वैश्विकी : भारत-तालिबान संवाद
अफानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी और उनके प्रतिद्वंद्वी एवं सहयोगी अब्दुल्ला अब्दुल्ला ने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ वाशिंगटन में शुक्रवार को ‘विदाई’ मुलाकात की। अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी अगले कुछ महीनों में पूरी होने वाली है।
वैश्विकी : भारत-तालिबान संवाद |
इसके पहले अफगान नेताओं ने बाइडेन प्रशासन के साथ देश की मौजूदा हालात और भविष्य के संभावित घटनाक्रम पर विचार-विमर्श किया। अफगानिस्तान में अमेरिका के सैनिक हस्तक्षेप और बीस साल तक वहां अमेरिकी सेनाओं की मौजूदगी के बाद किसको क्या हासिल हुआ, इस पर बहस जारी है, लेकिन इतना निश्चित है कि अफगानिस्तान में पश्चिमी देशों की तर्ज पर लोकतांत्रिक प्रणाली कायम करने और वहां शांति स्थायित्व कायम करने के लक्ष्य में अमेरिका असफल रहा। बीस साल बाद भी काबुल की केंद्रीय सत्ता इस स्थिति में नहीं है कि वह पूरे देश पर हुक्मरानी कायम कर सके तथा लोकतांत्रिक शासन प्रणाली के जरिये शासन-प्रशासन चला सके।
तालिबान के विरुद्ध अधिकतम शक्ति प्रयोग करने के बावजूद अमेरिका इस उग्रवादी और मजहबी कट्टरपंथी रक्तबीज का उन्मूलन नहीं कर सका। आज हालात यह है कि देश के करीब एक चौथाई भूभाग पर तालिबान का कब्जा है और यह आशंका बरकरार है कि वे काबुल पर काबिज हो सकते हैं। अफगानिस्तान से जुड़े विभिन्न पक्ष और पड़ोस के देशों में यह आशा जरूर है कि इस दो दशक के घटनाक्रम से तालिबान ने भी कुछ सीखा होगा। देश में जो विकास गतिविधियां हुई हैं और सकारात्मक बदलाव आए हैं, उसे सुरक्षित रखने में तालिबान का भी हित है।
तालिबान नेतृत्व की ओर से भी कुछ ऐसे संकेत मिले हैं कि वह अपने रवैये में लचीलापन ला रहा है। संभवत: यही कारण है कि भारत में तालिबान के नेताओं के साथ परोक्ष रूप से संपर्क संवाद कायम करने का सिलसिला शुरू किया है। ऐसी चर्चा है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी इस संपर्क-संवाद से जुड़े रहे हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने तालिबान के साथ बातचीत की। स्पष्ट रूप से पुष्टि नहीं की है। हालांकि उन्होंने कहा है कि अफगानिस्तान से जुड़े सभी पक्षों के साथ भारत संपर्क में है।
खाड़ी का देश कतर भारत और तालिबान के बीच संपर्क का माध्यम बन रहा है। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल में कतर के विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार से अफगानिस्तान के घटनामक्रम पर विचार-विमर्श किया है। कतर के सूत्रों के अनुसार भारत और तालिबान के बीच संपर्क और बातचीत हुई है।
अफगानिस्तान के बारे में भारत की मुख्य चिंता यह है कि वहां तालिबान का वर्चस्व कायम न हो। विशेषकर ऐसा तालिबान नेतृत्व जो पाकिस्तान के इशारे पर चलता हो। विदेश मंत्रालय ने आशा व्यक्त की है कि अफगान लोग खुद इस बात का लेखा-जोखा लेंगे कि किस देश ने उन्हें क्या दिया।
भारत ने अफगानिस्तान को स्कूल, अस्पताल, सड़क सहित आधारभूत ढांचा और स्थानीय शासन के सामुदायिक केंद्र प्रदान किए हैं। दूसरी ओर पूरी दुनिया जानती है कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान को क्या दिया? भारत को काबुल में तालिबान की सत्ता कायम होने पर जम्मू-कश्मीर को लेकर भी चिंता है। इस प्रदेश में दो वर्ष के दौरान बहुत सकारात्मक बदलाव आए हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कश्मीरी नेताओं के साथ बातचीत की पहल पर भावी रोडमैप पर भी चर्चा की है। भारत कभी यह नहीं चाहेगा कि उसे पाकिस्तान या अफगानिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद के खतरों का सामना करना पड़े।
चीन को भी अपने शिक्यांग प्रांत में अफगानिस्तान की ओर से सीमा पार आतंकवाद का खतरा है। हालांकि पाकिस्तान उसके प्रभाव में है और इस्लामाबाद तालिबान को चीन के साथ छेड़छाड़ करने की अनुमति नहीं देगा। कुछ ही दिन पहले शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक संपन्न हुई है। इस बैठक में आतंकवाद विरोधी नीति पर चर्चा हुई। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले दिनों शंघाई सहयोग संगठन अफगानिस्तान में आतंकवाद और उग्रवाद के विरुद्ध कारगर कदम उठाएगा तथा वहां शांति तथा स्थायित्व की स्थापना का जिम्मा लेगा।
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