वैश्विकी : वर्ग संघर्ष नहीं सत्ता संघर्ष

Last Updated 27 Dec 2020 12:29:59 AM IST

नेपाल लोकतंत्र की एक विडम्बना का सामना कर रहा है कि संसद या विधानसभों में हासिल प्रचंड बहुमत कभी-कभी राजनीतिक स्थिरता की बजाय अस्थिरता पैदा करता है।


वैश्विकी : वर्ग संघर्ष नहीं सत्ता संघर्ष

कभी-कभी अल्पमत या मामूली बहुमत वाली सरकारें अपना कार्यकाल पूरा कर लेती हैं तो वहीं प्रचंड बहुतमत वाली सरकारें मध्यावधि में ही गिर जाती हैं या राजनीतिक अस्थिरता का शिकार बन जाती हैं। अक्सर राजनीतिक नेताओं की महत्त्वाकांक्षा के कारण ऐसा होता है। आम धारणा के विपरीत विचारधारा या कैडर पर आधारित पार्टियां भी लोकतंत्र की इस बीमारी से मुक्त नहीं हैं। हालांकि कम्युनिस्ट पार्टियां उदारवादी लोकतंत्र को ‘बुजुर्आ लोकतंत्र’ कहती हैं। यह भी कम हास्यास्पद नहीं है कि वर्ग संघर्ष में विश्वास करने वाली कम्युनिस्ट पार्टियां नेपाल में सत्ता संघर्ष में उलझ गई हैं। नेपाल का वर्तमान घटनाक्रम इसी राजनीतिक यथार्थ को उजागर करता है। नेपाल के तीन दिग्गज नेताओं-खड्ग प्रसाद ओली शर्मा, माधव कुमार नेपाल और पुष्प कमल दहल प्रचंड के बीच राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा की लड़ाई अब केंद्र के साथ ही देश के राज्यों में भी अस्थिरता का कारण बन रही है।
पिछले एक सप्ताह के दौरान तेजी से हुए घटनाक्रम में प्रधानमंत्री ओली ने संसद के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग कर नया चुनाव कराने का फैसला किया। नेपाली कम्युनिस्ट पार्टी दो धड़ों में बंट गई, जिसमें एक का नेतृत्व प्रधानमंत्री ओली और दूसरे का माधव कुमार नेपाल और प्रचंड कर रहे हैं। दोनों धड़े एक-दूसरे के विरुद्ध शतरंज की चालें चल रहे हैं। प्रधानमंत्री ओली ने संवैधानिक अनिवार्यता को देखते हुए संसद के ऊपरी सदन का सत्र आयोजित करने का फैसला किया है। वहीं आनन-फानन में अपने मंत्रिमंडल का उन्होंने विस्तार भी किया है। नये मंत्रिमंडल में उन्होंने प्रचंड की माओवादी पार्टी से जुड़े लोगों को शामिल किया है। उनकी मंशा प्रतिद्वंद्वी माओवादी खेमे से जुड़े लोगों को अपने पक्ष में करने की है। प्रतिनिधि सभा भंग करने का मामला देश के सुप्रीम कोर्ट में है, जिसने मामले की सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन किया है।

राजनीतिक सत्ता संघर्ष का समाधान न्यायपालिका में नहीं बल्कि राजनीति के मैदान में होता है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला यदि जल्दी आ जाता है तो भी इससे देश के राजनीतिक संकट के हल होने की संभावना नहीं है। नवीनतम घटनाक्रम में देश के उन राज्यों में राजनीतिक अस्थिरता पैदा हो गई है जहां कम्युनिस्ट पार्टी की सरकारें हैं। 2017 के चुनाव में देश के 7 राज्यों में से छह राज्यों में कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी थी। अब हर राज्य विधानसभा में प्रतिद्वंद्वी खेमे एक-दूसरे के विरुद्ध मुहिम चला रहे हैं। सबसे पहले बागमती राज्य की सरकार संकट में फंसी है, जहां प्रधानमंत्री ओली के समर्थक मुख्यमंत्री के विरुद्ध प्रतिद्वंद्वी खेमे ने अविश्वास प्रस्ताव पेश किया है। ऐसे ही हालात अन्य राज्यों में भी बनने की संभावना है। पूरे घटनाक्रम में मुख्य विपक्षी दल नेपाली कांग्रेस के लिए देश की राजनीति में फिर एक विकल्प के रूप में उभरने का अवसर मिला है। एकीकृत कम्युनिस्ट पार्टी के कारण उसकी हैसियत बहुत कमजोर हो गई थी। कम्युनिस्ट पार्टी के विभाजन के बाद नेपाली कांग्रेस सत्ता पर दावेदारी की बात सोच सकती है। दूसरी ओर जाति और क्षेत्र के नाम पर राजनीति करने वाले छोटे-छोटे दलों को भी अपना प्रभाव और क्षेत्र बढ़ाने का अवसर मिला है।
नेपाल के घटनाक्रम में पड़ोसी देशों भारत और चीन की समान रुचि है। दोनों देश नेपाल में अपने अनुकूल सरकार चाहते हैं, लेकिन नेपाल के वर्तमान राजनीतिक संकट को हल कर सकने में उन दोनों पड़ोसी देशों की भूमिका निर्णायक साबित नहीं हो सकती। यह काम तो नेपाल के शीर्ष नेताओं को स्वयं करना है। ओली चीन समर्थक माने जाते हैं। उनके अब तक के कार्यकाल में नेपाल का झुकाव चीन की ओर रहा है। दूसरी ओर इस दौरान भारत के साथ उनके संबंध बहुत कटु हो गए थे।  हालांकि भारत की ओर से संबंध सुधारने के लिए कई कदम उठाए गए हैं। इसका सकारात्मक असर भी दिखाई दे रहा था। इसी बीच प्रतिनिधि सभा भंग करके नये चुनाव की घोषणा हो गई। यह नेपाल का दुर्भाग्य है कि वह एक बार फिर से राजनीतिक अस्थिरता के भंवर में फंस गया है। संसद के आगामी चुनाव में जनता भी देश में राजनीतिक स्थिरता कायम करने के लिए एक स्पष्ट जनादेश दे सकती है।

डॉ. दिलीप चौबे


Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment