गोवा मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय ध्वज
वर्ष 1948 के प्रतिबंध काल में सरसंघचालक श्री गुरु जी से किसी ने भगवा ध्वज और तिरंगे झंडे के संबंध के बारे में पूछा।
गोवा मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय ध्वज |
उन्होंने कहा कि भगवे की तरह तिरंगे झंडे के लिए भी स्वयंसेवक अपने प्राणों की बाजी लगा देंगे। श्री नारायण बलवन्त (राजाभाऊ) महाकाल ने उनकी बात को सत्य कर दिखाया।
राजाभाऊ का जन्म भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन (म.प्र) में महाकाल मंदिर के पुजारी परिवार में 26 जनवरी, 1923 को हुआ था। उज्जैन में प्रचारक रहे श्री दिगम्बर राव तिजारे के संपर्क में आकर वे स्वयंसेवक बने और उन्हीं की प्रेरणा से 1942 में प्रचारक जीवन स्वीकार किया। सर्वप्रथम उन्हें सोनकच्छ तहसील जिला देवास मध्य प्रदेश भेजा गया। वे संघषर्प्रिय तो थे ही; पर समस्याओं में से मार्ग निकालने की सूझबूझ भी रखते थे। सोनकच्छ तहसील के गांव पीपलरावां में एक बार असामाजिक तत्वों ने उपद्रव किया। वहां कुनबी जाति के हिंदुओं की बस्ती में संघ की शाखा लगती थी। राजाभाऊ ने वहां जाना चाहा, तो पुलिस ने जाने नहीं दिया। इस पर राजाभाऊ रात के अंधेरे में उन लोगों के बीच पहुंचे और रात में ही वापस लौट आए।
उनके पहुंचने से हिंदुओं का उत्साह बढ़ गया और फिर आगे असामाजिक तत्व अधिक उपद्रव नहीं कर सके। ऐसे ही कितने साहसी कार्य राजाभाऊ ने संघ प्रचारक रहते किया। उस समय समाज में संघ कार्यकर्ताओं के कार्यों से ज्यादा लोग परिचित नहीं थे, लेकिन राजाभाऊ ने प्रचारक रहते सांस्कृतिक व राष्ट्र निर्माण जैसे कई कार्य किए। जैसा कि राजाभाऊ के साथी कार्यकर्ता व उनके प्रत्यक्षदर्शी सम्माननीय अवधूत राव मूंगी जी वर्तमान में 93 वर्ष की उम्र में सोनकच्छ में ही निवास करते हैं, ने बताया कि 1948 के प्रतिबंध काल में अनेक प्रचारक घर वापस लौट गए। पर राजाभाऊ ने सोनकच्छ में राष्ट्र निर्माण के कार्य में आर्थिक कारणों से बाधा ना आए इसलिए सोनकच्छ नगर के एक स्थान पर एक होटल खोल दिया। अब उसी स्थान पर इसी 15 अगस्त 2022 को उनकी भव्य प्रतिमा का अनावरण है। इसी होटल से उनके व साथियों के भोजन की समस्या हल हो गई। राष्ट्र निर्माण के कार्य के लिए यातायात का पैसा मिलने लगा और होटल कार्यकर्ताओं के मिलने का एक ठिकाना भी बन गया। प्रतिबंध समाप्ति के बाद उन्होंने फिर से प्रचारक की तरह पूर्ववत कार्य प्रारम्भ कर दिया। उन्होंने सोनकच्छ में रहते हुए ‘जनाधिकार समिति’ बनाकर इसके माध्यम से राष्ट्रवाद व समाज कल्याण के कई जनजागरण के कार्य किए। श्री अवधूत राव मूंगी जी से हुई मेरी बातचीत में उन्होंने राजाभाऊ के राष्ट्रीय कार्यों पर ओर कई रोचक बातें बताई।
1955 में गोवा की मुक्ति के लिए आंदोलन प्रारम्भ होने पर देश भर से स्वयंसेवक इसके लिए गोवा गए। शुरुआत में तत्कालीन सरकार इस आंदोलन के लिए तैयार नहीं थी, लेकिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व अन्य संगठनों की पुरजोर मांगों पर नेहरू जी की सरकार को झुकना पड़ा व गोवा-दमन-दीव को पुर्तगालियों से मुक्त कराने के लिए स्वयंसेवकों ने गोवा की ओर कूच कर दिया। 13 अगस्त 1955 को इंदौर व उज्जैन के जत्थे का नेतृत्व राजाभाऊ ने किया। वहीं उज्जैन के देवास जिले से पहले इस जत्थे में कुशाभाऊ ठाकरे जाने वाले थे, लेकिन राजाभाऊ ने उन्हें कहा कि आपको अभी बहुत से अन्य राष्ट्रीय कार्य करना है। ‘देवास से मैं गोवा मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व करूंगा।’
14 अगस्त की रात में लगभग 400 सत्याग्रही सीमा पर पहुंच गए। योजनानुसार 15 अगस्त को प्रात: लालकिले से प्रधानमंत्री का भाषण प्रारम्भ होते ही सीमा से गोवा मुक्ति सेनानियों का कूच होने लगा। सबसे पहले बसंतराव ओक और उनके पीछे चार-चार की संख्या में सेनानी सीमा पार करने लगे। लगभग दो किमी चलने पर सामने सीमा चौकी आ गई। यह देखकर सत्याग्रहियों का उत्साह दुगना हो गया। बंदूकधारी पुर्तगाली सैनिकों ने चेतावनी दी; पर सेनानी नहीं रुके। राजाभाऊ तिरंगा झंडा लेकर जत्थे में सबसे आगे थे। सबसे पहले बसंतराव के पैर में गोली लगी। फिर पंजाब के हरनाम सिंह के सीने पर गोली लगी। इस पर भी राजाभाऊ बढ़ते रहे। अत: सैनिकों ने उनके सिर पर गोली मारी। ‘उससे पहले मध्य प्रदेश के ब्यावरा के स्वयंसेवक को राजाभाऊ ने तिरंगा थमाया। उन्होंने तिरंगे को धरती पर गिरने नहीं दिया और पुर्तगालियों से गोवा मुक्तिका मार्ग प्रशस्त किया।’ इसके पश्चात राजाभाऊ तथा अन्य बलिदानियों के शव पुणो लाए गए। वहीं उनका अंतिम संस्कार होना था।
प्रशासन ने धारा 144 लगा दी; पर जनता सब प्रतिबंधों को तोड़कर सड़कों पर उमड़ पड़ी। राजाभाऊ के मित्र शिवप्रसाद कोठारी ने उन्हें मुखाग्नि दी। उनकी अस्थियों को पवित्र क्षिप्रा नदी में विसर्जित कर दिया गया। जिस सोनकच्छ क्षेत्र में उन्होंने राष्ट्र निर्माण का कार्य किया, वहीं पर उनके बहुप्रतीक्षित अमर बलिदानी राजाभाऊ महाकाल के बलिदान स्मारक का भूमि पूजन 25 जुलाई 2022 को उनके साक्ष्य व साथी सम्माननीय अवधूत राव मूंगी जी के कर कमलों से सम्पन्न हुआ और आगे स्वाधीनता के 75 वें अमृत महोत्सव के अंतर्गत राजाभाऊ महाकाल की भव्य प्रतिमा उनकी पुण्यतिथि व स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त को किया जाना तय हुआ है।
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