मुद्दा : तानाशाही के खिलाफ है आज की दुनिया
अमेरिका के निचले सदन ने ट्रम्प के खिलाफ आए महाभियोग का प्रस्ताव 197 के मुकाबले 232 वोट से पास कर दिया।
मुद्दा : तानाशाही के खिलाफ है आज की दुनिया |
ट्रम्प शायद अमेरिका के पहले राष्ट्रपति हैं, जिनके चुनाव जीतते ही-जो उन्होंने इलेक्टोरल वोट से जीता था-उनकी विवादास्पद घोषणाओं के कारण तमाम शहरों में 50 हजार लोगों का शांत जुलूस उनके खिलाफ निकला था और शायद वो इकलौते राष्ट्रपति हैं, जिनकी फौज के जनरल ने कह दिया कि वो अमेरिका के संविधान को जानते और मानते हैं न कि किसी ट्रम्प को। पुलिस प्रमुख तक ने कह दिया कि यदि उन्हें कोई कायदे की बात करनी हो तो करें अन्यथा अपना मुंह बंद ही रखें। पर ये भी शायद केवल अमेरिका में ही सम्भव है। भारत में तो हम अभी कल्पना भी नहीं कर सकते कि ऐसे कोई सत्ताधीशों को संविधान और कर्तव्य का आईना दिखा देगा।
पूर्व में ट्रम्प के खिलाफ भी महाभियोग आगे नहीं बढ़ा क्योंकि समर्थन नहीं मिला। पर इस बार कांग्रेस में खुद उन्हीं की पार्टी रिपब्लिकन सांसदों ने भी महाभियोग का समर्थन किया और अब ये सीनेट में विचार के लिए जाएगा जहां बड़ी कार्यवाही के लिए 100 में 67 सांसदों की जरूरत होगी और यह रिपब्लिकन के मदद के बिना नहीं होगा। केवल बहुमत से उन्हें आगे किसी ऐसे पद के अयोग्य ठहराया जा सकता है, लेकिन इसके लिए अभी इंतजार करना होगा। वैसे राष्ट्रपति जो बाइडेन ने आगे कुछ ज्यादा करने में अरुचि दिखाई है और पूरे अमेरिका को साथ लेकर चलने की बात की है पर उनकी पार्टी सहित अमेरिका में महाभियोग को मुकाम तक पहुंचाने पर जोर है ताकि फिर कोई ऐसी हिमाकत न कर सके जो पिछले दिनों अमेरिकी संसद में हुआ। अमेरिका के राष्ट्रपति हो या पूर्व राष्ट्रपति उनका पद ग्रहण और विदाई बहुत ही गरिमापूर्ण होती है, जिससे ट्रम्प वंचित रहें। क्या ये सबक बन पाएगा।
दुनिया के उन तमाम नेताओं के लिए जो खुद और खुद की सत्ता को किसी भी तरह कायम रखना चाहते हैं और संस्थाओं तथा स्थापित परम्पराओं से ऊपर खुद को समझ कर उन्हें खत्म करने में लगे हुए हैं। दुनिया बदल रही है। आज की दुनिया अहंकार, तानाशाही, अव्यवस्था और अराजकता के खिलाफ है। चीन ने अपने को ‘लोहे की दीवार’ या ‘आयरन कर्टेन’ में कैद कर रखा था और वहां एक ही कमीज और एक ही घड़ी नीचे से ऊपर तक सब पहनते थे पर चीन को वह लोहे की दीवार गिरानी पड़ी और खुली अर्थव्यवस्था की तरफ जाना पड़ा और दुनिया को चीन में तथा चीनी नागरिकों को दुनिया में आने-जाने की आजादी देनी पड़ी। चीन में 1989 में वहां के भ्रष्टाचार और तमाम समस्याओं के खिलाफ थियानमेन चौक पर हुए छात्र आंदोलन पर गोली और टैंक सभी का प्रयोग हुआ। पर आज उसी चीन के हांगकांग में आंदोलन होने के बावजूद टैंक और गोली का इस्तेमाल 1989 की तरह नहीं हो पा रहा है। रूस में गोर्बाचोव बहुत मजबूत नेता हुए, मगर ग्लास्नोस्त और पेरेस्त्रोइका के उनके फैसलों ने रूस के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और उसके बाद के चुनाव में गोर्बाचोव का नाम तक नहीं रहा।
आज की तारीख में तानाशाही केवल उत्तर कोरिया जैसे छोटे देशों में देखने को मिलती है। हालांकि वहां भी अभी तानाशाह ने जनता से खेद प्रकट किया कि वो शायद जनता की आकांक्षाओं को पूरा नहीं कर सके। तानाशाही, अव्यवस्था और अराजकता ऐसा और भी देशों का इतिहास रहा है, पर किसी तरह अकारण ही सत्ता पा गए अयोग्य लोग आमतौर पर असफल होते हैं। ऐसे लोग अपनी अयोग्यता अहंकार से ढकने की कोशिश करते हैं और किसी भी तरह सत्ता में काबिज रहने की कोशिश करते हैं। तब उनका परिणाम ट्रम्प और गोर्बाचोव जैसा होता रहा है और आगे भी होता रहेगा।
अमेरिका में क्या होगा, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा। नये राष्ट्रपति किस तरह का फैसला लेते हैं? भारत दुनिया का आबादी के हिसाब से सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन उस पर ग्रहण लगाने की कोशिशें भी हो रही है। अमेरिका में तो चुनाव लड़ने के लिए भी चुनाव होता है। किंतु बाकी जगहों में स्थिति उलट है। अब एक सुनहरे भविष्य, सच्चे लोकतंत्र, कल्याणकारी राज्य और केवल संविधान तथा कानून के शासन के लिए आवाज उठाने का समय है और आवाज उठाने का अहंकारग्रस्त नेतृत्व, तानाशाही, हिटलरशाही, किसी भी तरह की अराजकता (एनार्की) और आवश्यक संस्थाओं की निष्पक्षता के लिए उनपर हमले के खिलाफ और इंसानियत के वजूद और स्वर्णिम भविष्य के लिए और ये आवाजें अब रु केंगी नहीं।
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