बतंगड़-बेतुक : मोदी हटाओ, टिकैत लाओ
झल्लन आते ही बोला, ‘ददाजू, ये बताइए कि ये चिड़यिाघर है, अजायबघर है, चंडूखाना है, मच्छी बाजार है या दंगलिया अखाड़ा है?’
बतंगड़-बेतुक : मोदी हटाओ, टिकैत लाओ |
हमने कहा, ‘काहे को भावनाओं में बह रहा है, ये किसके बारे में कह रहा है?’ झल्लन बोला, ‘अरे अपनी वही इमारत जिसे लोग लोकतंत्र का मंदिर बताते हैं और संसद नाम से बुलाते हैं।’ हमने कहा, ‘भई, संसद तो संसद है, लोकतंत्र वहीं से चलता है, देश के जनप्रतिनिधि वहीं बैठते हैं और वहीं से देश का भाग्य सोता-जगता है।’ झल्लन बोला, ‘पर ददाजू, ये कैसे जनप्रतिनिधि हैं जो चीखते हैं चिल्लाते हैं, न सुनते हैं न सुनने देते हैं, हुड़दंगियों की तरह हल्ला मचाते हैं, न कोई काम करते हैं न कोई काम होने देते हैं, शोर-शराबा करके घर को लौट जाते हैं मगर तमाशा देखिए, फिर भी ये माननीय सभासद कहलाते हैं। हम सोच रहे हैं संसद नाम की इस मंडी को बंद करा दें और इसकी जगह कोई चंडूखाना खुलवा दें।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, ये तेरी अतिवादी प्रतिक्रिया है और ऐसी प्रतिक्रिया ने कभी किसी का भला नहीं किया है। कभी-कभी अपनी बात शोर-शराबा करके भी कही जाती है और सरकार नहीं सुनती तो चीख-चिल्लाकर सरकार के कानों तक पहुंचायी जाती है।’ झल्लन बोला, ‘देखिए ददाजू, यहां हम आपकी बात का समर्थन नहीं कर सकते और इन दिनों संसद में जो हो रहा है उसे सही नहीं कह सकते। हमें तो लगता है कि राजनीति निहायत ही उजड्ड लोगों के हाथ पड़ गयी है और संसद भी उसी की बलि चढ़ गयी है। अरे, कोई नीति-नियम-मर्यादा भी होते हैं जिनका पालन सबको करना चाहिए, न कि जिद पर अड़कर संसद को ही ठप कर देना चाहिए। अब तो हालत ये है कि एक पक्ष सरकार चलाएगा तो दूसरा पक्ष हल्ला मचाएगा, सरकार अपनी बात कहेगी तो विपक्ष उसे अनसुनी कर सिर्फ हाय-तौबा करेगा, हर तरह के आरोप लगाएगा पर किसी की जुबान पर सच नहीं आएगा। बद्तमीजी, बेहूदगी, उजड्डता, अक्खड़ता की सारी हदें पार होंगी और जो मर्यादाएं दिखनी चाहिए वे सब तार-तार होंगी।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, यह संसदीय लोकतंत्र है, यहां आपसी गाली-गलौज चलती रहती है पर संसद अपना काम करती रहती है।’
झल्लन बोला, ‘लेकिन ददाजू, जनता का भी तो अधिकार है कि वह जाने कि संसद में क्या चल रहा है, कौन किस मुद्दे पर अपनी बात कैसे रख रहा है। लेकिन ये लोग जो जनता के प्रतिनिधि कहलाते हैं, जनता के सुनने के अधिकार का हनन करते हैं, जनता की भावनाओं का दमन करते हैं और अपने दुष्कर्म पर न चिंतन करते हैं न मनन करते हैं।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, यह सब हमारे लोकतंत्र की नियति है जिसे कोई नहीं बदल सकता, संसद को चीख-पुकार का अखाड़ा बनाए बिना किसी का काम नहीं चल सकता। यह संसद अब तेरी बात नहीं सुनेगी, जैसी है वैसी ही चलती रहेगी, जनता को सिर्फ रोना है वह रोती रहेगी।’ झल्लन बोला, ‘सच कह रहे हैं ददाजू, संसद भवन के अंदर चल रही संसद अब हमें फालतू लग रही है, संसद भवन के बाहर जो संसद चल रही है उसी से कुछ उम्मीद जग रही है।’ हमने कहा, ‘तू बात को कहां ले जा रहा है, किस संसद की बात उठा रहा है?’ वह बोला, ‘वही गरीब-गुरबा किसानों की सुख-सुविधा संपन्न संसद जो जंतर-मंतर पर चल रही है और जो इस समय देश का भविष्य निर्धारित कर रही है।’
हम हंसना चाहते थे पर हंस नहीं पाये, पर झल्लन की बात का जवाब भी नहीं दे पाये। हमने कहा, ‘हम तेरी जंतर-मंतर वाली संसद से तेरी तरह कोई उम्मीद नहीं लगा सकते हैं बस सिर्फ तरस खा सकते हैं।’ झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, तरस मत खाइए और देश के भविष्य के लिए सीधे मुद्दे पर आइए। सरकार हमारे किसान भाइयों की संसद को कम आंक रही है और उनकी मांग पूरी किये बिना इधर-उधर बगलें झांक रही है। हम चाहते हैं कि हमारे किसान भाई केवल कृषि कानूनों को ही रद्द नहीं कराएं बल्कि कृषि कानून बनाने वाली सरकार को ही रद्द करने की मांग उठाएं। नहीं तो संसद भवन पर सीधा कब्जा करें और वहां चल रही संसद को निकाल बाहर करें। मोदी सरकार को तुरंत हटाएं, किसानों की सरकार बनाएं और प्रधानमंत्री पद पर किसान शिरोमणि राकेश टिकैत को बिठाएं फिर चुन-चुनकर पंजाब-हरियाणा और उत्तर प्रदेश के किसान नेताओं को ही मंत्री बनाएं। इस तरह देश की संसद चलती रहेगी और देश को आम चुनाव जैसी फालतू चीज की जरूरत भी नहीं रहेगी।’ हमने कहा, ‘क्या शेखिचल्लियों जैसी बात कर रहा है झल्लन, अगर तेरा सपना पूरा हो जाएगा तो क्या इससे देश का भविष्य सुधर जाएगा?’ झल्लन बोला, ‘देश को छोड़ो ददाजू, देश का जो होना होगा सो हो जाएगा मगर हमारे किसान भाइयों का सपना तो पूरा हो जाएगा। जैसे ही हमारे टिकैत भाई प्रधानमंत्री बन जाएंगे तो न कोई किसान भूखा रहेगा, न तंग रहेगा, न आत्महत्या करेगा। फसल के दाम उसे मिले न मिलें पर अपने किसान प्रधानमंत्री के अद्भुत-अनूठे वचन-भाषणों को सुन-सुनकर पेट भरता रहेगा, खुशी से झूमता रहेगा और आकाश चूमता रहेगा।’
हमने झल्लन की ओर निहारा, उसे तांका पर मुंह से कुछ नहीं उचारा।
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