वैश्विकी : कश्मीर हिंसा और तालिबान

Last Updated 10 Oct 2021 02:55:49 AM IST

काबुल पर तालिबान आतंकवादियों के कब्जे को लेकर भारत में जिन भयावह चुनौतियों की आशंका व्यक्त की जा रही थी, वह सही साबित हो रहे हैं।


वैश्विकी : कश्मीर हिंसा और तालिबान

पिछले एक हफ्ते के दौरान कश्मीर में गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की जिस तरह योजनाबद्ध तरीके से सिलसिलेवार हत्या की गई, वे इस बात के प्रारंभिक संकेत हैं कि तीस साल पहले का इतिहास दोहराया जा सकता है। तीन दशक पहले अफगानिस्तान से सोवियत सेनाओं की वापसी तथा वहां तालिबान हुकूमत कायम होने के बाद कश्मीर में जेहादी उन्माद और आतंकवाद एक बड़े खतरे के रूप में सामने आया था। हत्याओं के दौर के साथ ही कश्मीरी पंडितों का कश्मीर घाटी से पलायन हुआ था।

तीस साल बाद भी कश्मीरी पंडित अपनी जन्मूभमि लौट सकेंगे यह संभावना धूमिल हो रही है। अनुच्छेद 370 हटाए जाने तथा राज्य के पुनर्गठन के बाद जो सकारात्मक परिवर्तन हुए थे, उन पर सवालिया निशान लग गया है। हाल के सिलसिलेवार हत्याओं से कश्मीर घाटी में शेष बचे अथवा वहां वापस लौट रहे हिंदू और सिखों का पलायन शुरू हो गया है। वे सुनिश्चित भविष्य के साथ जम्मू में शरण ले रहे हैं।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कश्मीर के घटनाक्रम पर गहरी चिंता व्यक्त की है। वह मानते हैं कि यह घटनाक्रम अफगानिस्तान से जुड़ा हो सकता है। उन्होंने कहा कि सिलसिलेवार हत्याओं के लिए तालिबान सीधे रूप से जिम्मेवार है या नहीं, इसके बारे में तथ्यों के आधार पर ही फैसला हो सकता है। जाहिर है कि विदेश मंत्री के रूप में जयशंकर के पास सीमित सूचनाएं ही होंगी। अफगानिस्तान में भारत की कोई राजनयिक मौजूदगी नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल और सुरक्षा एजेंसियों के पास ऐसी निश्चित जानकारी होगी कि तालिबान की अगली चाल क्या है? वास्तव में अफगानिस्तान में आतंकवादियों का महागठबंधन कायम है।

इस महागठबंधन का सबसे शक्तिशाली घटक तालिबान है। आतंकी महागठबंधन में कई छोटे-छोटे अन्य घटक भी हैं। जेहाद के बारे में उनकी अलग-अलग सोच है और अलग-अलग एजेंडा है। लेकिन जम्मू-कश्मीर का जहां तक सवाल है उनकी राय एक जैसी है। ये सब घटक अपने-अपने तरीकों से भारत में इस्लामी राज्य या खलीफा शाही कायम करना चाहते हैं। घरेलू मोच्रे पर तालिबान का विरोध करने वाला यदि कोई आतंकवादी घटक जम्मू-कश्मीर की ओर कूच करता है तो तालिबान उसे रोकने की बजाय समर्थन ही देगा।

पाकिस्तानी आकाओं के निर्देश पर चलने वाली तालिबान हुकूमत इस बात की सावधानी बरतेगी कि सीधे रूप से उसे दोषी नहीं ठहराया जा सके। तालिबान अपने पड़ोसी देश ताजिकिस्तान के विरुद्ध भी इसी तरह के हथकंडे अपना रहा है। तालिबान ने एक ताजिक गुट के साथ मिलकर साजिश रची है। ताजिक बहुल ताजिकिस्तान में आतंकवादी तांडव शुरू करने का काम उसने ताजिक गुट को ही सौंपा है। इसी खतरे के मद्देनजर  रूस ने कहा है कि वह किसी आतंकवादी खतरे की स्थिति में ताजिकिस्तान की रक्षा करेगा।

पाकिस्तान में पनाह लिये लश्कर-ए-तोयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे संगठन, खुफिया एजेंसी आईएसआई से निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। शीतकाल के दौरान घुसपैठ करना दुष्कर है तथा इस समय का उपयोग आतंकवादी एकजुट होने, हथियार इकट्ठे करने और प्रशिक्षण के लिए करेंगे। अगले वर्ष फरवरी में यूपी और पंजाब में विस चुनाव होने हैं। यही वह समय होगा जब आतंकवादी अपनी साजिश पर अमल करने के लिए सक्रिय होंगे। जम्मू-कश्मीर के साथ पंजाब भी उनके निशाने पर होगा।

पंजाब और हरियाणा के हाल के घटनाक्रम से स्पष्ट होता है कि खुफिया एजेंसी आईएसआई इन सीमावर्ती क्षेत्रों में अस्थिरता पैदा करने के लिए दिन-रात काम कर रही है। भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राजनीतिक गतिविधियों और विरोध की आड़ में आईएसआई अपना खूनी खेल खेलना चाहती है। अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा में सक्रिय भारत विरोधी ताकतें अस्थिरता के इस खेल में जाने-अनजाने आईएसआई का मोहरा साबित होंगी। घटनाक्रम क्या रुख लेगा इसका अनुमान लगाना मुश्किल है। किसी बड़े आतंकवादी हमले के होने की स्थिति में भारत की जवाबी कार्रवाई कहां जाकर रुकेगी, इसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकती।

डॉ. दिलीप चौबे


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