वैश्विकी : ऑस्टिन का भारत दौरा

Last Updated 21 Mar 2021 12:31:27 AM IST

अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन के संबंध में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों को जारी रखते हुए भारत-प्रशांत क्षेत्र में भारत का अधिक-से-अधिक सहयोग हासिल करने की नीति जारी रखी है।


वैश्विकी : ऑस्टिन का भारत दौरा

अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन की भारत यात्रा अमेरिका की इसी प्राथमिकता और तत्परता को उजागर करती है। क्वाड शिखर वार्ता के कुछ ही दिनों बाद इस यात्रा का होना यह भी जाहिर करता है कि अमेरिका जल्दी-से-जल्दी भारत प्रशांत क्षेत्र में एक सुरक्षा ढांचा खड़ा करना चाहता है। पूर्वी लद्दाख में चीन के खतरे के मद्देनजर भारत क्वाड के सुरक्षा ढांचे को लेकर पहले जैसे अससंजस में नहीं है। वह किसी औपचारिक सैन्य गठबंधन से जुड़े बिना इस नये ढांचे में पूरा सहयोग करने के लिए तैयार नजर आता है।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ऑस्टिन के साथ बातचीत के बाद कहा कि दोनों देश रक्षा सहयोग में बढ़ोतरी करेंगे। भारत में अमेरिका की भारत-प्रशांत कमान, मध्य कमान और अफ्रीका कमान के साथ मिलकर काम करने का फैसला किया है। अमेरिका की यह सैनिक कमान अफ्रीका महाद्वीप से लेकर सुदूर पूर्व तक सैनिक वर्चस्व सुनिश्चित करती है। अमेरिका के सैनिक दबदबे को भारत अपने रणनीतिक हितों के लिए उपयोग करना चाहता है। दोनों देशों ने सैन्य सुविधाओं का उपयोग, सैन्य गतिविधियां तथा सूचनाओं के आदान-प्रदान और रक्षा संपर्क के संबंध में पहले ही तीन समझौते किए हैं।

भारत हिंद महासागर और आसपास के क्षेत्रों में केवल अमेरिका ही नहीं बल्कि फ्रांस, ब्रिटेन और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ मिलकर भी राजनीतिक और सैनिक उपाय कर रहा है। इस समुद्री क्षेत्र में भारत सैन्य अभ्यासों का सिलसिला भी शुरू कर रहा है। अब यह कहना मुश्किल है कि भारत किस सीमा तक भारत-प्रशांत क्षेत्र में नये सुरक्षा ढांचे से जुड़ेगा। भारत ने अभी तक अपनी रणनीति स्वायत्तता और स्वतंत्र विदेश नीति के मूलभूत सिद्धांत को नहीं छोड़ा है। अमेरिका सहित कोई भी देश भारत को इन मूलभूत सिद्धांतों से डिगाने के लिए जोर-जबरदस्ती करने की स्थिति में नहीं है। भारत और अमेरिका के रणनीतिक लक्ष्यों में भी अंतर है। भारत स्वयं एक महाशक्ति बनने की आकांक्षा रखता है। इस महत्त्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए वह समकालीन शक्ति समीकरणों का अपने पक्ष में इस्तेमाल करने की नीति पर चल रहा है। यही कारण है कि जहां भारत एक ओर क्वाड के साथ जुड़ रहा है वहीं वह ब्रिक्स और शंघाई सहयोग संगठनों के साथ भी जुड़ा है। अमेरिका के रक्षा मंत्री की भारत यात्रा के पहले अमेरिकी सीनेट की शक्तिशाली विदेश संबंध समिति के अध्यक्ष राबर्ट मेनेंडेज ने ऑस्टिन को पत्र लिखकर आग्रह किया कि वह मोदी सरकार के साथ भारत में मानवाधिकार का मुद्दा उठाएं। इस संबंध में सीनेटर ने किसान आंदोलन का जिक्र किया। पिछले कुछ महीनों के दौरान कई बार ऐसे अवसर आए हैं जब भारत ने इन मुद्दों को लेकर उसे सलाह देने वाले देशों को फटकार लगाई है। ऑस्टिन को भी राजनाथ सिंह ने सख्त या नरम लहजे में यही जवाब दिया होगा।
राबर्ट मेनेंडेज ने भारत द्वारा रूस से मिसाइल प्रतिरोधी प्रणाली एस-400 की खरीद का मामला भी उठाया। उन्होंने ऑस्टिन से कहा कि वह मोदी सरकार को स्पष्ट शब्दों में बता दें कि एस-400 प्रणाली की खरीद रूस के विरुद्ध लगाए गए प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा। सीनेटर की सलाह में एक धमकी भी है कि भारत ने यदि एस-400 हासिल की तो उसे अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। इसके तहत भारत को इस वर्ष के अंत तक प्रणाली की पहली खेप हासिल हो जाएगी। किसी भी कीमत पर भारत इस सौदे से पीछे नहीं हटेगा। भारत के लिए एक समस्या यह है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने रूस के विरुद्ध यूरोप में एक मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने राष्ट्रपति पुतिन के विरुद्ध अशोभनीय भाषा का प्रयोग करते हुए उन्हें कातिल करार दिया है। क्रीमिया के रूस में विलय के विरुद्ध भी अमेरिका यूरोपीय देशों के साथ मिलकर अभियान चला रहा है। बाइडेन की इस नीति के ठीक विपरीत पुतिन मोदी के सबसे विश्वस्त मित्र हैं। भारत के लिए क्रीमिया का रूस में विलय  कश्मीर के भारत में विलय जैसा मिलता-जुलता मामला है। भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने यह सबसे बड़ी चुनौती होगी कि वह अमेरिका और रूस के बीच आ रही भारी गिरावट के दौर में वह इन दोनों देशों के साथ किस तरह अपना तालमेल बिठाता है?

डॉ. दिलीप चौबे


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