बतंगड़ बेतुक : या खुदा पिटाई तो धर्मनिरपेक्ष निकली

Last Updated 27 Jun 2021 01:28:11 AM IST

झल्लन बोला, ‘ददाजू, जो हुआ सो हुआ, पर जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ।’ हमने कहा, ‘अब ऐसा क्या हो गया जो तेरे दिमाग ने फिर से अच्छा-बुरा कर दिया, किसी ने कुछ कह-सुन दिया या तुझे भौतिक तौर पर धुन दिया?’


बतंगड़ बेतुक : या खुदा पिटाई तो धर्मनिरपेक्ष निकली

झल्लन बोला, ‘आप भी ना ददाजू, सिर्फ हमारी धुनाई की ही सोचते हो, हमें लेकर सिर्फ हवा में ही अपनी बात रोपते हो। हम इस वक्त अपनी पर नहीं आ रहे हैं, हम तो जो हमारे पहलवान इदरीश उम्मेद पर बीती है वह बता रहे हैं, बताइए, उसने ऐसा क्या नया जुर्म कर दिया जो पुलिस ने उसे फालतू में धर लिया।’ हमने कहा, ‘तो तू उम्मेद पहलवान की बात कर रहा है, उसे तो उसके अपराध के लिए गिरफ्तार किया जा रहा है पर तू यूं ही इमोशनल हुआ जा रहा है।’ झल्लन बोला, ‘एक पिटे हुए बुजुर्ग की तरफदारी करना कौन सा गुनाह है, बताइए ददाजू, इसके बारे में आपकी क्या सलाह है?’ हमने कहा, ‘तेरा यह पहलवान एक मुस्लिम बुजुर्ग की असभ्य पिटाई के बारे में असलियत छिपाकर पूरी दुनिया को जो भी बता रहा था वह गलत बता रहा था, इस पिटाई पर साम्प्रदायिकता का मुलम्मा चढ़ा रहा था, मुसलमानों को भड़का रहा था, साम्प्रदायिक नफरत को बढ़ाकर आपसी सौहार्द से बनी हमारे लोकतंत्र की बुनियाद को हिला रहा था।’

झल्लन बोला, ‘काहे छोटी-छोटी बातों में लोकतंत्र को घसीट लाते हो, काहे बेचारे की बुनियाद हिलाते हो। हमारा पहलवान तो अपनी राजनीति चमका रहा था, अपनी सुन्नत पर खतरा महसूस कर अपनी कौम को जगा रहा था, हमारे कटदाढ़ी बुजुर्ग समद ने अपनी पिटाई के बारे में जो उसे बताया वही वह लाइव वीडियो के जरिए दुनिया को बता रहा था, और इन सबके जरिए अपनी समाजवादी पार्टी के लिए आदर्श और अद्भुत समाजवाद ला रहा था।’ हमने कहा, ‘धर्मनिरपेक्षता की भी हद होती है झल्लन, जो तू गलत को सही बताए जा रहा है और पहलवान के पक्ष में परचम उठाए जा रहा है। तेरा यह समाजवादी पहलवान वह नहीं कह रहा था जो बुजुर्ग कह रहा था, यह पहलवान वह कह रहा था जो वह बुजुर्ग से कहलवा रहा था। बुजुर्ग ने अपने पहले बयान में पूरे कांड को अपना अपहरण बताया, हमलावरों को अज्ञात बताया, अपनी दाढ़ी काटे जाने को उसने एक मुसलमान के प्रति हिंदुओं का अत्याचार दिखाया और अगले बयान में उसने अपहरणकर्ताओं पर पिटाई के साथ-साथ जय श्रीराम का नारा लगवाने का आरोप भी लगाया। उसने जितनी बार भी बयान दिये, हर बयान में कुछ-न-कुछ अंतर जरूर आया। कुल मिलाकर यह फैसला कर लिया गया कि हिंदू उन्मादियों ने एक सीधे-सरल मुस्लिम बुजुर्ग के साथ वहशियाना बर्ताव किया और इस बुजुर्ग को न्याय दिलाने का बीड़ा हमारे समाजवादी पहलवान सहित तत्काल कुछ मुस्लिम, कुछ सेक्युलर और कुछ समाजवादी बुद्धिजीवियों ने उठा लिया।’
झल्लन बोला, ‘इसमें नया क्या हुआ ददाजू, यह तो अब एक चलन है जिस पर उंगली उठाना बेकार है, इस चलन के चलते आपका हर आरोप निराधार है।’ हमने कहा, ‘निराधार नहीं, हमारी हर बात का आधार है और हमारी समझ से यह नफरत फैलाने का घृणित व्यापार है।’ झल्लन बोला, ‘नहीं ददाजू, सोचिए, हमारे पहलवान भाई ने कहा कि उसने यह प्रपंच राजनीतिक लाभ के लिए रचा था क्योंकि अपनी राजनीति चमकाने के लिए बुजुर्ग की पिटाई का एक बड़ा मौका उसके हाथ लगा था। अब वह बेचारा फिरकापरस्ती, साम्प्रदायिकता, नफरत जैसी छोटी-मोटी बातों पर रोक लगाने पर विचार करे या कि अपनी समाजवादी राजनीति के लिए इनका जमकर इस्तेमाल करे?’ हमने कहा, ‘लेकिन पड़ताल में क्या पाया गया? बुजुर्ग के बदलते बयानों का झूठ सामने आया, मुसलमानों को भड़काने का तेरे पहलवान का षड़यंत्र सामने आया और इस घटना को हिंदू-मुस्लिम रंग देने वाले कथित बुद्धिजीवियों का कुत्सित साम्प्रदायिक अभियान नजर आया। और अब तो यह खुलकर सामने आ गया है कि बुजुर्ग की पिटाई साम्प्रदायिक नहीं बल्कि एक धर्मनिरपेक्ष पिटाई थी, जिसमें हिंदू-मुसलमान दोनों सम्प्रदायों ने सौहार्दपूर्ण सहयोग किया था मगर स्वयं बेचारे धर्मनिरपेक्षों ने इस धर्मनिरपेक्ष पिटाई को साम्प्रदायिक कर दिया था, इसमें मजहबी जहर भर दिया था।’
झल्लन बोला, ‘यहीं तो सारा खेल बिगड़ गया, एक बना-बनाया सुविचारित प्लान उजड़ गया। हमारे पहलवान जी पिटाई को धार्मिक बनाकर राजनीति करना चाहते थे सो नहीं कर पाये और पहलवान जी के हमदर्द कथित बुद्धिविरोधजीवी अपनी वाह-वाह से अपनी झोली नहीं भर पाये।’ हमने कहा, ‘इस तरह की साम्प्रदायिक नफरत फैलाकर ये लोग पहले से ही जहरीले वातावरण को और अधिक जहरीला कर देंगे और जो लोग अभी भी थोड़ा सद्भाव और सौहाद्र्र रखते हैं उनके दिमाग में भी जहर भर देंगे।’ झल्लन बोला, ‘काहे चिंता करते हो ददाजू, इन्हें जो करना है वो तो ये करते-कराते रहेंगे, कोई भी पिटाई कितनी भी धर्मनिरपेक्ष क्यों न हो उसे धर्मसापेक्ष बनाते रहेंगे। आखिर ये लोकतंत्र इसी तरह की राजनीति के लिए है सो ये लोग लोकतंत्र की खातिर इसी तरह की राजनीति करते रहेंगे और हम सेक्युलर लोग इनका साथ देते रहेंगे। बस, आगे यह ध्यान रखेंगे कि जिस पिटाई पर उन्मादी अभियान चलाया जाये वह ससुरी कहीं धर्मनिरपेक्ष न निकल आये, हमारी किरकिरी न कर जाये।’

विभांशु दिव्याल


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