आत्महत्या : जवानों की दिक्कतों को समझना होगा
दिल्ली पुलिस के हेड कांस्टेबल ने कार में खुद को गोली मारी। क्राइम ब्रांच की शकरपुर यूनिट में थे, पत्नी से था विवाद।
आत्महत्या : जवानों की दिक्कतों को समझना होगा |
राजस्थान के जोधपुर में सीआरपीएफ के एक जवान ने करीब 17 घंटे तक अपने परिवार को बंधक बनाकर रखा। बालकनी से फायरिंग करता रहा और बाद में खुद को गोली मार ली। हनुमानगढ़ जिले के भिरानी थाना क्षेत्र में सुरक्षाकर्मी ने खुद को गोली मार ली। कुछ दिनों से वह तनावग्रस्त था। भाजपा के रायपुर कार्यालय में तैनात सुरक्षाकर्मी ने भी खुद को गोली मार ली। मानसिक तौर पर परेशान अभी छुटटी बिताकर काम पर लौटा था। जालंधर के एक विधायक के सुरक्षाकर्मी ने भी खुद को गोली मार ली। दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर, डीआरडीओ परिसर में या नार्थ ब्लाक की सिक्योरिटी में लगे जवान ने जिस प्रकार गोली मारकर आत्महत्या कर ली। ऐसी खबरें हमें झकझोरकर रख देती हैं।
आखिर, सुरक्षाकर्मी आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? ऐसी घटनाएं बराबर सुनने को मिल रही हैं। आखिर उनमें किस बात का गुस्सा या तनाव है, जो अपनी जीवन की लीला ही खत्म कर लेने पर मजबूर कर देता है? ये बेहद दुखद और चिंतनीय है। क्या वे इन गुस्से को पचा नहीं पा रहे, कई गंभीर सवाल हैं जिनकी हमारे समाज और सरकार को पड़ताल करनी होगी। दरअसल, इसके मूल में जाने की जरूरत है। कहते हैं कि सैन्य और असैन्य बलों में खुदकुशी के मामले बढ़ने का मूल कारण इनका परिवार, दोस्तों और सगे-संबंधियों से दूर रहना भी है। इन्हें छुट्टी कम मिलती है। इस वजह से बेहद तनाव में रहते हैं। कई घटनाओं में सैन्य बलों में कार्यरत साथियों का आपसी विवाद भी इसका कारण बनता है। सैन्य बलों में कठोर अनुशासन होता है जिसके लिए उनका शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी है। मगर कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिसके कारण व्यक्ति खुद पर काबू नहीं रख पाता। समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह समस्या आगे और विकराल हो सकती है।
अवसाद की वजह परिवार की जरूरतों को समय पर पूरा न कर पाना भी है। चाहते हुए भी माता-पिता और बच्चों से न मिल पाना अंदर उन्हें कुंठित कर देता है और इसी निराशा के कारण वह खुदकुशी करने जैसा कदम उठा लेता है। कई बार तो तनाव के चलते वह अपने ही सहयोगियों पर हमलावर हो जाता है। भारत में सुरक्षाकर्मिंयों या सैनिकों की आत्महत्या के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं। मानसिक तनाव, परिवार से दूरी, आर्थिक संकट इस माहौल के लिए जिम्मेदार हैं। सरकार को इन सब समस्याओं को उपचारात्मक समाधान करना चाहिए। हमारे जवान कोई मशीन नहीं बल्कि जीते-जागते इंसान हैं। इनकी भी संवेदनाएं होती हैं, जरूरतें होती हैं और पारिवारिक दायित्व होते हैं। उन्हें निभाने का भी दबाव होता है। ऐसे में नौकरी को लेकर सब कुछ सहज नहीं होता है तो उनमें तनाव बढ़ना स्वाभाविक है।
भावुक और संवेदनशील इंसान ऐसी परिस्थितियों में विचलित हो जाते हैं। मानसिक तनाव या अवसाद के शिकार बन जाते हैं जो बाद में उन्हें इस प्रकार के कदम उठाने को मजबूर कर देता है। सरकार को उनकी पारिवारिक जरूरतों पर भी ध्यान देना चाहिए। हमारे जवान मानसिक तनाव के शिकार न हों, इसका खास ख्याल रखा जाना चाहिए। सुविधा और अनुशासन को लेकर समय-समय पर सरकार को उनकी समीक्षा भी करनी चाहिए। लंबे समय तक परिवार से दूर रहने वाले जवान न तो अपनी व्यक्तिगत समस्याएं आपस में साझा कर पाते हैं और न ही किसी तरह की काउंसिलिंग की व्यवस्था होती है। इसके लिए उनकी सुनवाई और समाधान की दिशा में कदम उठाया जाना चाहिए। बेरोजगारी और बेकारी ने भी आत्महत्या की दर को बढ़ाया है। सोशल मीडिया भी इसका जिम्मेदार है। कई तरह की सामग्री या सूचनाओं के संसार ने लोगों के चित्त को असंतुलित कर दिया है। छोटे-मोटे रोजगार-धंधे चौपट हो गए। लोगों में सहनशक्ति और धैर्य की कमी हो गई।
अति महत्त्वाकांक्षा के चलते अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख पाते। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले 10 सालों में देश में अर्धसैनिक बलों के 1,205 कर्मिंयों ने आत्महत्या कर ली। बीते संसदीय सत्र के दौरान केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने यह बात कही। इनमें सर्वाधिक मामले वर्ष 2021 में देखने को मिले। यानी पिछले एक दशक में किसी भी वर्ष की तुलना में 2020 और 2021 में कहीं अधिक केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल के जवानों ने आत्महत्या के चलते जान गंवाई। उन्होंने बताया कि घरेलू समस्याएं, बीमारी और आर्थिक समस्याएं आत्महत्या के कुछ प्रमुख कारण हैं। ज्यादातर घटनाएं सख्त कामकाजी परिस्थितियों, पारिवारिक मुद्दों और जरूरत पर छुटटी न मिल पाने के कारण हुई हैं। हालांकि उनकी सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं सुविधाओं के स्तर पर सरकार द्वारा कई सकारात्मक पहल किए जाने की भी खबर है।
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