रामराज्य की झलक

Last Updated 09 Aug 2022 01:45:35 PM IST

प्रभुराम के राज्य को आदर्श, उन्नत और समानता का प्रतीक माना गया है, जहां निषादराज केवट से लेकर गरीब वनवासी भीलनी तक के सम्मान के दशर्न होते हैं।


रामराज्य की झलक

यहां तक कि माता सीता की खोज में खग-मृग से भी संवाद है। रीछ-वानर के बल पर लंका विजय की आदर्श कथा हमें कंठस्थ है। गरु ड़ राज जटायु से लेकर नन्हीं गिलहरी तक की भूमिका हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की सुंदर समदृष्टि के दर्शन कराती है। आज देश की प्रथम नागरिक महामहिम राष्ट्रपति के पद पर दुर्गम, दूरस्थ संथाल जनजाति की एक महिला द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचित होना, एक ऐसे विमर्श के लिए प्रासंगिक हो जाता है जो सीधे रामराज की दृष्टि को प्रतिबिंबित करता है।

भगवान बुद्ध की शिक्षाएं और उनका दर्शन प्राणी मात्र के सम्मान भाव से ओतप्रोत है। बुद्ध की जीवन यात्रा, विचार यात्रा और धर्म यात्रा में हमें ऐसी ही दृष्टि मिलती है जो आदर्श समाज में अच्छे-बुरे, ऊंच-नीच और बड़े-छोटे के भाव के विपरीत है। महात्मा गांधी का संपूर्ण वांग्मय गरीब, शोषित, वंचित की बराबरी, अस्पृश्यता के विरोध और समान मानव मूल्यों के इर्द-गिर्द घूमता है। उन्होंने अपने संभाषणों, कार्यक्रमों और खुद अपनी दैनिक क्रियाओं में इस बात को साबित किया है कि वंचित को अवसर न देना महापाप है। भारत की एक ऐसी विभूति जिसने अपने चिंतन, बोध और विचार से सामाजिक नजरिए को एक नये रूप में प्रस्तुत किया और परंपरा मानकर चल रहे सामाजिक ढांचे को नई सोच दी। बाबा साहब ने ऐसे समाज से उठकर अपने को स्थापित किया, जिसे कुलीन समाज स्तरीय मनुष्य तक स्वीकारने को भी तैयार नहीं था।

अवसरों से वंचित समाज को जिसे जानबूझकर मुख्यधारा से सम्बद्ध न किया गया हो, अगर उन पर विचार होता है, उसका सम्मान होता है तो यह बड़े मन, ऊंचे विचार और समदर्शी दृष्टि का सूचक है। पिछले 8 वर्षो के भाजपानीत एनडीए गठबंधन की सरकार जो लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में समाज के और जीवन के हर कोण में अपनी आदर्श और प्रेरक उपस्थिति दर्ज करा रही है, जिसका सबसे बड़ा उदाहरण विपन्नता, अभाव और उपेक्षा की पृष्ठभूमि से अपनी प्रतिभा और योग्यता से उपजी और आज पूरे विश्व के समक्ष विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत के राष्ट्रपति के रूप में आसीन द्रौपदी मुर्मू हैं। बीती 25 जुलाई भारत के राष्ट्रपति पद के शपथ ग्रहण समारोह का दृश्य याद करें। पं. दीनदयाल उपाध्याय ने अंत्योदय की जिस संकल्पना को भारतीय जनसंघ ने विचार दर्शन बनाया और उसके वर्तमान राजनीतिक स्वरूप भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में प्रधानमंत्री मोदी ने उसे किस तरह साकार किया यह क्षण उसका आदर्श उदाहरण था। राष्ट्रपति पद देश का सर्वोच्च संवैधानिक पद है इसलिए इन संदभरे की प्रासंगिकता बढ़ जाती है कि जब सर्वोच्च पद पर पार्टी के विचार दर्शन का साकार स्वरूप धरातल पर उतरता है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के असंख्य सेनानियों और संविधान निर्माताओं ने जिस कल्याणकारी राष्ट्र की संकल्पना की थी वह अक्षरश: साकार हुआ। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जब द्रौपदी मुर्मू का नाम राष्ट्रपति पद की प्रत्याशी के लिए निश्चित किया तब एक ऐसे व्यक्तित्व का चयन हुआ था, जिसने भारत के वंचित वर्ग में जन्म लेकर अपने परिश्रम और आत्मबल से असंभव को संभव किया है।

इस बार भाजपा ने उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी के रूप में जगदीप धनखड़ का चयन कर एक किसान के बेटे को सुअवसर प्रदान किया है। किसान पृष्ठभूमि के धनखड़ खेती किसानी के ही परिवेश में पले बढ़े हैं। संघषर्, अभावों व असुविधाओं से जूझकर आगे बढ़ने वाले धनखड़ सफल अधिवक्ता, विधायक, सांसद, मंत्री और राज्यपाल जैसे पदों को विभूषित कर चुके हैं। आने वाले दिनों में भारत की सरकार भारत की समतामूलक, वैविध्यपूर्ण संस्कृति और किसान सम्मान के आदर्श प्रतिनिधि होंगे। राष्ट्रपति आदिवासी, उपराष्ट्रपति किसान और प्रधानमंत्री विपन्न पृष्ठभूमि के परिवार से आया पिछड़े समाज का एक व्यक्तित्व। नये भारत के वर्तमान लोकतंत्र का यह चित्र उपेक्षित, वंचित और पिछड़े समाज के सम्मान की त्रिवेणी है। जब महात्मा गांधी ने रामराज्य की कल्पना की तो निश्चित तौर पर उनके मन में इसी तरह की सरकार की संकल्पना रही होगी। महात्मा बुद्ध इसी तरह का एक समाज खड़ा करना चाहते थे जो जाति भेद से मुक्त हो। 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के दशकों बाद भी सत्ता अभिजनवादी संस्कार की शिकार रही। शुरुआती दशक में तो संसद, केंद्रीय मंत्रिमंडल, राज्य के विधानमंडल और राज्य मंत्रिमंडलों पर अभिजात समाज का वर्चस्व था।

कहने को तो लोकतंत्र था पर उस पर वंश तंत्र की गहरी छाप थी। नरेन्द्र मोदी इस देश के पहले प्रधानमंत्री हैं, जो बहुजन समाज से आकर भी अभिजन समाज के लिए सहज स्वीकार्य हैं। 1990 के दशक में जब एक किसान पुत्र एचडी देवेगौड़ा प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान हुए तब एक वर्ग इसे उपलब्धि करार देता था किंतु उनका कार्यकाल और राष्ट्रीय क्षितिज पर उनका नेतृत्व दोनों अल्पजीवी रहे। किसान पुत्र चौधरी चरण सिंह 1979 में प्रधानमंत्री जरूर बने पर उनका कार्यकाल किसी प्रकार की छवि छोड़ने जैसा दीर्घायु नहीं हुआ। वह कांग्रेस के छल के शिकार हो गए। प्रधानमंत्री मोदी ने सामाजिक और आर्थिक पायदान के आखिरी व्यक्ति को दैनंदिन जीवन के आवश्यक सुविधाओं से सशक्त तो किया ही, साथ ही उसकी राजनीतिक और सामाजिक प्रबलता का भी विस्तार किया है। मोदी ने राजीव गांधी के शासनकाल में गरीबों के संसाधनों की लूट को पूरी तरह से बंद कर दिया। महामारी के भयंकर काल में 2 वर्षो तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त के खाद्यान्न की व्यवस्था की गई।

सनातन जीवन में प्रतीक का बड़ा महत्व है। प्रतीक हमारे आदशरे, मूल्यों और संस्कृति से हमे आबद्ध रखते हैं। लोकतंत्र में भी प्रतीक का प्रभाव संपूर्ण देश काल परिस्थिति को संदेश देता है किसी कालखंड में अभिजात्य सामंतवादी और श्रेष्ठअहं के भाव से जीने वाले निर्णायकों ने एक समाज विशेष को हेय और उपेक्षा की कालकोठरी में कैद रखा था आज उस समाज का प्रतीक हमारे अभिभावक के रूप में दिगदिगंत में हमारा परचम बनकर हमें आल्हादित, आनंदित और गौरवान्वित कर रहा है।
(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं)

प्रेम शुक्ल


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