मीडिया : टूलकिट की आभासी राजनीति

Last Updated 23 May 2021 12:51:27 AM IST

एक शाम भाजपा प्रवक्ता ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसने मोदी की छवि को नष्ट करने के लिए ट्विटर पर एक ‘टूलकिट’ डाला है, जिसमें ‘कोविड’ की जगह ‘मोविड’ कहने और कोरोना के ‘इंडियन स्टेन’ की जगह ‘मोदी स्टेन’ कहने को कहा गया है।


मीडिया : टूलकिट की आभासी राजनीति

यह भी कहा गया था कि ‘टूलकिट’ के आदेश को अपनाते हुए लोग ‘वैक्सीन बर्बाद करें’ व तब तक किसी को अस्पताल का बेड न दिलाएं जब तक हम न कहें और इस तरह मोदी सरकार को एकदम फेल सरकार साबित करें।
जवाब में कांग्रेस ने कहा कि यह कांग्रेस को बदनाम करने की भाजपा की साजिश है। फिर कांग्रेस के एक नेता ने भाजपा के चार नेताओं पर एफआईआर भी कर दी। फिर एक दिन ट्विटर वालों ने बयान दिया  कि यह भाजपा का बनाया एक ‘फर्जी मीडिया’ है। इस पर भाजपा ने ट्विटर की अपनी ‘जांच’  को लेकर सवाल उठाए और कहा कि जब तक सरकार की एजेंसी जांच न कर ले तब तक ट्विटर का ऐसा कहना कहां तक उचित है? फिर कहा कि ट्विटर तो वामपंथी है। वह तो ऐसा करेगा ही। जिन दिनों कोरोना की दूसरी लहर पहली से भी अधिक मारक हो रही हो, लाशें गंगा में तैरती नजर आती हों और मशानों व कब्रिस्तानों में मृतकों के लिए जगह न हो और तीसरी लहर का खतरा बताया जा रहा हो, ऐसे में ट्विटर का ऐसा ‘टूलकिट’ कोरोना महामारी का ‘मित्र’ जैसा नजर आता है और उसे बनाने वाले (जो भी हों) भारत की जनता के भी शत्रु नजर आते हैं। पहली बार हो रहा है कि संकट से साथ मिलकर निपटने की जगह कुछ लोग (चाहे जो हों) ‘टूलकिट’ के माध्यम से संकट गहराना चाहते हैं।

टीवी चैनलों में इस बात की तो फाइट है कि ‘टूलकिट’ किसका है, लेकिन इस पर नहीं है कि सत्ता विरोधी से अधिक यह ‘जनविरोधी’ टूलकिट है, जो सलाह देता है कि मरीजों को बेड न देना या वैक्सीन लगाना नहीं, उसे बर्बाद करना। ‘टूलकिट’ की राजनीति की परंपरा में यह दूसरा ‘टूलकिट है। इससे पहले भी एक टूलकिट आया था जो मोदी सरकार के खिलाफ किसान आंदोलन को तेज करने की नई-नई तरकीबेें सुझाता था लेकिन किसान आंदोलन न तेज हुआ, न निस्तेज। जस का तस चलता रहा। लोग उस ‘टूलकिट’ को भूल गए कि यह नया ‘टूलकिट’ आ गया। यह बताता है कि मीडिया और राजनीति के संबंध बदल रहे हैं। लोग अब टीवी के जरिए राजनीति करने की जगह ‘ट्विटर’ और ‘टूलकिट’ के जरिए राजनीति करने में दिलचस्पी रखने लगे हैं। यह ‘सोशल मीडिया’ के ‘मुख्य मीडिया’ में मिक्स होने का दौर है। इन दिनों मुख्यधारा का मीडिया यानी टीवी भी अपने बहुत से न्यूज कंटेट के लिए बहुत कुछ ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया के कंटेट पर निर्भर रहने लगा है। इससे राजनीति का तरीका बदल रहा है। जमीनी राजनीति भी ‘ऑनलाइन’ हुई जा रही है। वह ‘ट्वीटिंग’,‘रिट्वीटिंग’ और ‘एंप्लीफाइंग’ के जरिए काम करने लगी है। सत्ता पक्ष के नेता हों या विपक्ष के नेता, आजकल सोशल मीडिया के जरिए जितनी राजनीति करते हैं, उतनी जमीन पर उतर कर नहीं करते। यह हमारी राजनीति में एक बहुत बड़ा प्रस्थापना परिवर्तन है, जो हो रहा है।
इससे पहले राजनीति मुख्यधारा के मीडिया जैसे अखबारों, रेडियो व टीवी  के माध्यम से की जाती थी। नेता भीड़ जुटाते, उसको संबोधित करते, उसका ‘लाइव टेलकास्ट’ होता। फिर ‘बाइटें’ बजतीं। इसके लिए नेता मीडिया में अपने सूत्रों से काम लेते थे। अगर उससे न चलता तो मीडिया पर अपना पक्ष लेने के लिए  दबाव डालते थे। लेकिन तब की राजनीति जमीनी होती थी। जिस नेता ने भीड़ जुटाई, वह असली और जो न जुटा सका, वो नकली। लेकिन एक वक्त ऐसा भी  आया जब  नेता सिर्फ टीवी के जरिए राजनीति करने लगे। नेता प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाते। मीडिया को उसके लायक चुटीली ‘बाइटें’ देते, फिर देखते कि वो मारक बाइट बजी कि न बजी। इसके लिए हर दल अपने यहां मीडिया प्रकोष्ठ रखने लगा। हर अखबार, हर चैनल की जरूरी कतरन या रिकार्डिग को रिकॉर्ड करने-कराने लगा। नेता ‘मीडिया सेवी’ होने लगे। ये जमाना टीवी से भी आगे के मीडिया का यानी सोशल मीडिया का जमाना है, ट्विटर और ‘टूलकिट’ का जमाना है। जमीनी राजनीति की जगह आजकल हर नेता सुबह से रात तक या तो कुछ चुटीली लाइनों को ट्वीट करते रहता है, या किसी अन्य की लाइन को रिट्वीट या एंपलीफाई करते रहता है। जमीनी राजनीति कोई नहीं करता। इस ‘आभासी राजनीति’ को विपक्ष भी करता है, और सोचता है कि वो फासिज्म से लड़ रहा है, लेकिन नहीं जानता कि आभासी राजनीति खुद फासिज्म की जमीन तैयार करती है।

सुधीश पचौरी


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