वैश्विकी : अफगानिस्तान के विभीषिका दशक
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पाकिस्तान के यौमे-आजादी 14 अगस्त को विभाजन और विभीषिका स्मृति दिवस मनाए जाने की घोषणा कर पड़ोसी देश पर एक जबर्दस्त असैन्य प्रहार किया है।
वैश्विकी : अफगानिस्तान के विभीषिका दशक |
कूटनीतिक और बौद्धिक हलकों में यह बहस शुरू हो गई है कि नरेन्द्र मोदी इतिहास के इस दुखद घटनाक्रम की याद करके क्या संदेश देना चाहते हैं? एक तरह से इसे पाकिस्तान के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान माना जा सकता है। नरेन्द्र मोदी ने अपने इस ऐलान के साथ ही यह आशा व्यक्त की है कि अतीत के इस घटनाक्रम से हमें शांति, सौहार्द और भाईचारे की सीख मिलती है। नरेन्द्र मोदी का यह संदेश अफगानिस्तान संकट के संदर्भ में भी समझा जा सकता है। तालिबानी आतंकवादियों की काबुल की ओर कूच ने सभ्यता और संस्कृति की इस प्राचीन भूमि पर अभूतपूर्व मानवीय त्रासदी पैदा कर दी है।
अफगान के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने शनिवार को राष्ट्र के नाम अपने संदेश में देशवासियों को भरोसा दिलाया कि सरकारी सेनाएं जान-माल की रक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार संघर्ष की स्थिति का शांतिपूर्ण समाधान चाहती है। राजनीतिक हलकों में यह कयास लगाया जा रहा था कि अशरफ गनी पद त्याग की घोषणा कर सकते हैं। राष्ट्रपति ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने सरकारी सेनाओं को फिर से एकजुट करके तालिबान की चुनौती का सामना करने का इरादा जाहिर किया। उन्होंने यह गुंजाइश बरकरार रखी है कि यदि तालिबानी आतंकवादी शांति और सुलह के रास्ते पर आए तो देश में नई राजनीतिक सत्ता कायम हो सकती है। तालिबान के लड़ाकूओं ने जिस तरह से राजधानी काबुल को चारों ओर से घेर लिया है, उससे लगता है कि कुछ ही दिनों के अंदर उनका पूरे देश में नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्रपति अशरफ गनी तालिबान को सत्ता में भागीदार बनाने के लिए मजबूर हो जाएंगे।
यह गौर करने की बात है कि दुनिया में भारत अकेला देश है जिसने तालिबान को महत्त्व और वैधानिकता प्रदान नहीं की। बृहस्पतिवार को कतर की राजधानी दोहा में अफगानिस्तान की तेजी से बिगड़ती हुई स्थिति को लेकर भारत, चीन और अमेरिका सहित 12 देशों के प्रतिनिधियों की बैठक हुई। इस बैठक में भारत ने अपना पुराना रुख जाहिर करते हुए कहा कि बंदूक के बल पर थोपी गई सरकार का हम समर्थन नहीं करेंगे। भारत ने इस बैठक में उम्मीद जाहिर की कि अफगानिस्तान में युद्धरत पक्ष शांति बहाली की प्रक्रिया को तेज करेंगे। इस बैठक में शामिल सभी देशों ने अफगान संकट का राजनीतिक समाधान निकालने पर जोर दिया, लेकिन अमेरिका, रूस और चीन ने तालिबान नेताओं के साथ सरकारी तौर पर विचार-विमर्श किया। इन देशों ने यह ऐलान कर रखा है कि तालिबान अब दो दशक पहले वाले तालिबानी नहीं रहे। इसका अर्थ है कि तालिबानी आतंकियों का हृदय परिवर्तन हो गया है और वे जिम्मेदार राजनीतिक नेताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं। इसलिए उन्हें सत्ता में साझीदार बनाया जा सकता है। प्रकारांतर से इन देशों ने यह भी मान लिया कि यदि तालिबानी आतंकवादी सत्ता पर पूरी तरह काबिज हो जाएं तो भी उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। केवल भारत ही ऐसा देश था जो इस झांसे में नहीं आया। भारत की यह सोच तालिबान नियंत्रण वाले क्षेत्रों में जारी खून-खराबे और महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की घटनाओं से सही साबित हुई है।
अफगानिस्तान के घटनाक्रम से मोदी सरकार द्वारा विगत वर्षों में लिये गए फैसलों की उपयोगिता भी साबित हुई है। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के जरिये उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का फैसला आज भी प्रासंगिक बना हुआ है। वास्तव में सीएए की जरूरत आज पहले से अधिक महसूस की जा रही है। जम्मू-कश्मीर से संविधान के अनुच्छेद 370 हटाने तथा दो संघ शासित क्षेत्रों का गठन कर उन्हें केंद्र के अधीन लाने का फैसला भी दूरदृष्टि वाला प्रमाणित हो रहा है। तालिबान आतकंवादी और पाकिस्तान के मुजाहिदीन यदि आने वाले दिनों में कश्मीर का रुख करते हैं तो उस परिस्थिति का सामना करने के लिए भारतीय सुरक्षा बल और प्रशासन पहले से अधिक सक्षम है।
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