सरोकार : खेलों में फेमिनिन लुक अब भी इतना मायने रखता है

Last Updated 08 Aug 2021 01:18:56 AM IST

खेल और खेलों में औरतों के प्रति मर्दों का रवैया बदलना मुश्किल है। अभी सेक्सिस्ट कपड़ों का मसला ज्यों का त्यों है, तिस पर खिलाड़ियों के फेमिनिन लुक का मुद्दा भी आ धमका।


सरोकार : खेलों में फेमिनिन लुक अब भी इतना मायने रखता है

चीन के स्टेट मीडिया चैनल सीसीटीवी के एक एंकर ने ओलंपिक में गोल्ड जीतने वाली गॉन्ग लिजिआओ को ‘मैनली वुमेन’ कह दिया तो चारों तरफ से आलोचनाओं की बौछार होने लगी। उसने तो यहां तक पूछ लिया था कि क्या गॉन्ग ने ‘वुमेन्स लाइफ’ की कोई योजना बनाई है?
गॉन्ग 32 साल की हैं और उन्होंने शॉट पुट में गोल्ड मेडल जीता है। किसी फील्ड इवेंट में चीन के लिए गोल्ड जीतने वाली, और शॉट पुट में एशिया में पहली बार गोल्ड जीतने वाली वह पहली महिला हैं। गोल्ड जीतने के बाद जब गॉन्ग को स्टूडियो में दशर्कों से मुखातिब किया गया तो टीवी पत्रकार ने कहा कि वह हमेशा से ‘मैनली वुमेन’ का अहसास दिलाती रही हैं। गॉन्ग ने इस बात के जवाब में कहा, वह ‘भले ही बाहर से मैनली वुमेन दिखती हों लेकिन भीतर से वह खालिस महिला हैं।’ गॉन्ग के इस जवाब के बावजूद पत्रकार अपनी पहली की टिप्पणी पर अड़े रहे। एक ने पूछा, कि क्या वह ‘वुमेन्स लाइफ’ जीना चाहेंगी। गॉन्ग के पास इसका कोई जवाब नहीं था। उन्होंने मानो सरेंडर कर दिया. ‘अगर मैं ट्रेन नहीं करती, तो अपना वजन कम करूंगी, शादी करूंगी और बच्चे पैदा करूंगी। इस जिंदगी के बारे में भी सबको सोचना चाहिए।’ पत्रकार उनसे पूछते रहे कि क्या उनका कोई ब्वॉयफ्रेंड है, वह कैसे लड़कों को पसंद करती हैं, क्या किसी लड़के को पंजा लड़ाकर उसे चुनेंगी? इस इंटरव्यू की आलोचना होना लाजमी था।

चीन में महिलाओं के रिप्रेजेंटेशन, फेमिनिज्म और महिलाओं के सौन्दर्य और परंपरागत भूमिकाओं को लेकर बदलते नजरिये पर बात हुई। एक कमेंट किया गया कि किसी को गॉन्ग के फिगर और यूट्रेस की चिंता है, लेकिन वह खुद अपने सपने पूरे करने की राह पर चल रही हैं। इस पूरी खबर के दो एंगल हैं। एक महिला खिलाड़ी के लिए आखिर ‘महिला सी जिंदगी’ जीने का क्या मायने है? जाहिर है, शादी और बच्चे। हम महिला की जिंदगी में मदरहुड को इतना अहम बनाए रखते हैं। गॉन्ग के इंटरव्यू से 2016 में भारत में सानिया मिर्जा का इंटरव्यू याद आता है। वह इंटरव्यू सानिया मिर्जा की आत्मकथा को लेकर किया जा रहा था। इंटरव्यू राजदीप सरदेसाई ले रहे थे। उन्होंने सानिया से पूछ लिया कि आप कब सेटल होना चाहेंगी? सेटल होने से उनका अभिप्राय था कि वह बच्चे पैदा कब करेंगी। इस पर सानिया ने कहा कि हर लड़की को सेटल तभी क्यों माना जाता है जब वह बच्चे पैदा करे। इस पर राजदीप ने माफी मांगी और कहा कि हम किसी पुरु ष खिलाड़ी से ऐसे सवाल नहीं करते। चीन में गॉन्ग से सवाल के दूसरे पहलू भी हैं।
‘मैनली वुमेन’ की अवधारणा ही बहुत ओछी है। खेलों में महिलाओं का‘फेमिनिन’ लुक बरकरार रखने के लिए ही सालों से उन्हें रिविलिंग यूनिफॉर्म पहनाई जाती रही है। स्पोर्ट्स मीडिया भी उनके बाहरी रूप-रंग पर आसक्त रहता है। एथलेटिक क्षमता कहीं किनारे छिप जाती है, और उनके शरीर के कटाव-छंटाव पर ध्यान दिया जाता है। इससे आगे भी एक मुद्दा है। ‘मैनली वुमेन’ में ऐसी दूसरी कई महिलाएं भी आती हैं, जिनके पदक तक छीन लिए गए। द. अफ्रीका की कैस्टर सेमेन्या उन्हीं में से एक हैं। उनके लिए तो यह भी कहा गया कि उन्हें जेंडर टेस्ट को पास करना चाहिए। खैर, सोच में बदलाव जरूरी है, जिसकी आने वाले दिनों में उम्मीद भर की जा सकती है।

माशा


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