बतंगड़ बेतुक : चौथनिया भैंस पर छ:थनिया मार
झल्लन आते ही बोला, ‘का ददाजू, चुपके-चुपके कोरोना कर लिये और हमें खबर तक नहीं किये।’ हमने कहा, ‘जो सबको हो रहा है वही कोरोना तो हुआ था, कौन-सा हमें सम्मान-पुरस्कार मिला था जो तुझे बुलाते और खबर सुनाते।’
बतंगड़ बेतुक, चौथनिया भैंस पर छ:थनिया मार |
झल्लन बोला, ‘सुनो ददाजू, हमें मालूम है पुरस्कार-सम्मान आप जैसों को नहीं मिला करते और पुरस्कार-सम्मान देने वाले आप जैसों पर अपना बहुमूल्य वक्त बरबाद नहीं किया करते। अब आप बताइए, पुरस्कार बेचने वाली किसी मंडी में आपने कभी कोई रैंठ-पैंठ बनायी, किसी पुरस्कारदाता की कभी कोई विरुदावलि गायी, कभी किसी सरकार की मजार पर चादर चढ़ायी, किसी मंत्री से कोई गुहार लगायी, कभी किसी नेता की पूंछ सहलायी, कभी किसी पुरस्काराधीश की ड्योढ़ी पर गर्दन झुकायी? नहीं न, तो फिर काहे सम्मान-पुरस्कार की बात मन में लाते हो, काहे अपना ध्यान अपने काम में नहीं लगाते हो?’
हमने थोड़ा गुस्से से कहा, ‘क्या फालतू बात कर रहा है झल्लन, हम किसी पुरस्कार-सम्मान की बात नहीं कर रहे हैं, वो तो बात जुबान पर आ गयी वरना बात तो हम कोरोना की कर रहे हैं। जब लाखों लोग रोज कोरोना की चपेट में आ रहे हैं, हजारों लाइलाज मर रहे हैं, करोड़ों त्राहि-त्राहि कर रहे हैं तब हम अपने कोरोना की बात क्यों उठाते, उठाते तो क्या किसी से कहते और क्या सुनाते?’ झल्लन बोला, ‘किसी और को बताओ न बताओ हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है पर हमारा आपका तो नाभि-नाल का रिश्ता है सो हमें बताना आपका फर्ज बनता है।’ हमने कहा, ‘चल ठीक है, पर ये बता तू सिर्फ हमारे हाल-चाल पूछने आया है या और भी कुछ कहने सुनाने को लाया है?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, इन दिनों कोरोना की मार, चारों ओर मचा हाहाकार, डरावना संक्रमण, भयावह मौतें, वैक्सीन का अभाव, आक्सीजन की कमी, हांफते अस्पताल, थरथराती स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था, लोगों की लाचारी और इस लाचारी को भी भुनाने की कुछ धूतरे की शर्मनाक मक्कारी, ये सारी चीजें ही दिल-दिमाग घेरे हुए हैं, और तिस पर कोढ़ में खाज यह सरकार लोगों की पीड़ा से मुंह फेरे हुए है। विपक्ष चीख रहा है, मीडिया चीख रहा है, बड़े-बड़े बुद्धिजीवी सरकार की रीतियों-नीतियों पर जमकर प्रहार कर रहे हैं, थुकिया रहे हैं और गरिया रहे हैं पर सरकार नाकारा हो गयी है, बस गाल बजाए जा रही है, अपने गंजे सर पर सिर्फ अपनी बातों का ताज सजाए जा रही है।’ हमने कहा, ‘तेरी बातें सुनकर हमें चौथनिया भैंस की कहानी याद आ रही है जिस पर छ:थनिया मार पड़ रही थी और वह भैंस ज्यादा दूध देने के बजाय ज्यादा गोबर कर रही थी।’ झल्लन बोला, ‘कुछ पल्ले नहीं पड़ा ददाजू, जरा ठीक से समझाओ, थोड़ा खुलकर बताओ।’
हमने कहा, ‘कहानी ये है झल्लन कि एक गांव-घर में एक भैंस थी जिसके अन्य भैंसों की तरह चार थन थे, चारों थन दूध देते थे और यही भैंस की कुल संपदा, कुल धन थे। घर के लोग आते-जाते उसके थनों को दुहते रहते थे और जिसके पल्ले कम ज्यादा जितना दूध पड़ता उससे काम चलाते रहते थे और खुश रहते थे। फिर एक दिन उस घर में दबे पांव एक बीमारी घुस गयी और सारी चलती हुई व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर गयी। घर के बूढ़े-बच्चे बीमारी की मार से कराहने लगे और पट्ठे-जवान दवा-दारू की तलाश में इधर-उधर भागने लगे। विपक्षी नेतानुमा एक तांत्रिक ने उन्हें बताया कि अगर सबको सबकी जरूरत के अनुसार भैंस का दूध मिल जाएगा तो सबका संकट मिट जाएगा। एक ने शंका जतायी कि भैंस तो चौथनिया है जितना दूध दे रही है उससे ज्यादा नहीं दे पाएगी, सबका पेट भर नहीं पाएगी। तांत्रिक ने सलाह दी कि भैंस की मान-मनौवल करो, पसुराओ-सहलाओ मगर उससे छ: थन का दूध निकलवाओ और अगर न माने तो थोड़ी पूंछ उमेठ दो और चार-छह डंडे लगाओ मगर दुधन्ना पूरा भरवाओ। घरवाले तांत्रिक की बात सरमाथे रख उठ गये और चौथनिया भैंस से छ:थनिया दूध लेने में जुट गये। वे कभी भैंस के निचुड़े हुए थनों को और निचोड़ देते, कभी उसकी पूंछ मरोड़ देते, कभी उसके सींग पकड़कर झिझोड़ देते। बेचारी भैंस छ:थन का दूध न दे सकती थी न देती थी, कभी उनके दुधन्ने को मूत्रमय कर देती थी और कभी उनके सारे किये कराये पर गोबर कर देती थी। यही हाल यहां का भी है, हमारी भैंस चौथनिया है, उसमें जितना दम है उतना दूध दे रही है, उस पर बूते से बाहर ज्यादा दूध के लिए जितनी मार पड़ रही है वह उतना ही गोबर कर रही है।’
झल्लन जोर से हंस पड़ा, ‘समझ गये ददाजू, भैंस से चाहे जितने वैक्सीन मांगो, चाहे जितनी ऑक्सीजन मांगो वह जितना बूता है उतने ही देगी, ज्यादा के लिए चाहे जितना थुकियाओ, गरियाओ वह सिर्फ वादों-बातों का गोबर करेगी।’ हमने कहा, ‘चल हमारी कहानी में कुछ तो तूने पाया।’ झल्लन बोला, ‘हम तो समझ गये ददाजू, पर एक बात आप भी समझ लो, आजकल आपको न कोई जानता है, न पहचानता है और जो एकाध कोई जानता है वह हम झल्लन की वजह से जानता है, हमें छोड़कर गायब मत हो जाया करो, जहां आना है वहां नियमित आया करो।’
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