पंजाब कांग्रेस : इस हश्र का जिम्मेदार कौन?
कांग्रेस इस समय यह तर्क दे रही है कि हमने विधायकों से बातचीत करने के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री पद से कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाने का फैसला किया।
पंजाब कांग्रेस : इस हश्र का जिम्मेदार कौन? |
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला का बयान है कि 78 विधायकों ने उनका विरोध किया उसके बाद ही केंद्रीय नेतृत्व को फैसला करना पड़ा। यह बात भी साफ है कि नवजोत सिंह सिद्धू जब अपने साथ ज्यादा-से-ज्यादा विधायकों के होने का दावा कर रहे थे तो वह निराधार नहीं था। उन्होंने विधायकों की बैठक बुलाई तो उसमें कैप्टन कैबिनेट के मंत्री तक शामिल हुए थे।
किसी भी प्रदेश में मुख्यमंत्री के विरु द्ध पार्टी के अंदर माहौल बन जाए और बड़ी संख्या में नेता विधायक खुलकर सामने आने लगे तो केंद्रीय नेतृत्व को इस तरह का फैसला करना पड़ता है। कांग्रेस की जगह दूसरी पार्टी भी होती और परिस्थितियां वैसे ही हो जैसे बताई जा रही है तो ऐसा ही फैसला करती। किंतु क्या वाकई जो कुछ इस समय कहां जा रहा है वही सच है? राजनीति की सामान्य समझ रखने वाले भी जानते हैं कि अगर केंद्रीय नेतृत्व सख्त रुख अपना ले तो किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ इतनी संख्या में विधायक खुलकर सामने नहीं आ सकते। सच यही है कि सिद्धू ने जबसे कैप्टन के विरुद्ध झंडा उठाया; उन्हें रोकने, मनाने, समझाने, चेतावनी देने की कोशिश ही नहीं की गई। वे दिल्ली आते राहुल गांधी, प्रियंका वाड्रा, से भेंट होती और सोशल मीडिया पर फोटो जाता। यह सिलसिला चलता रहा और इसका संदेश पूरे पंजाब के कांग्रेस में जो गया होगा उसकी कल्पना आसानी से की जा सकती है।
प्रदेश प्रभारी हरीश रावत परिपक्व और सूझबूझ वाले नेता हैं। उन्हें भी सच पता होगा। भारतीय राजनीति में इस तरह के सच को कोई नेता सार्वजनिक रूप से बाहर नहीं करता। एक तर्क यह भी है कि मलिकार्जुन खड़गे, हरीश रावत और जेपी अग्रवाल तीनों के समूह ने जो रिपोर्ट दी उसके आधार पर फैसला हुआ। रिपोर्ट पूरी तरह सार्वजनिक नहीं है। कई बार नेताओं का समूह रिपोर्ट भी केंद्रीय नेतृत्व की मंशा के अनुरूप देता है। राहुल गांधी यह चाहें कि कैप्टन अमरिंदर मुख्यमंत्री से हट जाएं तो कोई समूह उनके सामने आकर ऐसी रिपोर्ट कैसे दे सकता है कि उनका रहना आवश्यक है? पूरी स्थिति को देखने के बाद किसी का भी निष्कर्ष यही आएगा का वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व अपनी पार्टी को बचाने की बजाय उसके पतन के लिए जो कुछ संभव है वह कर रहा है। जो करना चाहिए वह कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व नहीं कर रहा है। अगर कैप्टन अमरिंदर सिंह आज नई पार्टी बनाकर कांग्रेस के विरु द्ध मोर्चा खड़ी करने जा रहे हैं तो इसके लिए किसे दोष दिया जाएगा? उन्होंने कहा भी है कि सिद्धू इसके लिए जिम्मेदार नहीं है? वे कह रहे हैं कि हमने केंद्रीय नेतृत्व को स्पष्ट बता दिया था कि सिद्धू अस्थिर मस्तिष्क का व्यक्ति है, उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए, वह पंजाब के लिए अनुकूल नहीं है लेकिन मेरी बात नहीं मानी गई। कैप्टन प्रश्न कर रहे हैं कि मेरे पास चारा क्या है? उनकी यह शिकायत भी वाजिब है कि मुख्यमंत्री मैं हूं और मुझे बिना सूचना के विधायक दल की बैठक बुला ली गई।
कैप्टन ऐसे नेता हैं, जिन्होंने 2017 में अपनी बदौलत कांग्रेस को जीत दिलाई थी। यह बात सही है कि कैप्टन को भी संगठन के रूप में कांग्रेस का एक मजबूत ढांचा पंजाब में मिला, लेकिन वह ढांचा भी एकजुट होकर कैप्टन के नेतृत्व में ही लड़ने को तैयार हुआ। सोनिया गांधी, प्रियंका वाड्रा या राहुल गांधी पंजाब में कांग्रेस को कितना वोट दिला सकते हैं; यह बताने की आवश्यकता नहीं है। अगर उम्र ही तकाजा हो और नई पीढ़ी को जिम्मेवारी देनी हो तो फिर उसका तरीका यह नहीं हो सकता जैसा पंजाब में किया गया। कैप्टन जैसे नेता को विश्वास में लेकर सही तरीके से रास्ता आसानी से निकल सकता था। कैप्टन के अनुसार उन्होंने स्वयं सोनिया गांधी को कहा कि मैं चुनाव में भूमिका निभाकर अपने आप हट जाऊंगा। दुर्भाग्य देखिए कि सोनिया, राहुल, प्रियंका तथा उनके समर्थक, सलाहकार और रणनीतिकार अभी भी पंजाब को संभालने की कोशिश करते नहीं दिखते। कांग्रेस भूल रही है कि उसकी दुर्दशा का एक कारण केंद्रीय नेतृत्व द्वारा स्थानीय नेताओं का अपमान या उनकी अनदेखी रही है। चाहे आंध्र में टी अंजैया का मामला हो या कर्नाटक में वीरेंद्र पाटिल।
पुराने लोग जानते हैं कि राजीव गांधी के जमाने में कैसे अंजैया का अपमान हुआ और यह तेलुगू स्वाभिमान का प्रतीक बना। उसी से तेलुगू देशम पार्टी खड़ी हुई। कर्नाटक में कांग्रेस किस तरह पराजित हुई इतिहास के अध्याय में वर्णित है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में गलत नेताओं को प्रश्रय और अच्छे नेताओं को अपमानित करने, हाशिए में धकेलने का परिणाम यह है कि इन दोनों जगह कांग्रेस का अस्तित्व समाप्तप्राय है। शायद पंजाब में इतनी बुरी स्थिति अभी न हो। किंतु कैप्टन के अंदर नवजोत सिंह सिद्धू के साथ-साथ केंद्रीय नेतृत्व के विरुद्ध भी प्रतिशोध की अग्नि धधक रही है। ऐसा व्यक्ति अपना भला करे न करे हरसंभव नुकसान पहुंचा सकता है। विडंबना देखिए कि जिस सिद्धू पर राहुल गांधी ने दांव लगाया उसी ने मिट्टी पलीद कर दी। राजनीति में अपरिपक्व व्यक्ति को ज्यादा महत्त्व देने का परिणाम हमेशा ऐसे ही आता है। जब वह कैप्टन मंत्रिमंडल में थे तब भी उनकी कल्पना थी कि हर कुछ जैसा वह चाहते हैं वैसा ही हो और जब अध्यक्ष बने तो उसी तरह व्यवहार करना चाहते थे। चरणजीत सिंह चन्नी के नेतृत्व में सरकार बनी तो मंत्री से लेकर उच्चाधिकारी भी उनकी पसंद का होना चाहिए।
कोई भी परिपक्व व्यक्तिइस प्रकार की सोच से राजनीति में व्यवहार नहीं कर सकता। किंतु केंद्रीय नेतृत्व को इतनी समझ होनी चाहिए कि वह किस व्यक्ति को आगे बढ़ा रहा है। सिद्धू जो हैं वही कर रहे हैं और वही करेंगे। मूल बात यह है कि उन्हें इतना महत्त्व दिया किसने? किसने उन्हें अध्यक्ष बनाया? किसने उनको प्रोत्साहित किया ताकि वह कैप्टन के विरुद्ध हर सीमा का उल्लंघन करते जाएं? अब सिद्धू अध्यक्ष रहें या जाएं कांग्रेस की स्थिति पंजाब में क्या होगी और इन सबका असर दूसरे राज्यों में कैसा होगा? जिस तरह नेताओं का एक समूह पंजाब के निर्णय को सही ठहराने पर तुला है उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कांग्रेस सोच और व्यवहार के स्तर पर किस दिशा में जा रही है।
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