वैश्विकी : दोराहे पर संबंध
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के संसद में दिए गए अभिभाषण में पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में चीन की आक्रामक कार्रवाई का उल्लेख किया गया।
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इस वारदात के करीब 6-7 महीने बाद भी राष्ट्रपति ने जिस तल्खी के साथ इसका जिक्र किया, उससे स्पष्ट है कि सीमा पर हालात सामान्य नहीं है बल्कि और गंभीर हो गए हैं। राष्ट्रपति ने कहा कि चीन की चुनौती के मद्देनजर देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता बरकरार रखने के लिए सीमा पर अतिरिक्त सैन्य बल भेजा गया है। राष्ट्रपति के अभिभाषण के कुछ देर पूर्व विदेश मंत्री एस जयशंकर ने भारत-चीन संबंधों के बारे में अब तक का सबसे विस्तृत ब्योरा पेश किया। जयशंकर ने गलवान घाटी के प्रकरण के पहले चीन की उन गतिविधियों का हवाला दिया जो विगत दशकों में चीन भारत के संबंधों में अपनाता रहा है। अब तक भारत चीन की इन गतिविधियों को या तो नजरअंदाज करता था अथवा उन्हें तूल नहीं देता था। भारत की औपचारिक प्रतिक्रिया केवल यही होती थी कि दोनों देशों को एक-दूसरे की संवेदनशीलता का ध्यान रखना चाहिए।
जयशंकर ने अपने संबोधन में चीन के आपत्तिजनक रवैये का ब्योरा देते हुए बताया कि किस प्रकार चीन अरुणाचल प्रदेश के भारतीय नागरिकों को सामान्य वीजा नहीं देता। उन्हें अतिरिक्त कागजात के साथ स्टेपल वीजा दिया जाता है। इसी तरह सैन्य एवं गैर सैन्य संपर्क के लिहाज से चीन अरुणाचल प्रदेश या उत्तर पूर्व के उच्च अधिकारियों से बातचीत करने से इनकार करता है। चीन यह रवैया यह जाहिर करने के लिए अपनाता है कि वह अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा नहीं मानता। जयशंकर ने कहा कि चीन ने परमाणु सामग्री आपूर्तिकर्ता समूह में भारत की शिरकत में अड़ंगा पैदा किया। इसी तरह वह सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के भारत के दावे को भी समर्थन नहीं देता। पाकिस्तान में पनाह हासिल करने वाले आतंकवादी सरगनाओं को संयुक्त राष्ट्र द्वारा अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित किए जाने में भी चीन प्रतिकूल रवैया अपनाता है।
गलवान घाटी के घटनाक्रम के बाद सैनिक और कूटनीतिक स्तर पर हुई वार्ताओं की सफलता पर भी संदेह खड़ा हुआ है। विदेश मंत्री ने कहा कि चीन अभी तक ऐसा कोई ठोस और विसनीय कारण नहीं बता पाया है कि आखिर उसने पूर्वी लद्दाख में बड़ी संख्या में अपने सैनिकों की तैनाती क्यों की। जयशंकर ने हिमालय क्षेत्र के दो पड़ोसियों के बीच आगामी दिनों में किसी सैन्य संघर्ष की आशंका तो नहीं जताई लेकिन यह अवश्य कहा कि द्विपक्षीय संबंध दोराहे पर खड़े हैं। दूसरे शब्दों में संबंध कोई भी रूप ले सकते हैं। विदेश मंत्री ने द्विपक्षीय संबंधों को पटरी पर लाने के लिए आठ सूत्रीय सिद्धांत रेखांकित किए, जिनमें वास्तविक नियंत्रण रेखा के प्रबंधन पर सभी समझौतों का सख्ती से पालन, आपसी सम्मान एवं संवेदनशीलता तथा एशिया की उभरती शक्तियों के रूप में एक-दूसरे की आकांक्षाओं को समझना प्रमुख है। सीमा पर यथास्थिति को बदलने का किसी भी तरह का एकतरफा प्रयास पूरी तरह अस्वीकार है। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि भारत -चीन सीमा पर जो असामान्य हालात बने हुए हैं उनकी अनदेखी करके जीवन सामान्य रूप से चलते रहने की उम्मीद करना वास्तविकता नहीं है। चीन ने विदेश मंत्री जयशंकर के सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उनके सुझावों से यह संकेत मिलता है कि नई दिल्ली बीजिंग के साथ संबंधों को महत्त्व देता है और हम इसकी सराहना करते हैं।
चीन का नेतृत्व विदेश मंत्री जयशंकर की इस सलाह पर किस सीमा तक अमल करता है, इससे द्विपक्षीय संबंधों की दिशा तय होगी। चीन ने यदि अपना पुराना रवैया कायम रखा तो द्विपक्षीय संबंध ही नहीं बल्कि एशिया में सुरक्षा माहौल भी बिगड़ेगा। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन अपने कार्यकाल के शुरुआती दौर में कोरोना वायरस महामारी का मुकाबला करने और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के घरेलू एजेंडें पर काम कर रहे हैं। इसके बाद वह एशिया में अमेरिकी की सक्रियता बढ़ाएंगे तथा इंडो-पैसेफिक नीति के अनुरूप एशिया में नया चीन विरोधी सुरक्षा ढांचा खड़ा करने का प्रयास करेंगे। चीन ने यदि हिमालयी क्षेत्र में आक्रामक गतिविधियां जारी रखी तो अमेरिका के प्रयासों को मजबूत तर्क तथा भारत के रूप में एक शक्तिशाली सैन्य और राजनीतिक क्षेत्रीय महाशक्ति भी मिलेगा।
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