वैश्विकी : भारत की चिकित्सा कूटनीति
कोविड-19 महमारी ने भारत की विदेश नीति के लिए पड़ोसी देशों के साथ विवादों को सुलझाने, पुरानी दोस्ती को मजबूत करने और नये दोस्त बनाने के अवसर पैदा किए हैं।
वैश्विकी : भारत की चिकित्सा कूटनीति |
महामारी से उपचार में काम आने वाली वैक्सीन के जरिये भारत ने पड़ोस में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में ‘चिकित्सा कूटनीति’ या ‘वैक्सीन कूटनीति’ पर अमल किया है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर वैीकरण को केवल राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र तक सीमित न रखने की वकालत करते रहे हैं। वह महामारी, प्राकृतिक हादसों और जलवायु परिवर्तन जैसे संकट के मद्देनजर वैीकरण को पुनर्परिभाषित करने पर जोर देते हैं। वैीकरण का यह मानवीय पहलू भारत की ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ और ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की प्राचीन शिक्षाओं के इच्छाओं के अनुरूप भी है। लोगों को याद होगा महमारी से पहले 2015 में नेपाल में जब भीषण भूकंप आया था तब भारत ने उसकी सहायता करने के लिए ‘ऑपरेशन मैत्री’ की शुरू किया था। भूकंप आने के चार घंटे के भीतर ही भारत ने नेपाल में सबसे पहले अपनी राहत टीभ भेजी थी और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी खुद राहत और बचाव कार्यों पर नजर बनाए हुए थे।
‘वैक्सीन कूटनीति’ के जरिये भारत ने वैीकरण के बारे में अपनी इसी सोच के पक्ष में ठोस आधार पेश किया है। भारत जहां पड़ोसी देशों को प्राथमिकता के आधार पर निशुल्क वैक्सीन भेज रहा है वहीं अफ्रीका में मोरक्को और दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में ब्राजील को व्यावसायिक आधार पर वैक्सीन की आपूर्ति की जा रही है। ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारो ने भारत से वैक्सीन मिलने के बाद रामायण के संजीवनी बूटी प्रकरण का उल्लेख करते हुए एक ट्वीट किया तथा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को धन्यवाद दिया। बोल्सोनारो ने अपने ट्वीट में एक चित्र साझा किया जिसमें हनुमान जी को संजीवनी बूटी के साथ पर्वत उठाए प्रदर्शित किया था। ब्राजील के राष्ट्रपति का यह आभार प्रदर्शन चीन के लिए भी एक संदेश था। वास्तव में ‘वैक्सीन कूटनीति’ के संबंध में भारत और चीन के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखी जा रही है। पड़ोसी देशों में ही नहीं बल्कि ब्राजील में भी यह प्रतिस्पर्धा जारी है। भारत के पहले चीन की ओर से ब्राजील को वैक्सीन की आपूर्ति की गई थी, लेकिन इस वैक्सीन को लेकर ब्राजील के चिकित्सा जगत में बहुत सी आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं। चीन से कोरोना वायरस के प्रसार के साथ ही वहां के वैक्सीन के बारे में पारदर्शिता को लेकर सवाल उठाए जा रहे हैं। चीन की वैक्सीन कितनी कारगर है, इस संबंध में उसके दावे खरे नहीं उतर रहे हैं। ऐसे में भारत की वैक्सीन प्रतिस्पर्धा में चीन को पीछे छोड़ सकती है। यह वैक्सीन कूटनीति ही नहीं बल्कि राजनीतिक क्षेत्र में भी भारत की साख बढ़ाएगी।
जहां तक पड़ोसी देशों का सवाल है भारत ने सार्क देशों की सद्भावना अर्जित की है। नेपाल के साथ कालापानी क्षेत्र को लेकर उठे सीमा विवाद और बांग्लादेश के साथ नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पैदा हुई आशंका को दूर करने में भारत की वैक्सीन सहायक सिद्ध होगी। भारत की ओर से कोविशील्ड वैक्सीन की 20 लाख खुराक बांग्लादेश और 10 लाख खुराक नेपाल को भेजी गई है। इससे पहले 1.5 लाख खुराक भूटान को और 1 लाख खुराक मालदीव को भेजी गई है। इन सभी देशों ने भारत से वैक्सीन की मांग की थी, लेकिन पड़ोसी पाकिस्तान ने भारत से अबतक वैक्सीन की मांग नहीं की है। इसीलिए भारत उसे वैक्सीन भेज भी नहीं रहा है।
भारत दुनिया में वैक्सीन निर्मित करने वाला सबसे बड़ा देश है, जो विश्व वैक्सीन मांग का करीब का 60 फीसद अपने पास रखता है। दुनिया में वैक्सीन कहीं भी विकसित हो, बड़े स्तर पर उसके निर्माण के लिए भारत की ओर ही देखा जाता है। कोरोना वैक्सीन के बारे में भारत के लिए यह दोहरी उपलब्धि है कि यहां अबतक दो वैक्सीन विकसित हो चुकी है और कई अन्य पर अनुसंधान जारी है।
भारत ने बड़ी जनसंख्या होने के बावजूद महामारी पर काफी हद तक काबू रखा है। यूरोप और अमेरिका की तुलना में यहां महामारी का असर बहुत कम दिखाई दिया। अब वैक्सीन निर्माण के जरिये उसने अपनी वैज्ञानिक क्षमता को प्रदर्शित किया है। कोविड-19 के बाद की दुनिया में भारत की औषधि उद्योगों को विभर में अपना प्रसार करने में मदद देगी तथा भारत संकट में एक भरोसेमंद साथी है, यह अंतरराष्ट्रीय साख भी बनेगी।
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