अमृत उत्सव में ‘रणभेरी’ की स्मृति

Last Updated 15 Aug 2021 12:06:40 AM IST

देश जब आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है और स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जा रही है, यह अवसर उन पत्रकारों और साहित्यकारों को भी याद करने का है जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से लोगों में देशप्रेम का भाव भरा और स्वतंत्रता संघर्ष के लिए प्रेरित किया।


अमृत उत्सव में ‘रणभेरी’ की स्मृति

अपने सम्पादकीय, टिप्पणियों और लेखों से अंग्रेजों और उनकी नीतियों के खिलाफ आग उगलने वाले तथा देशवासियों में राष्ट्रभक्ति की भावना भरने वाले इन पत्रकारों, लेखकों का योगदान भी देश के लिए स्वतंत्रता संघर्ष में भागीदारी करने वाले क्रांतिकारियों या स्वतंत्रता सेनानियों से कम नहीं है। ऐसे पत्रकारों-लेखकों को भी सजा हुई, वे नजरबंद किए गए और पत्र-पत्रिकाओं को भी अंग्रेजों के दमन का शिकार होना पड़ा। यहां यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि ऐसे कई पत्रकार, साहित्यकार अपने लेखन के माध्यम से देश की आजादी में योगदान करने के साथ ही स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारी की भूमिका में भी रहे। सम्पादकाचार्य बाबूराव विष्णु पराड़कर ऐसे ही पत्रकार थे। उनके बारे में कहा जा सकता है कि उनकी एक हाथ में कलम और दूसरे हाथ में पिस्तौल होती थी।

पराड़कर जी ने स्वत: स्वीकार किया है कि 1906 में ‘हिंदी बंगवासी’ के लिए कलकत्ता जाने का मेरा मुख्य उद्देश्य पत्रकारिता न थी प्रत्युत क्रांतिकारी दल में सम्मिलित होकर देश सेवा का कार्य करना था। पराड़कर जी वहां चन्द्रनगर के क्रांतिकारी दल में शामिल थे। वहां उन्होंने ‘हितवार्ता और ‘भारतमित्र’ में भी संपादन का कार्य किया। कई बार ऐसा भी होता था कि एक ओर वे संपादकीय नीति के कारण क्रांतिकारियों के विरुद्ध भी लिखते दूसरी ओर क्रांतिकारियों को परामर्श और मदद कर रहे होते। उनकी क्रांतिकारी गतिविधियां बहुत दिनों तक छिपी न रह सकीं। 1916 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें चंद्रनगर के निकट महेश काल टापू, कलकत्ते के अलीपुर केंद्रीय कारागार, मेदनीपुर केंद्रीय कारागार, हजारीबाग केंद्रीय कारागार तथा बांकुड़ा जिले के एक गांव में नजरबंद रखा गया। उन्हें दलंदर हाउस भी ले जाया गया, जिसका नाम सुनकर लोग कांप उठते थे। रिहा होकर वाराणसी आने और ‘आज’ अखबार का दायित्व संभालने के बाद भी क्रांतिकारी गतिविधियों में उनकी सक्रियता बनी रही। पराड़कर जी वाराणसी में प्रसिद्ध क्रांतिकारी राजगुरु  के संरक्षक थे। राजगुरु  को क्रांतिदल की दीक्षा देने और पिस्तौल चलाना सिखाने वाले पराड़कर जी ही थे, लेकिन पराड़कर जी की क्रांतिकारी प्रवृत्ति तब भी दिखी जब अंग्रेजों ने समाचार पत्रों पर दमन की काररवाई की। समाचार पत्रों का प्रकाशन जब रोक दिया जाता, पराड़कर जी अपने सहयोगियों के साथ ‘रणभेरी’ जैसा क्रांतिकारी पत्र निकालने लगते। विशेषकर 1929-30, 1932-1934 और 1942 में ये पत्र तब निकाले गए जब राष्ट्रीय आंदोलनों के कारण अंग्रेज सरकार ने पत्र-पत्रिकाओं पर रोक लगा दी। पराड़कर जी की जीवनी लिखने वाले लक्ष्मीशंकर व्यास ‘पराड़कर जी और पत्रकारिता’ में लिखते हैं, ‘पराड़कर जी की लौह लेखनी और हृदय की आग ‘रणभेरी’ के रूप में देश के असंख्य लोगों के हृदयों में भारतीयों की आजादी के लिए अपना सर्वस्व दे देने की मांग करती थी। कितने ही अंक साइक्लोस्टाइल पर उन्हीं की हस्तलिपि में लिखे प्रकाशित हुए थे, जिनके लिए उस समय वर्षो का कठिन कारावास मिल सकता था किन्तु क्रांतिदल के प्रमुख कार्यकर्ता पराड़कर भला पुलिस की पकड़ में कैसे आते?’ ‘रणभेरी’ का विवरण देते हुए वह लिखते हैं कि ‘रणभेरी’ का आकार फुलस्केप साइज का रहता था। इसके दैनिक अंक दो पृष्ठ के हुआ करते थे और रविवार का साप्ताहिक संस्करण चार पृष्ठों का होता था। संपादक का नाम सीताराम था और प्रकाशक थे पुलिस सुपरिटेंडेंट (कोतवाली) बनारस। व्यास जी लिखते हैं कि ‘रणभेरी’ पत्रिका तथा प्रेस का पता लगाने में पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया किन्तु उसे सफलता न मिली। इसका संयोजन, संपादन और प्रकाशन गुप्त एवं क्रांतिकारी दलों के कार्यों के समान होता था।
‘रणभेरी’ पर मिली जानकारी से पता चलता है कि इस पत्र से बाबूराव विष्णु पराड़कर के अतिरिक्त रामचंद्र वर्मा, दुर्गाप्रसाद खत्री, दिनेशदत्त झा, उमाशंकर जी, कालिका प्रसाद जैसे लोग जुड़े थे और इसमें नियमित लेखन करते थे, लेकिन पराड़कर जी पर लेखन-संपादन के साथ ही इसकी व्यवस्था से जुड़ी जिम्मेदारियां भी होती थीं। इतना ही नहीं उनकी हस्तलिपि भी सुंदर थी, इसलिए इस पत्र की अधिकतर सामग्री वे ही लिखा करते थे, जिससे लोगों को पढ़ने में आसानी हो। ‘रणभेरी’ के अतिरिक्त इसी की तरह निकलने वाले ‘शंखनाद’ नामक साप्ताहिक पत्र में भी वे नियमित तौर पर लिखा करते थे। ‘रणभेरी’ के लिए ऐसे स्थानों का चयन किया जाता जो उपेक्षित रही हो। सतर्कता के तौर पर इसका स्थान बार-बार बदल दिया जाता था। यह सबकुछ क्रांतिकारियों की तरह ही होता है और इसके प्रकाशन के रहस्यमय, साहसपूर्ण और खतरनाक विवरणों को पढ़कर रोमांच होता है। इस कारण फिल्म निर्माता दिलीप सोनकर ने ‘रणभेरी’ पर दूरदशर्न के लिए धारावाहिक का निर्माण भी किया है।

आलोक पराड़कर


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