बतंगड़ बेतुक : इस बार खेला ओवश्य होबे

Last Updated 21 Mar 2021 12:28:56 AM IST

झल्लन आते ही बोला, ‘ददाजू, अब इस मुल्क में या तो वे रहेंगे या हम रहेंगे, पर उनका अत्याचार नहीं सहेंगे।’


बतंगड़ बेतुक : इस बार खेला ओवश्य होबे

हमने कहा, ‘अब कौन तेरे ऊपर अत्याचार कर रहा है जो तू आर-पार करने पर उतर रहा है?’ झल्लन बोला, ‘और कौन ददाजू, वही अपना चुनाव आयोग। चुनाव आयोग तो हद कर दिये हैं, अब देखिए, अपने गलत फैसले से हमारी दुर्गा दीदी की कितनी भद कर दिये हैं। दीदी कहीं थीं कि उन पर हमला किया गया है और चुनाव आयोग को देखिए, उसने दीदी और दुर्गावाहिनी की बात न मानकर कितना उलट फैसला दे दिया है,  चुनाव आयोग के फैसले से हमले ने दुर्घटना का रूप ले लिया है। चुनाव आयाग की यही बात हमें बिल्कुल जच नहीं रही है, दीदी और उनके समर्थकों की बात तो छोड़िए, हमें भी पच नहीं रही है।’ हमने कहा, ‘भाई, चुनाव आयोग ने तो अभी कोई फाइनल फैसला तो सुनाया नहीं है, अभी जो कुछ कहा है वह वहां के मुख्य सचिव और आयोग के पर्यवेक्षकों की रिपोर्ट के बल पर कहा है।’ झल्लन बोला, ‘असली खेला तो यही है ददाजू, अब बताइए, चुनाव आयोग किसके इशारे पर दम भरता है और किसके हित में फैसला करता है? चुनाव आयोग तो वही कहे जो देश की बड़ी सरकार कहलवाना चाहे थी और चुनाव आयोग वही किये जो बड़ी सरकार करवाना चाहे थी। लेकिन ददाजू, हम दुर्गावाहिनी के सिपाही हैं सो हम अपनी बात पर डटेंगे और चुनाव आयोग कुछ भी कहे हम अपनी जिद से पीछे नहीं हटेंगे। और रही मुख्य सचिव और पर्यवेक्षकों की बात, तो हम इनकी निष्पक्षता पर कतई भरोसा नहीं कर सकते, चुनाव आयोग भले ही इनकी बात मान ले पर हम अपना ध्यान उसकी मनमानी पर नहीं धर सकते।’

हमने कहा, ‘तू बड़ी सरकार, चुनाव आयोग, मुख्य सचिव और चुनावी पर्यवेक्षक सब पर आरोप लगा रहा है, इन सबके बीच सांठगांठ होने का संदेह जता रहा है। यह भी तो हो सकता है कि दीदी पर हमला न हुआ हो और उन्हें हमले का सिर्फ भ्रम हुआ हो या उन्होंने हमले की बात उठाकर जनता की सहानुभूति पानी चाही हो और सहानुभूति पाकर चुनाव में अपनी जीत की मिठाई खानी चाही हो?’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, आप सरकारी प्रवक्ता की तरह बात न करें, अपना थोड़ा सा कान दीदी की बात पर भी धरें। दीदी को क्या पड़ी कि वह दुर्घटना को हमला बताएंगी और सहानुभूति के लिए फालतू नाटक रचाएंगी। दीदी शानदार तरीके से जीतने जा रही हैं इससे उनके विरोधियों को पसीने आ रहे हैं, तभी न वे हमले कर रहे हैं और हमले को दुर्घटना बताने का खेला रचा रहे हैं।’
हमने कहा, ‘झल्लन, तर्क और विवेक भी कोई चीज होते हैं जो किसी घटना के पहलुओं को तय करने के बीज होते हैं। भई, दीदी के सुरक्षा अधिकारी, वहां के डीएम और एसएसपी से भारी चूक हुई थी जिसकी वजह से यह दुर्घटना हुई थी।’ झल्लन बोला, ‘ददाजू, तर्क और विवेक की कसौटी पर हम घटना को खबू कसें हैं तभी न हम इसे हमला बता रहे हैं और आप जिसे चूक कह रहे हो हम उसे जानबूझकर करायी गयी चूक का खेला बता रहे हैं। हमलावर आये, जो चूक करवायी गयी थी उसका फायदा उठाए, फिर तुरत वहां से चलायमान हो गये और दीदी को घायल अवस्था में छोड़ अंतर्धान हो गये।’
हमने कहा, ‘ऐसा कैसे संभव है कि कोई हमला करके इस तरह से चलायमान हो जाये और किसी के भी संज्ञान में न आ पाये।’ झल्लन बोला, ‘संज्ञान में तो तब आता जब किसी को संज्ञान लेने दिया जाता, षड़यंत्र का यही तो सबसे बड़ा हिस्सा था कि कोई संज्ञान न ले पाये और हमलावर गुट हमला करके बिना किसी के संज्ञान में आये चुपचाप निकल जाये।’
हमने कहा, ‘दीदी के आस-पास तो उनके समर्थकों की भीड़ चल रही थी फिर ये कैसे संभव था कि उनके बीच श्रीराम सेना के लोग घुस आयें और दीदी की कार का दरवाजा खुला देख उन पर हमला करें और फिर वहां से पलायन कर जायें?’ झल्लन बोला, ‘यही तो खेला था ददाजू, समर्थकों की भीड़ में ही षड़यंत्रकारी जा पैठे और दीदी को मनचाही चोट दे बैठे।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, तू दुर्गाभक्ति में इकतरफा भक्त हो रहा है और इस चक्कर में श्रीराम की भक्ति खो रहा है। इस पूरे मामले में तुझे संयत होकर विचार करना चाहिए तब फिर किसी निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए।’ झल्लन बोला, ‘काहे मजाक करते हो ददाजू, हम चुनाव लड़ेंगे या विचार करेंगे, अगर चुनाव के बीच में विचार घुसेड़ दिये तो हमें बहुत भारी पड़ेंगे। सो ददाजू, अपने विचारों का अचार अपने पास रखिए और हमारी दीदी जीतने जा रही हैं उसका स्वाद आप भी चखिए।’
हमने कहा, ‘देख झल्लन, दो मई से पहले हम कुछ नहीं मानेंगे, जब चुनाव परिणाम आ जाएंगे तभी हम किसी को जीता-हारा मानेंगे।’ झल्लन बोला, ‘सुनिए ददाजू, औरे कच्छु होबे न होबे पर खेला ओवय होबे। जीत का जश्न तो दुर्गा दीदी ही मनाएंगी, दीदी तो चुनाव से पहले ही कुर्सी पर बैठ गयी हैं, चुनाव के बाद भी कुर्सी पर बैठकर ही दिखाएंगी।’

विभांशु दिव्याल


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