श्रद्धांजलि : जन्मस्थली में भी बेगाने

Last Updated 10 Oct 2021 02:51:51 AM IST

अलबेले समाजवादी चिंतक और देश की राजनीति में गैर-कांग्रेसवाद के जनक डॉ. राममनोहर लोहिया के गृह प्रदेश उत्तर प्रदेश में उनकी राजनीतिक विरासत पर बड़ा दावा अभी भी समाजवादी पार्टी का ही है, लेकिन प्रदेश के अंबेडकरनगर, तत्कालीन फैजाबाद जिले के मुख्यालय अकबरपुर स्थित लोहिया की जन्मभूमि में, सच पूछिए तो, उनके बस एक ही निर्दभ वारिस थे-बचपन के साथी बंसी नाई।


श्रद्धांजलि : जन्मस्थली में भी बेगाने

दरअसल, डॉ. लोहिया की मां उन्हें जन्म देने के थोड़े ही समय बाद चल बसी थीं। उनके पीछे जिन विशालहृदया ने राममनोहर को, हां, तब वे डॉ. लोहिया नहीं बने थे, मातृवत स्नेह से अपना दूध पिलाकर पाला, वह इन्हीं बंसी की दादी थीं। तब बंसी और राममनोहर साथ-साथ रहते, खेलते-कूदते व खाते-पीते थे। दोनों के साझा बचपन की मीठी यादें शतायु होकर इस दुनिया से गए बंसी के दिलोदिमाग में उनके अंतिम दिनों तक खासे गहरे तक रची-बसी थीं। बीमारी व वृद्धावस्था के बावजूद बंसी बिना नागा हर सुबह अपने शहर में लगी डॉ. लोहिया की प्रतिमा तक जाते, स्वच्छ पानी से उसे धोते, उस पर पुष्पांजलि अर्पित करते और सामथ्र्य भर उसकी साफ-सफाई करते थे।

गुजर-बसर का कोई ठीक-ठाक जरिया न होने के बावजूद उन्होंने कभी किसी से अपनी इस श्रद्धा का कोई प्रतिफल या प्रतिदान नहीं चाहा। तब भी नहीं, जब प्रदेश में समाजवादी पार्टी की डॉ. लोहिया को अपना ‘राजनीतिक आराध्य’ बताने वाली सरकारें बनीं और शुभचिंतकों ने बंसी को सुझाया कि वे लपक कर उनका ‘फायदा’ उठा लें। बंसी ने उनसे साफ कह दिया कि वे अपनी दादी के दूध की कीमत मांगने जाने से पहले चाहेंगे कि धरती फट जाए और वे उसमें धंस जाएं, जबकि इन सरकारों ने बंसी के जीते जी अपनी ओर से अपने राजनीतिक आराध्य के बालसखा की कोई खोज-खबर लेना जरूरी नहीं समझा।

साफ कहें तो प्रदेश में कई बार ‘समाजवादी’ सरकारें बनने के बावजूद डॉ. लोहिया अपनी जन्मभूमि में आम तौर पर बेगाने से ही नजर आते रहे और बंसी के निधन के बाद तो लावारिस हो गए हैं। इस कदर कि करोड़ों की लागत से उनसे जुड़े शोधों के लिए बना लोहिया संस्थान भी उनकी स्मृतियों के संरक्षण में कोई भूमिका नहीं निभा पा रहा। एक समय जॉर्ज फर्नाडिस चाहते थे कि अकबरपुर को ‘लोहिया धाम’ नाम से जिला बनाया जाए। उन्होंने इसके लिए प्रयत्न भी किए थे। पर बात बनी नहीं और सपा-बसपा के झगड़े में उनका गठबंधन टूटा तो मायावती ने 29 सितम्बर, 1995 को बतौर मुख्यमंत्री उसे डॉ. अंबेडकर के नाम से जिला बना दिया।

बहरहाल, अब हालत यह है कि भले ही अंग्रेजी हटाना और हिंदी लाना डॉ. लोहिया के एजेंडे में सबसे ऊपर रहा हो, फैजाबाद के डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय में न भाषाओं का विभाग है, न ही डॉ. लोहिया के अकादमिक कामों को आगे बढ़ाने का कोई उपक्रम होता है। डॉ. लोहिया के नाम की कोई पीठ तक नहीं है।  अलबत्ता, फैजाबाद में लोग अब भी याद करते हैं कि डॉ. लोहिया ने चुनावी मुकाबलों में हार-जीत को उन्होंने कभी भी ज्यादा महत्त्व नहीं दिया।

उनका मानना था कि चुनाव, प्रत्याशियों की हार-जीत से कहीं आगे, पार्टयिों द्वारा अपनी नीतियों व सिद्धांतों को जनता के बीच ले जाने के सुनहरे अवसर होते हैं। इतिहास गवाह है कि 1962 के आम चुनाव में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को चुनौती देने के लिए उनके निर्वाचन क्षेत्र फूलपुर से वे खुद प्रत्याशी बने तो इस ‘सुनहरे अवसर’ का भरपूर इस्तेमाल किया था। अकबरपुर में उनके अभिन्न मुस्लिम सहयोगी थे चौधरी सिब्ते मोहम्मद नकवी। मई, 1963 में फरूखाबाद के कांग्रेस सांसद मूलचंद के निधन के बाद उस सीट के लिए उपचुनाव घोषित हुआ तो आम चुनाव में नेहरू से हारकर लोक सभा पहुंचने से रह गए डॉ. लोहिया अपने उन समर्थकों के दबाव में एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरे, जिनके अनुसार देश की जटिल होती जा रही स्थिति के मद्देनजर उनका संसद में होना जरूरी था।

उपचुनाव के दौरान वे सिब्ते को प्रचार कार्य में मदद के लिए अकबरपुर से फरूखाबाद ले जा रहे थे तो रास्ते में पार्टी के किसी साथी ने कह दिया कि सिब्ते भाई के चलते मुसलमानों के वोट हमें आसानी से मिल जाएंगे।
इतना सुनना था कि डॉ. लोहिया ने मोटर रु कवाकर सिब्ते को उतारा और अकबरपुर लौट जाने को कह दिया। साथियों से बोले, ‘जो भी वोट मिलने हैं, हमारी पार्टी की नीतियों व सिद्धांतों के आधार पर मिलें तो ठीक। किसी कार्यकर्ता के धर्म, संप्रदाय या जाति के नाते वोट मिले तो क्या मिले! इस तरह वोट बढ़ाकर जीतने से बेहतर होगा कि मैं फूलपुर की तरह यह मुकाबला भी हार जाऊं।’ सिब्ते और साथियों ने बहुतेरा कहा कि इस बाबत वे फिर सोच लें, लेकिन वे अपने फैसले पर अडिग रहे और सिब्ते को अकबरपुर लौट जाना पड़ा, लेकिन उनकी ऐसी नैतिकताएं अब उनके विरोधियों तो क्या अनुयायियों को भी रास नहीं आतीं।

कृष्ण प्रताप सिंह


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