्य पूरा नहीं हुआ है, तो भी यहां से बाढ़ का पानी बहुत वेग से आ सकता है। तटबंध द्वारा ‘सुरक्षित’ की गई आबादियों के लिए कठिन स्थिति तब उत्पन्न होती है जब निर्माण कार्य या रख-रखाव उचित न होने के कारण तटबंध टूट जाते हैं। अचानक पानी उनकी बस्तियों में घुस जाता है।
बांध या डैम निर्माण बांध प्राय: सिंचाई और पनबिजली उत्पादन के लिए बनाए जाते हैं। यह भी कहा जाता है कि उनसे बाढ़ नियंत्रण का महत्त्वपूर्ण लाभ प्राप्त होगा। यह लाभ तभी प्राप्त हो सकता है जब अधिक वष्रा के समय बांध के जलाशय में पर्याप्त जल रोका जा सके और बाद में उसे नियंत्रित ढंग से छोड़ा जा सके। पहाड़ों में जो वन विनाश और भू-कटाव हुआ है उससे जलाशयों में मिट्टी-गाद भर गई है और जल रोकने की क्षमता कम हो गई है। इसी कारण तेज वष्रा के दिनों में पानी भी अधिक होता है क्योंकि वष्रा के बहते जल का वेग कम करने वाले पेड़ कट चुके हैं। बांध के संचालन में सिंचाई और पनबिजली के लिए जलाशय को अधिक भरने का दबाव होता है।
दूसरी ओर वर्षा के दिनों में बाढ़ से बचाव के लिए जरूरी होता है कि जलाशय को कुछ खाली रखा जाए। दूसरे शब्दों में बांध के जलाशय का उपयोग बाढ़ बचाव के लिए करना है तो पनबिजली के उपयोग को कुछ कम करना होगा। ऐसा नहीं होता है तो जलाशय में बाढ़ के पानी को रोकने की क्षमता नहीं रहती। ऐसे में पानी वेग से एक साथ छोड़ना पड़ता है जो भयंकर विनाश उत्पन्न कर सकता है। कोई बड़ा बांध टूट जाए तब तो खैर, पल्रय ही आ जाती है जैसा मच्छू बांध टूटने पर मोरवी शहर के तहस-नहस होने के समय देखा गया। पर बांध बचाने के लिए जब बहुत सा पानी एक साथ छोड़ा जाता है, उससे जो बाढ़ उत्पन्न होती है, वह भी सामान्य बाढ़ की अपेक्षा कहीं अधिक विनाशक और जानलेवा होती है। अब आगे के लिए जो भी नियोजन हो, उसके लिए बाढ़ के इस बदलते रूप को ध्यान में रखना जरूरी है। तभी हमें बाढ़ नियंत्रण में अधिक सफलता मिलेगी।
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