वैश्विकी : अमेरिका में जयशंकर

Last Updated 30 May 2021 02:25:03 AM IST

विदेश मंत्री एस. जयशंकर बाइडेन प्रशासन के बागडोर संभालने के बाद पहली बार अमेरिका के दौरे पर गए।


वैश्विकी, अमेरिका में जयशंकर

उन्होंने राजधानी वाशिंगटन डीसी में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलविन के साथ द्विपक्षीय संबंधों के विभिन्न पहलुओं पर व्यापक विचार-विमर्श किया। इन बैठकों से एक बात स्पष्ट थी कि भारत और अमेरिका की प्राथमिकताएं अलग-अलग हैं। जयशंकर का मुख्य जोर भारत के वैक्सीन उत्पादन को बढ़ावा देना तथा अमेरिका से अधिक-से-अधिक मात्रा में वैक्सीन हासिल करना था। वहीं अमेरिकी प्रशासन का जोर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में उभर रहे क्वाड के लिए भारत का अधिक-से-अधिक सहयोग हासिल करना था। जहां तक वैक्सीन का सवाल है, अमेरिका की ओर से भारत को बार-बार भरोसा दिलाया गया, लेकिन यह स्पष्ट नहीं है कि जमीनी स्तर पर अमेरिका किस सीमा तक भारत की मदद करेगा। अमेरिका महामारी से उबरने की ओर है। अगले कुछ महीनों में वहां की पूरी आबादी का टीकाकरण हो जाएगा जिसके बाद वहां सामान्य आर्थिक गतिविधियां जोर पकड़ लेंगी।

इस बात की संभावना कम है कि जब तक अमेरिका में टीकाकरण का काम पूरा नहीं होता वह किसी अन्य देश को उदारतापूर्वक वैक्सीन देगा। भारत में बनने वाली वैक्सीन के लिए कच्चे माल की आपूर्ति भी आशानुरूप हो पाएगी; इसमें संदेह है। दूसरी ओर, विश्व व्यापार संगठन में वैक्सीन संबंधी पेटेंट नियमों में ढिलाई देने के बारे में भी पश्चिमी देश गंभीर और उत्साहित नहीं हैं। इन परिस्थितियों में भारत के लिए अपनी पूरी आबादी का टीकाकरण कराना एक बड़ी चुनौती साबित होगा।

जयशंकर के अमेरिका प्रवास के दौरान हिंद-प्रशांत क्षेत्र में क्वाड की भूमिका को लेकर भी विचार-विमर्श हुआ। स्वंय जयशंकर ने क्वाड संबंधी विचार-विमर्श को केंद्रीय महत्त्व नहीं दिया। उन्होंने भारत का पुराना पक्ष दोहराया कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में समान चुनौती और समान विचार वाले देश आपस में सहयोग कर रहे हैं। इस सहयोग को शीतयुद्ध के नजरिये से नहीं देखा जाना चाहिए। क्वाड को सैनिक गठबंधन के रूप में पेश किए जाने को भारत सिरे से खारिज करता है। रक्षा विशेषज्ञ क्वाड के बारे में सदस्य देशों के बयानों को बेईमानी की संज्ञा देते रहे हैं। उनके अनुसार हकीकत यह है कि क्वाड चीन के सैनिक और राजनीतिक दबदबे को काबू रखने की मोर्चाबंदी है।

जयशंकर की अमेरिका यात्रा उस समय हुई जब अमेरिका की प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ मोदी सरकार की ठनी हुई है। ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी आईटी कंपनियों की नकेल कसने के लिए मोदी सरकार ने दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हीलाहवाली और आनाकानी करने के बावजूद इन कंपनियों को सरकार के दिशा-निर्देशों का पालन करना ही होगा। गौर करने वाली बात यह है कि जो बाइडेन को व्हाइट हाउस पहुंचाने में इन कंपनियों की बड़ी भूमिका रही है। इन कंपनियों ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से डोनाल्ड ट्रंपेके चुनाव अभियान को कमजोर करने की कोशिश की थी। स्वंय ट्रंप का ट्विटर एकाऊंट बंद कर दिया गया था। यह हकीकत है कि सिलिकॉन वैली की इन आईटी कंपनियों की अपनी ‘लेफ्ट लिबरल’ विचारधारा है। इस विचारधारा को वे अमेरिका ही नहीं बल्कि अन्य देशों में भी थोपने की कोशिश करते हैं। भाजपा का आरोप है कि ये कंपनियां मोदी सरकार के विरुद्ध परोक्ष रूप से जनमत तैयार करने में लगी हैं। वह इस बात को लेकर आशंकित है कि उत्तर प्रदेश विस चुनाव और उसके बाद 2024 के लोक सभा चुनाव में ये कंपनियां पक्षपात कर सकती हैं। अमेरिका में जैसा ट्रंप के साथ हुआ वैसा ही मोदी और योगी आदित्यनाथ के साथ हो सकता है।

और कोई समय होता तो बाइडेन प्रशासन जयशंकर के सामने आईटी कंपनियों पर अंकुश लगाने के प्रयासों पर ऐतराज कर सकता था, लेकिन भू-रणनीतिक स्थिति ऐसी है कि बाइडेन प्रशासन मोदी सरकार को किसी तरह नाराज करने की जोखिम नहीं उठा सकता। जयशंकर की यह यात्रा बाइडेन प्रशासन के साथ आपसी समझदारी बढ़ाने और द्विपक्षीय रणनीतिक संबंधों को निश्चित दिशा देने में सहायक सिद्ध हुई है, लेकिन रूस से एस-400 मिसाइल विरोधी प्रणाली हासिल करने और ईरान में चाबहार बंदरगाह के विकास में भारत की भूमिका को लेकर अमेरिका भविष्य में क्या रवैया अपनाएगा, यह अभी स्पष्ट नहीं है।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment