सरोकार : कोविड : गर्भवती महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य दांव पर

Last Updated 03 Jul 2021 11:44:41 PM IST

इंग्लैंड की हजारों गर्भवती महिलाओं को मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं का निदान नहीं मिल पा रहा।


कोविड, गर्भवती महिलाओं का मानसिक स्वास्थ्य दांव पर

वजह कोविड-19 जैसी महामारी है। रॉयल कॉलेज ऑफ साइकाइट्रिस्ट्स ने इस सिलसिले में एक विश्लेषण किया है। इसमें कहा गया है कि 2020-21 में 47,000 औरतों को प्रसव के दौरान एन्जाइटी और डिप्रेशन जैसी समस्याओं के लिए मेंटल हेल्थ सेवाओं की जरूरत थी, लेकिन सिर्फ  31 हजार महिलाओं को इस बारे में मदद मिली।
गर्भावस्था के समय हर पांच में से एक महिला को डिप्रेशन, एन्जाइटी और दूसरी मनोवैज्ञानिक समस्याओं का शिकार होती है। विश्लेषण में यह भी पाया कि सिर्फ  महामारी ही वजह नहीं है, जिसके चलते हजारों महिलाओं की मेंटल हेल्थ को दरकिनार किया जाता है। गर्भवती महिलाओं को उचित मनोवैज्ञानिक और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की सुविधा नहीं मिल पाती। महामारी से पहले भी गर्भवती महिलाएं मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से जूझ रही थीं। 2019-20 में 30 हजार से ज्यादा महिलाओं ने मेंटल हेल्थ सेवाओं का लाभ उठाया था। इंग्लैंड के सभी स्थानीय क्षेत्रों में कम से कम 7.1 फीसद गर्भवती महिलाओं और नई माताओं को मेंटल हेल्थ सेवाओं की जरूरत पड़ती है, लेकिन वहां के उत्तर मध्य लंदन में स्थितियां बदतर हैं। 1500 गर्भवती महिलाओं या नई माताओं में से सिर्फ 150 को यह सुविधा मिल पाती है। कोविड ने इसे और दुरूह बनाया है। हुआ यह है कि कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान सभी मानसिक तनाव में हैं, लेकिन स्वास्थ्य संरचनाएं महामारी पर ही ज्यादा काम कर रही हैं। मानसिक स्वास्थ्य पर ज्यादातर लोगों का ध्यान नहीं है जबकि उस पर इस समय ज्यादा ध्यान दिए जाने की जरूरत है। कोविड के चलते महिलाएं  अलग-अलग किस्म की भूमिकाओं के बीच संतुलन बैठा रही हैं। बच्चों, बुजुगरे की देखभाल कर रही हैं। दफ्तर संभाल रही हैं। बच्चों की पढ़ाई का ध्यान रख रही हैं। ऐसे में उनका मानसिक स्वास्थ्य बुरी तरह प्रभावित हुआ है। तिस पर वे फिर गर्भवती हो जाती हैं, तो उनके ट्रॉमा का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।

विश्व स्वास्थ्य संगठन भी इस बारे में चिंतित है। संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस का कहना है कि जिन देशों में महामारी फैलने से स्वास्थ्य प्रणालियों पर बोझ बढ़ा है वहां महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचना एक चुनौती है। इसके मद्देनजर संगठन ने महिलाओं के लिए स्वास्थ्य केंद्रों और जरूरी सेवाओं को बरकरार रखने के लिए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। मनोचिकित्सक चेतावनी दे चुके हैं कि कोविड के दौरान पैदा हुई मुश्किलों की वजह से लोगों में मानसिक तकलीफों की ‘सुनामी’ आने वाली है। रॉयल कॉलेज ऑफ साइकाइट्रिस्ट्स के ही एक सर्वेक्षण के जरिए पता लगा था कि अस्पतालों में मानसिक सेहत से जुड़े आपातकालीन मामलों की संख्या बढ़ी है, और नियमित चेकअप के लिए आने वाले लोगों की संख्या कम हुई है।
मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाली चैरिटी संस्था ‘रीथिंक मेंटल इलनेस’ का कहना है कि अभी दुनिया के सामने जो चिंताएं उभर कर आ रही हैं, वे इस बात का सुबूत हैं कि लोग पहले से ही मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं। एक हजार लोगों के बीच हुए सर्वेक्षण में बहुत से लोगों ने कहा कि महामारी और लॉकडाउन के बाद से उनकी मानसिक सेहत बुरी तरह प्रभावित हुई है। लॉकडाउन के कारण उन्हें वे ज्यादातर चीजें बंद करनी पड़ीं, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद थीं।

माशा


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