मीडिया : ‘जीन्स’ एक पापुलर कल्चर है
जिस दिन उत्तराखंड के नये मुख्यमंत्री जी ने एक लडकी को देख उसकी जीन्स का ‘नखशिख वर्णन’ किया और मीडिया में स्त्रीत्ववादियों की तीखी आलोचना के निशाने पर आए उसी दिन सोशल मीडिया पर बालीवुड की एक हीरोइन भी सोशल मीडिया में ‘फटी जीन्स’ का विज्ञापन करती नजर आई मानो चुनाती दे रही हो कि सीएम जी अकेली वही लड़की फटी जीन्स नहीं पहन रही मैं भी पहने हूं कर लो क्या कर लोगे?
मीडिया : ‘जीन्स’ एक पापुलर कल्चर है |
फिर एक दिन देहरादून की सड़कों में कुछ लड़कियां सामान्य जीन्स और फटी जीन्स में सीएम जी के उक्त सेक्सिस्ट वक्तव्य का विरोध करती नजर आई जैसे कह रही हों कि आप कुछ भी कहते रहें हम अपने तरीके से जीन्स पहनेंगे। फिर नेताजी ने संभाला कि मैं जीन्स पर आपत्ति नहंीं कर रहा था फटी जीन्स पर आपत्ति कर रहा था, लेकिन इससे क्या? ये तो बाद का ‘पोस्ट ट्रूथ’ यानी उत्तर सत्य’ जैसा हुआ। कहने की जरूरत नहीं कि यह एक ‘पुल्लिंगी’ मानसिकता है जो मानकर चलती है कि ‘नारी की झाई परत अंधे होइ भुजंग’! इस मानसिकता के अनुसार अब भी ‘नारी नरक की खान है’।
सारी समस्या औरत को ‘मर्यादित’ करने की है। ऐसा सोच यही चाहता है कि स्त्री हमेशा अपने को ढक छिपाकर रखे और हमेशा एक मर्यादा में रहने वाली स्त्री की तरह दिखे जीन्स पहनकर वह पुरुष जैसी दिखने लगती है। तिस पर अगर कोई फटी जीन्स पहनता है तो फटी जगह से जो त्वचा दिखती है वह और ‘भड़काती सी’ लगती है। इसलिए जो भी लड़की ऐसी जीन्स पहनती है ‘भड़काने’ का काम करती है। आशय यह कि उसे वैसी जीन्स नहीं पहननी चाहिए! उसे हमेशा कायदे से रहना चाहिए। यह पहला उदाहरण नहीं है जब एक स्त्री के पहनावे पर ऐसे सेक्सिस्ट कटाक्ष किए गए हों। पहले भी ऐसी मानसिकता वालों ने कटाक्ष किए हैं और फतवे भी दिए हैं।
कुछ पहले पश्चिमी यूपी व हरियाणा की कुछ खाप पंचायतों ने लड़कियों के जीन्स पहनने पर ही पाबंदी लगाने के फतवे दिए थे जिसे ‘नागरिक समाज’ ने चुनौती दी थी और खापों की आलोचना की थी। ‘फटी जीन्स’ पर आपत्ति करने वाली मानसिकता वाले ‘फटी जीन्स’ को पहनने वाली लड़की पर कटाक्ष करते वक्त यह भूल जाते हैं कि अब भी अपने देश में बहुत सी देहों पर पूरे और साबित कपड़े नहीं होते और उनको फटे कपड़ों में या कम कपड़ों में ही रहने को मजबूर होना होता है। नेता उनको ढकने कुछ नहीं करते, लेकिन अगर कोई मध्यवर्गीय लड़की कपड़े फाड़कर पहन ले तो ‘आफत’ आ जाती है। अब किसी को कोई क्या बताए कि आज के समय में ‘जीन्स’ सिर्फ एक पहनावा नहीं है बल्कि एक ‘सांस्कृतिक वक्तव्य’ भी है। इतना ही नहीं ‘फटी जीन्स’ उस लड़की का एक ‘प्रतिरोधी वक्तव्य’ भी है क्योंकि वह जीन्स को उसके ‘ब्रांड’ के दबदबे से बाहर निकालकर जीन्स को अपने तरीके से ‘अपना’ बनाती है यानी अपना ‘मनचाहा आकार’ देती है।
हम इसे एक अमेरिकी उदाहरण से समझें। अमेरिका के विसकोन्सिन विविद्यालय में मीडिया और पापुलर कल्चर को पढ़ाने वाले चिंतक जान फिस्के ने अपनी पुस्तक ‘रीडिंग पापुलर’ में बताया है कि ‘पापुलर कल्चर’ अपने स्वभाव से कई प्रकार के ‘अर्थ वाली’ होती है। कोई भी ‘पापुलर टेक्स्ट’ (कृति) कई प्रकार के अर्थ रखती है। ‘जीन्स’ भी एक ‘कल्चरल टेक्स्ट’ या ‘कृति’ ही है। पापुलर कल्चर के कई मायने होते हैं। वे हमें अपना कुछ ‘गुलाम’ बनाती है तो कुछ ‘आजाद’ भी करती है। लोग उसका उपयेग करते हुए उसके मानी उलट सकते हैं। इसके लिए उन्होंने अपनी क्लास के छात्रा-छात्राओं से कहा कि वे अपनी जीन्स के बारे में क्या समझते हैं? इस बारे में वे टिप्पणी लिखकर लाएं।
जब छात्रा लिखकर लाए तो उन्होंने पाया कि अधिकतर छात्राओं ने जीन्स को खरीदने के बाद उसे कहीं घिसकर, कहीं उस पर कुछ लिखकर, या चित्र बनाकर या कहीं से फाड़कर या कहीं थेगली लगाकर जीन्स को अपनी स्टाइल के अनुकूल बना लिया है और जीन्स की ‘कैद’ में रहने से ‘इनकार’ कर दिया है और उसे ‘अपना’ बना लिया है। जिस लड़की ने अपनी जीन्स को घुटनों से फटने दिया या फाड़कर पहना, वह एक प्रकार से यही कर रही थी। ऐसा करके वह उन मर्दवादी नजरों को भी चैलेंज कर रही थी, जिनकी नजर औरत को एक खास पहनावे में बंद देखने की आदी हैं कि वो कायदे से कपड़े पहनें। मर्यादा में रहे! यह बात किसी ‘पुल्लिंगवादी’ को समझ में नहीं आ सकती कि जीन्स को फाड़कर पहनना एक राजनीतिक वक्तव्य भी है, जो स्थापित ब्रांड को चुनौती देता है। जीन्स एक पापुलर कल्चर है उसके कई मानी हैं एक मानी लड़की का भी है!
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