बांग्लादेश में मोदी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कोरोना महामारी के कारण पिछले एक वर्ष के दौरान विदेश यात्राओं का मौका नहीं मिला।
बांग्लादेश में मोदी |
विश्व भ्रमण के लिए विपक्षियों के निशाने पर रहे मोदी को इस दौरान विदेशी नेताओं के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संवाद करने का मौका मिला। लंबे अंतराल के बाद उन्होंने विदेशी धरती पर कदम रखा जब वह बांग्लादेश की यात्रा पर गए। इस यात्रा के साथ घरेलू, क्षेत्रीय और विश्व राजनीति के बहुत से पहलू जुड़े हैं। यह अवसर भी विश्व इतिहास में एक स्मरणीय घटनाक्रम से जुड़ा था। बांग्लादेश का मुक्ति संग्राम विश्व के सामने मौजूद जातीय, भाषाई और सभ्यतागत पहलूओं से जुड़ा है। इस मुक्ति संग्राम में भारत की सैनिक सहायता के जरिये ही विश्व मानचित्र पर एक नया देश उभरा। यह पहला अवसर था, जब एक क्षेत्रीय शक्ति (भारत) ने अमेरिका जैसी महाशक्ति की नाराजगी के बावजूद सैनिक हस्तक्षेप कर एक नये राष्ट्र के जन्म में मिड वाइफ की भूमिका निभाई। इस ऐतिहासिक घटनाक्रम में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने जिस नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया, वह बेमिसाल था।
प्रधानमंत्री मोदी की बांग्लादेश यात्रा देश की आजादी की 50वीं वषर्गांठ और राष्ट्रपिता बंगबंधु मुजीबरुरहमान के जन्म शताब्दी वर्ष में हुई। बांग्लादेश के नेताओं की मौजूदगी में नरेन्द्र मोदी ने वर्ष 1971 के घटनाक्रम में इंदिरा गांधी की भूमिका का उल्लेख करने के साथ ही यह भी रेखांकित किया कि भारत का हर राजनीतिक दल और समाज का हर तबका बांग्लादेश की आजादी का पुरजोर समर्थक रहा था। शेख मुजीब की आजादी के संघर्ष के प्रारंभिक दौर में ही विपक्षी दल भारतीय जनसंघ ने स्वतंत्र देश के रूप में बांग्लादेश को मान्यता दिए जाने की मांग को लेकर सत्याग्रह किया था, जिसमें नरेन्द्र मोदी ने भी भाग लिया था।
आजादी के 50 वर्षो के दौरान बांग्लादेश ने बहुत से उतार-चढ़ाव देखे। राष्ट्रपिता शेख मुजीब और उनके परिवार के अनेक सदस्यों की हत्या कर दी गई। उस समय ऐसा लगा कि बांग्लादेश की आजादी अपने मूल आदशरे से पूरी तरह विमुख हो गई है। भारत के सामने भी यह कटु सत्य सामने आया कि पूर्वी पाकिस्तान के खत्मे के बावजूद अपनी पूर्वी सीमा पर भी उसे एक विरोधी ताकत का सामना करना पड़ा। यह शेख हसीना की संघषर्शीलता और नेतृत्व क्षमता का नतीजा है कि बांग्लादेश इन सभी झंझावतों से उबर कर अपनी विकास यात्रा जारी रख सका। आज बांग्लादेश विकासशील देशों की कतार में अग्रणी मुकाम पर है। देश में राजनीतिक स्थिरता है और आर्थिक वृद्धि दर तेज है।
शेख हसीना ने घरेलू और विदेशी राजनीति में एक संतुलन कायम किया है। मुस्लिम बहुसंख्यक वाला देश होने के बावजूद उन्होंने देश की राजनीति को धर्मनिरपेक्ष स्वरूप प्रदान किया है। जिसमें हिंदू और बौद्ध अल्पसंख्यक अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें। उनके सामने चुनौती कितनी विषम है इसका संकेत मोदी की यात्रा के दौरान देश में इस्लामी उग्रवादियों के विरोध प्रदर्शनों से मिला। हिफाजत-ए-इस्लाम संगठन से जुड़े धर्माध लोगों ने देश में विरोध प्रदर्शन किए, जिसमें हुई हिंसा के दौरान चार व्यक्ति मारे गए।
प्रधानमंत्री मोदी ने मुख्य समारोह में अपने संबोधन में मजहबी उग्रवाद औरआतंकवाद के खतरे के प्रति पड़ोसी देश को आगाह किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद और मजहबी उग्रवाद की ताकतें आज भी सक्रिय हैं। यह भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए साझा चुनौती है। दोनों देशों को गरीबी और आतंकवाद के विरुद्ध मिलकर संघर्ष जारी रखना होगा। पाकिस्तान का नाम लिये बिना मोदी ने कहा कि बहुत सी ऐसी ताकते हैं जिन्होंने बांग्लादेश के अस्तित्व को लेकर सवाल खड़े किए थे। शेख हसीना ने देश का भविष्य और उसकी विकास यात्रा पर खड़ी की जाने वाली सभी आशंकाओं को निमरूल साबित कर दिया।
मोदी की यह यात्रा पड़ोसी देशों को तरजीह देने वाली विदेश नीति का ही एक हिस्सा है। कोरोना महामारी की वैक्सीन की आपूर्ति के मामले में भी भारत ने अपने पड़ोसी देशों को प्राथमिकता दी। इन देशों का विश्वास अर्जित कर भारत ने अपने पड़ोस में एक अनुकूल भूरणनीतिक वातावरण तैयार किया। इसके चलते इस क्षेत्र में चीन की सक्रियता और पहुंच का भी मुकाबला किया जा सकेगा।
| Tweet |