मीडिया : ट्विटर की राजनीति

Last Updated 30 May 2021 02:28:59 AM IST

इन दिनों मुख्यधारा के मीडिया में ‘ट्विटर की दादागीरी बरक्स ट्विटर की आजादी’ विषय पर एक बहस चल रही है। सरकार का कहना है कि सोशल मीडिया प्लेटफार्मो को भारत के कानूनों के तहत काम करना जरूरी है, लेकिन ट्विटर व उसके हिमायती कहते हैं कि यह ट्विटर की आजादी पर प्रहार है।


मीडिया : ट्विटर की राजनीति

कानून के अनुसार सभी सोशल मीडिया हाउसों को अपने कार्यालयों में अपने ही कर्मचारियों में से किसी एक को ‘शिकायत निवारण अधिकारी’ की तरह नियुक्त करना जरूरी है। नहीं करने पर उन्हें कानून का उल्लंघनकर्ता माना जाएगा और उन पर उसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई हो सकती है जैसी टीवी आदि  के लिए मुकर्रर है।  तीन महीने पहले बने इस कानून के अंतर्गत काम करने का आश्वासन गूगल, फेसबुक, व्हाट्सऐप व इंस्टाग्राम ने तो दे दिया लेकिन ट्विटर ने नहीं दिया। ‘ट्विटर’ एक माइक्रो मीडियम है जो दो सौ अस्सी अक्षरों में आपको ‘ट्वीट’ करने की सुविधा देता है। ऐसा ‘ट्वीट’ तभी ध्यान खींच सकता है, जब वह बेहद तिक्त व कटु हो और ‘नावक के तीर’ की तरह दूसरे को घायल करे। ट्विटर के अनुशासन में आकर हमारी राजनीति भी तिक्त और कटु और हेटयुक्त हो चली है। एक आदमी एक कंकड़ी या कीचड़ मारता है, मित्र आगे बढ़ाते हैं और ट्वीटकर्ता सोचता है कि वो वर्ग युद्ध में जीत गया। इस तरह ट्विटर ने ‘नागरिक राजनीति’ को ‘लंपट’ और ‘हेट’ की राजनीति में बदल दिया है।
बहुत से नेता जो जमीनी राजनीति नहीं करते या चुनाव के वक्त ही जमीनी राजनीति करते हैं, उनके लिए ट्विटर ही एकमात्र सहारा है। आलोचक उसी के जरिए सत्ता पर ‘वार’ करते हैं और सत्ता भी अपने आलोचकों पर वैसे ही ‘वार’ करती है।

इसके बाद तीखे व उत्तेजक ट्वीटों को मुख्यधारा का मीडिया यानी टीवी बड़ी खबर बनाकर पेश करता है, और इस तरह टीवी भी उसी ‘लंपट भाषा’ को सबकी भाषा बना देता है। यों गूगल फेसबुक, व्हाट्सएप और इंस्टाग्राम  जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मो का उपयेग करने वालों की संख्या ट्विटर से कई गुना अधिक है, लेकिन उसकी ‘अकड़’ उन सबसे अधिक है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में ‘गूगल’ का उपयोग करने वालों की कुल संख्या ‘चौबालीस करोड़’ है, जबकि ‘फेसबुक’ का उपयोग करने वालों की संख्या ‘इकतालीस करोड़’। ‘व्हाट्सएप’ का उपयेग करने वालों की संख्या ‘उनतालीस करोड़’ है और ‘इंस्टाग्राम’ का उपयेग करने वालों की संख्या ‘इक्कीस करोड़’ है, जबकि ‘ट्विटर’ का उपयेग करने वालों की संख्या कुल ‘एक करोड़ पिचहत्तर लाख’ है। फिर भी ट्विटर कानून को अपनी आजादी का हनन मानता है, जबकि उससे बहुत बड़े सोशल मीडिया हाउसेस तक कानून के तहत काम करने को तैयार हो गए हैं।
शायद इसीलिए ‘ट्विटर की दादागीरी बरक्स ट्विटर की आजादी’ पर बहस उठ खड़ी हुई है। ट्विटर के पक्षकार मानते हैं कि ट्विटर की आजादी खतरे में है। सरकार कहती है कि हम किसी की आजादी के खिलाफ नहीं सिर्फ ‘जबावदेही शिकायत निवारण व्यवस्था’ चाहते हैं। सरकार व समर्थकों का मानना है कि ट्विटर पर बहुत सा भारत विरोधी, भाजपा व भाजपा नेता विरोधी कंटेट रहता है, जो भारत भारत की छवि खराब करता और उसके खिलाफ वातावरण बनाता है। शिकायत करने पर उसके नियंता बेहद पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाते हैं जैसे कि वे ‘एंटी इंडिया कंटेट’ को तो बनाए रखते हैं लेकिन ‘प्रो कंटेट’ को बराबर की अहमियत नहीं देते। इस बहस के गरम होने का तुरंता कारण ट्विटर द्वारा भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा द्वारा लगाया गया वह ‘टूलकिट’ है, जिसे वे ‘कांग्रेस का बताते हैं जबकि कांग्रेस कहती है कि यह कांग्रेस को बदनाम करने का भाजपा का षडय़ंत्र है।  
इससे भाजपा की पोजीशन उपहासास्पद हो गई और यही इस विवाद का उत्स बना। भाजपा ने कहा है कि ट्विटर भारत के प्रति ‘पूर्वाग्रही’ है। उसके मालिक अपने को खुल्ले वामपंथी कहते हैं और इस तरह वे स्वयं भाजपा के प्रति पूर्वाग्रहयुक्त नीति बरतते हैं। इसीलिए भाजपा या उसके नेताओं या भारत के खिलाफ बहुत से आपत्तिजनक ट्वीट नहीं हटाए जाते। सरकार कहती है कि किसी माध्यम को काम करना है तो देश के कानून को तो मानना ही होगा। लेकिन बहुत से ‘ट्विटराती’ ट्विटर के साथ खड़े दिखते हैं और कुछ तो उसे ‘क्रांतिकारी’ माध्यम मानते हैं क्योंकि वह मौजूदा सत्ता के खिलाफ कंटेट को मुखर करता है, लेकिन ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि जो माध्यम करोड़ों-अरबों कमाता है, वह क्रांतिकारी होगा तो किस तरह का होगा?

सुधीश पचौरी


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