धर्मनिरपेक्षता का झल्लनिया सिद्धांत

Last Updated 28 Mar 2021 01:06:19 AM IST

झल्लन आया और सीधे हमारे निकट सरक आया। हमने कहा, ‘क्या बात है झल्लन, आज तेरे चेहरे पर कुछ चमक सी छा रही है, आखिर कौन सा स्त्रोत तूने पा लिया है जहां से ये फूटकर आ रही है?’


धर्मनिरपेक्षता का झल्लनिया सिद्धांत

झल्लन बोला, ‘सच कहें ददाजू, चुनाव के दिनों में हमारा दिमाग खुरखुरा के उलझ जाता था, हम बहुत कोशिश करते थे ये समझने की कि ये धर्मनिरपेक्षता क्या है पर कुछ समझ में नहीं आता था। जब हम इसके सींग पकड़ते थे तो पूंछ पकड़ में आ जाती थी और जब पूंछ पकड़ते थे तो सींग दिमाग में घुस आते थे और पहले से उलझे हुए हम पहले से भी ज्यादा उलझ जाते थे।’ हमने कहा, ‘लगता है धर्मनिरपेक्षता के सींग-पूंछ तेरी पकड़ में आ गये हैं, शायद तेरी उलझन मिटा गये हैं।’ झल्लन बोला, ‘सही पहुंचे हो ददाजू, धर्मनिरपेक्षता की जो विरल-अविरल मूरत हमारे दिमाग में घुस-घुसकर निकल जाती थी और निकल-निकलकर घुस आती थी, अब लगता है हमारी बंगाल की दुर्गा दीदी ने साफ-साफ समझा दिया है और सच्ची धर्मनिरपेक्षता क्या है यह बता दिया है। हमारे दिमाग के कपाट खुल गये हैं और दीदी में धर्मनिरपेक्षता की मूरत देखकर हमारे सारे भरम-संदेह धुल गये हैं।’
हमने कहा, ‘तू हमें अपनी सुलझन सुना रहा है या हमारी उलझन बढ़ा रहा है। दीदी ने तुझे अपना कौन-सा रूप दिखा दिया है जिसने धर्मनिरपेक्षता का दीया तेरे दिमाग में जला दिया है?’ झल्लन बोला, ‘आप सब्र नहीं रखते ददाजू, फालतू में टोका-टोकी शुरू कर देते हो और जो हम कहना चाहते हैं वह कहने नहीं देते हो। हम कहे थे कि पहले हमारे पल्ले नहीं पड़ता था कि धर्म के आगे निरपेक्षता के आने से धर्मनिरपेक्षता बनी थी या निरपेक्षता के पीछे धर्म के चिपक जाने से धर्मनिरपेक्षता बनी थी। हम यह भी नहीं समझ पाते थे कि धर्मनिरपेक्ष होने के लिए धर्म का पालन करना पड़ता है या धर्म से निरपेक्ष रहना पड़ता है। निरपेक्ष होकर भी कोई व्यक्ति धार्मिक हो सकता है या धार्मिक होते हुए भी निरपेक्ष रह सकता है। हमारी उन सारी शंकाओं का समाधान दुर्गा दीदी ने कर दिया है और हमारे दिमाग को नयी समझदारी से भर दिया है।’ हमने कहा, ‘तू इतनी देर से एक ही बात बार-बार दोहराये जा रहा है पर तेरी धर्मनिरपेक्षता का सूत-डोरा हमारी समझ में नहीं आ रहा है। अब बता, दीदी ने तुझे क्या समझाया है और देवी धर्मनिरपेक्षता का तुझे कौन-सा अवतार दिखाया है?’

झल्लन बोला, ‘दीदी ने दिखा दिया है कि चुनाव में धर्मनिरपेक्ष कैसे रहा जाता है और इधर से भी और उधर से भी वोट कैसे बटोरा जाता है। दीदी जब इधर मुंह करके बोलती हैं तो चंडी पाठ कर देती हैं और उधर मुंह करके बोलती हैं तो कलमा पढ़ देती हैं और ऐसा करके वह धर्मनिरपेक्षता की साक्षात मूरत गढ़ देती हैं। अब हमें इससे कोई लेना-देना नहीं कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर कौन, क्या काटता-बोता है, चुनाव के दिनों में जो दो धर्मो पर एक साथ सवारी कर सके वही सच्चा धर्मनिरपेक्ष होता है।’ हमने कहा, ‘तो इस हिसाब से तो जो दो से ज्यादा यानी तीन या चार धर्मो पर चुनावी सवारी करे वह और ज्यादा बड़ा धर्मनिरपेक्ष कहलाएगा और इनके आगे तेरी दीदी की धर्मनिरपेक्षता का गुना-भाग छोटा पड़ जाएगा।’ झल्लन बोला, ‘सही पहुंचे हो ददाजू, जो सुबह मंदिर में कीर्तन करे, दोपहर में मस्जिद में नमाज पड़े, शाम को गुरद्वारे में अरदास करे और रात को चर्च में प्रार्थना करे, हम सिद्धांतत: उसी को बड़ा धर्मनिरपेक्ष मानेंगे बाकी सबको गैर-धर्मनिरपेक्ष के तौर पर पहचानेंगे।’
हमने कहा, ‘हमें लगता है झल्लन तू उलटी गंगा बहा रहा है और धर्मसापेक्षता को धर्मनिरपेक्षता बता रहा है।’ झल्लन बोला, ‘अब हमें फिर मत उलझाइए, कोई समझने वाली बात हो तो वह समझाइए।’ हमने कहा, ‘देख झल्लन, जो धर्म को मानकर चलता है, उसे महत्व देता है वह धर्मसापेक्ष होता है और जो धर्म को महत्व नहीं देता, अपनी राजनीति में उसका इस्तेमाल नहीं करता वह धर्मनिरपेक्ष होता है।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप फिर गुड़ का गोबर किये दे रहे हो, हमारे समझे-समझाए पर पानी फेरे दे रहे हो।’ हमें थोड़ी हंसी आयी और हमने अपनी बात झल्लन को समझाई, ‘देख झल्लन, हमारे यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, ये चार बड़े धर्म हैं जिनके अपने-अपने अनुयायी हैं और अपने-अपने कांड-कर्म हैं..।’
झल्लन हमें टोकते हुए बोला, ‘ठीक है, ठीक है ददाजू, हम समझ गये आप क्या समझा रहे हैं और जो समझे हैं वह आपको ही समझा रहे हैं। जो पार्टी अपने ही धर्म को आगे बढ़ाए और चुनाव में बाकी तीन धर्मो से निरपेक्ष रहकर अपनी राजनीति चलाए वही पार्टी बड़ी धर्मनिरपेक्ष पार्टी होगी क्योंकि वह तीन धर्मो से निरपेक्ष होगी। जो पार्टी दो धर्मो की सवारी करे और दो से निरपेक्ष रहे तो वह थोड़ी कम धर्मनिरपेक्ष होगी और जो पार्टी तीन धर्मो को साधकर चले, केवल एक धर्म से निरपेक्ष रहे वह सबसे कम धर्मनिरपेक्ष होगी। और जो पार्टी चारों धर्मो से निरपेक्ष रहेगी वह न इधर की रह जाएगी न उधर की रह जाएगी। बस, विराट शून्य बन जाएगी जो न अपने काम आएगी, न किसी और के काम आएगी।

विभांशु दिव्याल


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment