सरोकार : इथियोपिया में बलात्कार बना युद्ध का हथियार
इथियोपिया की खबरों से हमारा क्या लेना? अफ्रीका का एक मामूली सा देश। वहां क्या हो रहा है, इससे किसे फर्क पड़ता है, लेकिन पिछले छह महीने से इथियोपिया में जो हो रहा है, वह दिल दहलाने वाला है।
सरोकार : इथियोपिया में बलात्कार बना युद्ध का हथियार |
‘द गार्डियन’ अखबार के हवाले से खबर मिली है कि वहां महिलाओं और बच्चियों के साथ बड़ी संख्या में बलात्कार हो रहे हैं। आठ साल की बच्चियों से लेकर सत्तर साल की बूढ़ियों को भी नहीं बख्शा जा रहा। बलात्कार को युद्ध के हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
इथियोपिया युद्ध का मैदान ही बना हुआ है। वहां का टिग्रे शहर तबाह हो रहा है। पिछले साल नवम्बर में देश के प्रधानमंत्री आबी अहमद ने टिग्रे की ताकतवर क्षेत्रीय पार्टी टिग्रे पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट (टीपीएलएफ) को अपदस्थ करने के लिए सेना भेजी थी। इसके बाद टिग्रे में गृह युद्ध छिड़ गया। इससे पहले आबी अहमद ने कोरोना वायरस की दलील देकर जून में राष्ट्रीय चुनाव को टाल दिया था। इससे तनाव बढ़ गया। टीपीएलएफ ने केंद्र के इस कदम को यह कहते हुए अवैध बताया था कि आबी के पास अब बहुमत नहीं है। गृह युद्ध के हालात में सबसे बड़ा नुकसान देश के कमजोर तबके का ही हुआ। औरतें, समाज में सबसे कमजोर स्थिति में ही होती हैं। आरोप लगाए जा रहे हैं कि वहां सैन्यकर्मी ही टीपीएलएफ के लड़ाकों की खोज में नागरिकों पर अत्याचार कर रहे हैं। दुखद यह है कि प्रधानमंत्री आबी अहमद नोबल पुरस्कार विजेता हैं और महिलाओं को आगे बढ़ाने जैसे वादों के साथ देश की सत्ता में आए थे, लेकिन आखिरकार उन्हें सबसे ज्यादा उत्पीड़न झेलना पड़ रहा है।
वैसे संकट कोई भी हो, प्राकृतिक या फिर मानव जनित। उसका सबसे अधिक शिकार भी औरतें ही होती हैं। यूएनडीपी ने 140 देशों के अध्ययन में यह पाया है कि आपदाओं की स्थिति में औरतों की लाइफ एक्सपेक्टेंसी यानी जीवन संभाव्यता पुरु षों के मुकाबले बहुत कम होती है। उनकी मौत की आशंका भी पुरु षों की अपेक्षा 14 गुना अधिक होती है। वैसे सिर्फ युद्ध और संघर्ष में ही बलात्कार को उत्पीड़न और अपमानित करने का माध्यम नहीं बनाया जाता। रोजमर्रा के जीवन में भी यह आसानी से देखा जा सकता है। किस तरह ताकतवर समुदायों के पुरु ष कमजोर तबकों की महिलाओं का बलात्कार करते हैं। इसका मकसद उस समुदाय पर अपना प्रभुत्व कायम करना होता है, और यह समस्या सर्वव्यापी है। हमारे यहां दलित महिलाओं के साथ अगड़ी जातियों के पुरु ष बलात्कार करते हैं और सोचते हैं कि वे ‘उन्हें अपनी औकात दिखा रहे हैं।’ नॉर्मल मेलर जैसे अमेरिकी उपन्यासकार ने तो अपनी किताब ‘एन अमेरिकन ड्रीम’ में यहां तक लिखा है कि कई बार अमीर औरतों को यौन हिंसा का शिकार बनाया जाता है, और दलील दी जाती है कि वे जिस वर्ग से ताल्लुक रखती हैं, उनके खिलाफ संघर्ष में ऐसा करना जायज है।
औरतों की देह को जंग का मैदान कैसे बनाया जाता है, इसकी मिसाल हमें दिल्ली के विधानसभा चुनाव में मिल चुकी है। चुनावों से ऐन पहले सत्ताधारी दल के एक नेता ने चिल्ला कर कहा था-शाहीन बाग वाले कल आपकी बहू-बेटियों का बलात्कार करेंगे। तब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री आपको बचाने नहीं आएंगे यानी वह अपना राजनीतिक संलाप चला रहे थे। हां, असली युद्ध के मैदान में औरत करेंसी की तरह इस्तेमाल की जाती हैं। सैनिकों को मेहनत के बदले पुरस्कारस्वरूप दी जाती हैं। सेक्स स्लेव्स भी इसी की उदाहरण हैं।
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